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West Bengal : दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद टेट परीक्षा को लेकर उत्साहित है जगन्नाथ माहरा

जगन्नाथ माहरा पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के सिउड़ी नगर पालिका के 18 नंबर वार्ड के हाटजन बाजार इलाके के रहने वाले हैं.जगन्नाथ का जन्म दो हाथों के बिना हुआ था. लेकिन सिर्फ इसलिए कि जगन्नाथ के दो हाथ नहीं हैं लेकिन वह अन्य लोगों की तरह ही रहते हैं.

By Shinki Singh | December 8, 2022 7:05 PM
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कहावत है की लाख बाधाओं के बावजूद इंसान में यदि दृढ़ इच्छाशक्ति है तो वह कुछ भी कर सकता है. इस कहावत को वास्तविक रूप में चरितार्थ करने जा रहे हैं जगन्नाथ माहरा .दोनों हाथ नहीं होने के बाबजूद आगामी रविवार को होने जा रहे टेट परीक्षा को लेकर उत्साहित है जगन्नाथ माहरा .जगन्नाथ माहरा पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के सिउड़ी नगर पालिका के 18 नंबर वार्ड के हाटजन बाजार इलाके के रहने वाले हैं. जिस प्रकार जगन्नाथ अदम्य संघर्ष से इस स्थान पर पहुंचे हैं, उसी प्रकार वे भी अपने संघर्ष को दूसरों के बीच फैलाना चाहते हैं. प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में उन्हें नौकरी मिलेगी या नहीं, यह ज्ञात नहीं है, लेकिन इस बीच उन्होंने क्षेत्र में एक निःशुल्क विद्यालय खोला है जहां छात्रों को पढ़ाई के अलावा सांस्कृतिक शिक्षा दी जाती है.

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जगन्नाथ के दो हाथ नहीं हैं

बताया जाता है की पिछली बार 2017 में प्राथमिक भर्ती के लिए टेट की परीक्षा हुई थी. करीब 5 साल बाद अगले रविवार को टेट की परीक्षा होने जा रही है. लाखों नौकरी के इच्छुक उम्मीदवार इस परीक्षा का इंतजार कर रहे हैं. आम परीक्षार्थियों की तरह जगन्नाथ माहरा भी टेट की परीक्षा का सामना करना चाहते है. हालांकि दोनों हाथ नहीं होने के बाद भी वह दृढ़ इच्छाशक्ति रखते है. आम परीक्षार्थियों की तरह ही सामना करने को तैयार है जगन्नाथ माहरा . जगन्नाथ का जन्म बिना दो हाथों के हुआ था.लेकिन सिर्फ इसलिए कि जगन्नाथ के दो हाथ नहीं हैं इसका मतलब यह नहीं है कि वह अन्य लोगों की तरह नहीं रहते हैं.

जगन्नाथ माहरा का अदम्य संघर्ष हर इंसान को दे सकता है प्रेरणा

बल्कि वह तमाम बाधाओं को पार कर हर दिन का काम खुद से करते है और हर रोज के काम को करने के अलावा अगले रविवार को होने वाले प्राथमिक टेट की परीक्षा में खुद ही बैठने वाले है जगन्नाथ. जगन्नाथ माहरा का अदम्य संघर्ष हर इंसान को प्रेरणा दे सकता है. जगन्नाथ माहरा बताते है की उन्हें शिक्षक बनने का शौक है. वे कम उम्र से ही आर्थिक से लेकर सामाजिक तक सभी प्रतिकूलताओं से होकर गुजरे हैं. अभी भी भविष्य में प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक के रूप में पढ़ाने की उनकी दिली इच्छा है. लेकिन उनकी यह लड़ाई हर किसी की जिंदगी बदल सकती है. दिव्यांगता को कभी उन्होंने आड़े हाथ नहीं आने दिया है. यही अदम्य साहस है जगन्नाथ माहरा का.

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रिपोर्ट : मुकेश तिवारी पानागढ़

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