Kaushiki Amavasya 2022: पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला में स्थित तारापीठ मंदिर में शुक्रवार से शुरू हो रही कौशिकी अमावस्या (Kaushiki Amavasya 2022) से पहले ही मंदिर कमेटी की ओर से पूजा-अर्चना शुरू कर दी गयी है. कमेटी की ओर से पुलाव, पांच तरह की सब्जियां, पांच तरह की भुजिया, बलि के पाठा का पका मांस (मीट), भुनी हुई शोल मछली, मांग का माथा, पांच तरह के मिष्ठान्न, खीर आदि का भोग मां तारा को चढ़ाया गया.
कोरोना महामारी की वजह से पिछले दो वर्षों तक तारापीठ मंदिर में कौशिकी अमावस्या (Kaushiki Amavasya 2022 Date And Time) में भक्तोें का प्रवेश वर्जित था. इस साल भक्तों के लिए मंदिर को खोल दिया गया है. फलस्वरूप तारापीठ मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ने लगी है. मंदिर के परिचारक देवी को भोजन कराते हैं.
मां तारा मंदिर कमेटी के अध्यक्ष तारामय मुखोपाध्याय ने बताया कि अमावस्या तिथि शुरू हो चुकी है. इससे पहले मंदिर में मां तारा की प्रतिमा को भोजन कराने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. इस बार भक्तों में खासा उत्साह देखा जा रहा है. भक्तों की भीड़ को देखते हुए प्राइवेट वाहनों को मुख्य सड़क पर दो-तीन किलोमीटर पहले ही रोक दिया जा रहा है.
तारापीठ मंदिर जाने वाले मार्ग पर ट्रैफिक पुलिस की तैनाती की गयी है. जगह-जगह पुलिस के कैंप बनाये गये हैं. रामपुरहाट रेलवे स्टेशन पर भाजपा ने शिविर लगाया है. आने वाले भक्तों की हरसंभव मदद की जा रही है. 27 और 28 अगस्त तक कौशिकी अमावस्या को लेकर तैयारी अपने अंतिम चरण में है.
कौशिक अमावस्या की पूजा का पौराणिक इतिहास है. कहा जाता है कि 1274 में बंगाल में कौशिकी अमावस्या को तारापीठ महाश्मशान में श्वेतशिमुल वृक्ष के नीचे संत बामाखेपा ने सिद्धि प्राप्त की थी. उस दिन ध्यान कर रहे बामाखेपा को मां तारा ने दर्शन दिया था.
इस पूजा से जुड़ी एक और किंवदंती है. कहा जाता है कि शुंभ-निशुंभ की क्रूरता से देवता बेचैन हो गये थे. तब देवी महामाया ने अपनी इच्छा जगायी और देवी कौशिकी को जन्म दिया. भाद्र मास की अमावस्या में देवी कौशिकी ने शुंभ-निशुंभ का वध किया. तभी से भाद्र मास की अमावस्या को कौशिकी अमावस्या कहा जाने लगा.
रिपोर्ट – मुकेश तिवारी