शालडांगा के आदिवासियों ने पुनर्वास और मुआवजे की मांग पर आवाज बुलंद की
इसीएल के केंदा क्षेत्र की न्यू केंदा के शालडांगा इलाके के आदिवासियों ने पुनर्वास और मुआवजे की मांग पर शालडांगा स्कूल के करीब मैदान में सभा की. आंदोलनकारियों का कहना है कि इसीएल खुली खदान के विस्तार के लिए जमीन अधिग्रहित कर रही है. जिसे लेकर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी शुरु हो गयी है.
अंडाल.
इसीएल के केंदा क्षेत्र की न्यू केंदा के शालडांगा इलाके के आदिवासियों ने पुनर्वास और मुआवजे की मांग पर शालडांगा स्कूल के करीब मैदान में सभा की. आंदोलनकारियों का कहना है कि इसीएल खुली खदान के विस्तार के लिए जमीन अधिग्रहित कर रही है. जिसे लेकर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया भी शुरु हो गयी है. इसी के तहत शालडांगा आदिवासी गांव के लिए मुआवजे के लिए आवंटित राशि का पत्र दिया गया है, जिसमें किसी को 10 हजार किसी को 50 हजार तो किसी को 10 लाख रुपये तक मुआवजे का प्रावधान दिया गया है, जिसे ग्रामीणों ने लेने से इंकार कर दिया है. ग्रामीणों की मांग है कि मुआवजे के साथ साथ पुनर्वास भी देना होगा. इन्हीं मांगों पर प्रदर्शन शुरू किया गया है. इसी के तहत सोमवार को शालडांगा के प्राथमिक विद्यालय के समीप मैदान में एक सभा का आयोजन किया गया. सभा में सैकड़ों की संख्या में गांव के लोग उपस्थित हुए. सभा में आदिवासी गांवता समाज के राज्य अध्यक्ष रोबिन सोरेन, आदिवासी नेता जलधर हेम्ब्रम, जिला अध्यक्ष दिलीप सोरेन, बुबन माड्डी, राजेश टुडू, सुनील टुडू, देवश्री टुडू, महर्षि सद्गुरु सदाफल देव आश्रम शालडांगा के व्यवस्थापक श्याम सुंदर बर्नवाल, प्रचारक आलोक साहा भी उपस्थित थे, इस दौरान रोबिन सोरेन एवं जलधर हेम्ब्रम ने बताया कि यहां ओपन माइंस से ब्लास्टिंग हो रही है जिससे यहां के ग्रामीणों के घर क्षतिग्रस्त हो रहे हैं. दो दिन पहले ही यहां एक घर में धंसान भी हुआ. अब गांव की जमीन इसीएल द्वारा ली जा रही है. लेकिन इसीएल कह रही है कि यह जमीन कंपनी की है. इस गांव के आदिवासी डेढ़ दो सौ वर्षों से यहां रह रहे हैं. यहां आदिवासियों की तीन पीढ़ियों से बसा हुआ है. जबकि कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण 1971 से शुरू हुआ था एवं इसीएल की स्थापना 1975 में हुई. जबकि उनके पूर्वज इससे पहले से यहां रह रहे हैं. इसीएल कह रही है कि यह जमीन कंपनी की है, इसीएल जोर जबरदस्ती उनकी जमीन लेना चाहती है. जिसे वे लेने नहीं देंगे. जो मुआवजा दिया जा रहा है वह उन्हें स्वीकार नहीं है. उन्हें हटाया गया तो वे बेघर हो जायेंगे. इस विषय को लेकर केंदा एरिया प्रबंधन से बात हुई थी. उन्होंने सोमवार को बैठक करने को कहा था इसलिए आज वे जुटे हैं. खबर लिखे जाने तक ग्रामीणों की प्रबंधन के साथ बैठक चल रही थी. वहीं विहंगम योग के प्रचारक आलोक साहा ने कहा कि शालडांगा गांव के बीच उनका आश्रम है. जहां पर ध्यान पद्धति से बिना दवा के लोग निरोग होते हैं. जिससे यहां के लोग भी लाभान्वित होते हैं. वे चाहते हैं कि गांव के लोगों को उनका अधिकार मिले. इसके लिए वे ग्रामीणों के साथ हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है