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सावधानी: सांस के मरीज दिवाली पर रखें अपना ख्याल

लिहाजा दिवाली के मौके पर सांस के मरीजों को काफी सावधानी बरतने की जरूरत रहती है.

By Prabhat Khabar News Desk | October 30, 2024 1:20 AM
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दुर्गापुर. खुशी और रोशनी का त्योहार है दिवाली. लेकिन सांस से सबंधित रोगों के मरीजो के स्वास्थ्य के लिए यह उत्सव जोखिम पैदा कर सकता है. लिहाजा दिवाली के मौके पर सांस के मरीजों को काफी सावधानी बरतने की जरूरत रहती है. इस दौरान अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ सकता है.

दिवाली पर बिगड़ जाती है एयर क्वालिटी

दिवाली पर देशभर के तमाम शहरों की तरह शिल्पांचल की भी एयर क्वालिटी बिगड़ जाती है. इसकी वजह आतिशबाजी प्रमुख रूप से है. पटाखों के जलने से सल्फर डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसे केमिकल हवा में पहुंचकर सांस के मरीजों की परेशानी बढ़ा देते हैं. ऐसे मरीजों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है.

पहले से मौजूद फेफड़ों की बीमारियों वाले व्यक्तियों पर प्रभाव

अस्थमा

: प्रदूषक श्वसनी ऐंठन और वायुमार्ग में सूजन को ट्रिगर कर सकते हैं, जिससे घरघराहट, खांसी और सांस फूलने की समस्या हो सकती है.अस्थमा के रोगियों को अपनी नियमित दवाएं कम प्रभावी लग सकती हैं, जिसके लिए संभावित रूप से उपचार समायोजन की आवश्यकता हो सकती है.

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी):

सीओपीडी वाले लोगों के लिए, प्रदूषकों के संपर्क में आने से खांसी और कफ जैसे लक्षण हो सकते हैं, फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी आ सकती है और अगर इसका प्रबंधन न किया जाये, तो अस्पताल में भर्ती होने की भी आवश्यकता हो सकती है.

इंटरस्टिशियल लंग डिजीज (आइएलडी):

फाइब्रोटिक लंग डिजीज वाले मरीजों को प्रदूषक-प्रेरित सूजन के कारण लक्षण बिगड़ने का अनुभव हो सकता है, जिससे संभावित रूप से फेफड़े के उतकों को नुकसान और फाइब्रोसिस में तेजी आ सकती है.

स्वस्थ व्यक्तियों पर प्रभाव

स्वस्थ व्यक्ति भी दिवाली से संबंधित वायु प्रदूषण के प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं. उत्सव के दिनों में बार-बार संपर्क में रहने से कुछ समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें:

श्वसन संबंधी जलन:

सामान्य लक्षणों में खांसी, गले में जलन और साइनस में जमाव शामिल हैं, कुछ व्यक्तियों को प्रदूषक के संपर्क में आने के कारण आंखों में जलन और गले में सूखापन महसूस होता है.

फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी:

महीन कण और जहरीली गैसें अस्थायी रूप से फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी ला सकती हैं, जिससे सांस लेने में कठिनाई हो सकती है. श्वसन संबंधी स्थितियों का विकास: प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से ब्रोंकाइटिस जैसी पुरानी श्वसन संबंधी स्थितियों का विकास हो सकता है या अतिसंवेदनशील व्यक्तियों में अस्थमा हो सकता है.

दिवाली पर लोग होते हैं सेलिब्रेशन मोड में

इस बाबत आइक्यू सिटी अस्पताल से जुड़े वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट डा. प्रशांत कुमार कहा कि दिवाली एक ऐसा समय है जब लोग सेलिब्रेशन मोड में होते हैं. साल के सबसे बड़े इस त्योहार को हर कोई बड़ी धूम-धाम के साथ मनाता है. हालांकि, ये समय सांस की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए काफी मुश्किल भरा होता है. दिवाली के समय पहले से प्रदूषण काफी ज्यादा बढ़ जाता है और फिर पटाखों का धुआं घातक साबित होता है. वह कहते हैं कि दिवाली आतिशबाजी का पर्याय है, लेकिन इस तरह के उत्सवों में पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और धातु के कण निकलते हैं, जिससे वायु प्रदूषण बढ़ता है. ये उत्सर्जन उत्सव के बाद भी लंबे समय तक वातावरण में रह सकते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता और स्वास्थ्य प्रभावित होता है.

रोकथाम

सामुदायिक आतिशबाजी प्रदर्शन:

व्यक्तिगत स्तर की बजाय सामुदायिक स्तर पर समन्वित आतिशबाजी प्रदर्शन प्रदूषकों की मात्रा को सीमित करने में मदद कर सकते हैं.

सुरक्षात्मक उपाय:

फेस मास्क का उपयोग करने से पार्टिकुलेट मैटर को सांस में जाने से काफी हद तक कम किया जा सकता है. पीक टाइम के दौरान घर के अंदर रहना और खिड़कियां बंद रखना जोखिम को और कम करता है.

इनडोर वायु गुणवत्ता प्रबंधन:

फिल्टर किये गये एयर प्यूरीफायर का उपयोग इनडोर प्रदूषण के स्तर को कम कर सकता है, जिससे घरों में वायु गुणवत्ता में सुधार हो सकता है. आहार और जलयोजन: एंटीऑक्सीडेंट युक्त खाद्य पदार्थ और उचित जलयोजन शरीर की प्राकृतिक विषहरण प्रक्रियाओं का समर्थन कर सकते हैं, जिससे प्रदूषण के कुछ प्रभावों को कम किया जा सकता है.

तत्काल और दीर्घकालिक उपचार

तत्काल उपचार में तीव्र लक्षणों से राहत के लिए शॉर्ट-एक्टिंग ब्रोन्कोडायलेटर्स (इनहेलर) का उपयोग करना शामिल है. एंटीहिस्टामाइन एलर्जी प्रतिक्रियाओं को प्रबंधित करने में मदद कर सकते हैं. दिवाली के बाद फुफ्फुसीय पुनर्वास कार्यक्रम फेफड़ों की कार्यक्षमता को ठीक करने में सहायता कर सकते हैं, निर्देशित व्यायाम और शिक्षा के माध्यम से समग्र श्वसन स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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