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कांकसा : रघुनाथपुर में आदिवासी भूमि को बेचने का आरोप, जोर पकड़ता आदिवासी आंदोलन

पश्चिम बर्दवान जिले के कांकसा ब्लॉक के बनकाठी ग्राम पंचायत के अधीन राघुनाथपुर जंगल महल में आदिवासियों के लिए आवंटित भूमि पर तृणमूल के कुछ नेताओं और भूमाफिया द्वारा कब्जा करने और उसे बेचने का आरोप लगाते हुए आदिवासी संगठनों का आंदोलन जोर पकड़ने लगा है.

पानागढ़.

पश्चिम बर्दवान जिले के कांकसा ब्लॉक के बनकाठी ग्राम पंचायत के अधीन राघुनाथपुर जंगल महल में आदिवासियों के लिए आवंटित भूमि पर तृणमूल के कुछ नेताओं और भूमाफिया द्वारा कब्जा करने और उसे बेचने का आरोप लगाते हुए आदिवासी संगठनों का आंदोलन जोर पकड़ने लगा है. कांकसा और आउसग्राम ब्लॉक के आदिवासी समुदाय के लिए उक्त भूमि आवंटित की गयी थी. आदिवासियों के लिए आवंटित 42 बीघा 14 कट्ठे की जमीन पर अवैध कब्जा कर उसे बेचने का आरोप आदिवासियों ने तृणमूल कांग्रेस के एक नेता के खिलाफ लगाया है.

इस घटना से आदिवासियों में तीव्र आक्रोश है. पश्चिम बंगाल आदिवासी अधिकार मंच और पश्चिम बंगाल आदिवासी एवं लोक कलाकार संघ ने मांग की है कि आदिवासियों का यह क्रीड़ा मैदान तुरंत वापस किया जाये. पानागढ़-मोरग्राम रोड के किनारे कब्जा की गयी जमीन की मांग को लेकर आदिवासी संगठन लगातार आंदोलन कर रहा है. आदिवासियों का आरोप है कि बीएलएलआर विभाग के कुछ अधिकारियों के इशारे पर ही इस भूमि के कुछ हिस्से को बेच दिया गया है. दोषी अधिकारियों को भी दंडित करना होगा. आदिवासी भूमि की खरीद-बिक्री करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाये. सच तो यह है कि पिछले 52 वर्षों से यह डांगा जंगलमहल खेल एवं सांस्कृतिक परिषद की संपत्ति है. डांगा की कुल भूमि 42 बीघे 14 कट्ठे है. उसमें से 38 बीघा 8 कट्ठा खास जमीन है. आरोप है कि मौजा रघुनाथपुर के जेएल नंबर 39 की प्लाट नंबर 1185 खास जमीन का बड़ा हिस्सा तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं के इशारे पर बेचा गया है. आदिवासियों का यह भी आरोप है उक्त जमीन से कीमती पेड़ों को काटकर उनकी तस्करी भी की जा रही है. आदिवासियों का आरोप है कि फर्जी कागजात बनाकर उक्त भूमि को बेच दिया गया.

उनके मुताबिक पूर्व बर्दवान के आउसग्राम के तृणमूल ब्लॉक अध्यक्ष के रिश्तेदार जमीन के खरीदारों में शामिल हैं. किसी को ध्यान नहीं आया कि आदिवासियों के लिए तत्कालीन वाम सरकार द्वारा आवंटित यह जमीन बिक गयी. नवंबर माह में यह मामला सामने आया है. इस जमीन पर वाममोर्चा सरकार के दौरान हरियाली योजना के तहत पौधारोपण किया गया था. अब वे पेड़ बहुमूल्य पेड़ बन गये हैं. उन पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है. पूछताछ करने पर पता चला कि वन विभाग ने पेड़ काटने की अनुमति दे रखी है. आदिवासी अधिकार मंच और आदिवासी लोक कलाकार संघ ने सवाल उठाया कि उनकी जमीन के पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं? पेड़ काटने का अधिकार किसने दिया? तब पता चला कि कुछ नेताओं ने जमीन बेची है. खरीददारों में कोलकाता के भी लोग शामिल हैं. कथित तौर पर उस स्थान की जमीन पर कांकसा बसुधा क्षेत्र के एक बालू माफिया व तृणमूल नेता ने गुमनाम कब्जा कर लिया है .बाद में, वह पानागढ़-मोरग्राम राष्ट्रीय राजमार्ग के बगल में एक वेब्रिज या वजन घर बनाकर कारोबार किया जा रहा है. इस घटना को लेकर पूरे जंगल महल में तीव्र आक्रोश फैल गया है. आदिवासियों की नाराजगी के बाद वन विभाग पेड़ों की कटाई रोकने पर मजबूर हो गया. करीब पांच कट्ठे में लगे कीमती पेड़ काटे गये हैं. कुछ कटे पेड़ों को वन विभाग ने जब्त कर लिया है. कांकसा बीएलएलआर भी मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं. उल्लेखनीय है कि नक्सल से हटाकर आदिवासियों को मुख्यधारा में वापस लाने के लिए खेल प्रतियोगिताएं पहली बार 1971 में शुरू की गयी थी. इसकी शुरुआत फुटबॉल खेल से हुई थी. आउसग्राम के अदुरिया डांगा मैदान से इसकी शुरुआत की गयी थी. इसके बाद खेल की शुरुआत 1972 में कांकसा के रघुनाथपुर के डांगा में शुरू हुई. आपात्कालीन स्थिति में खेल बीच में ही रोक दिया गया. 1978 में, वाममोर्चा सरकार की पहल पर, हजारों लोगों की उपस्थिति में रघुनाथपुर के डांगा में जंगलमहल खेल और सांस्कृतिक परिषद भवन का उद्घाटन किया गया था. तत्कालीन राज्यपाल त्रिभुवन नारायण सिंह ने भवन का उद्घाटन किया था. तब से रघुनाथपुर की खास जमीन को ‘राज्यपाल डांगा’ के नाम से जाना जाता है. हर साल दुर्गापुर लावदोहा , कांकसा, बुदबुद और आउसग्राम के हजारों आदिवासी सुबह से रात तक खेल का आनंद लेते हैं. इसी जमीन ने आदिवासियों को मुख्यधारा में वापस लाया था अब आरोप है कि सत्ताधारी दल, भूमाफिया के साथ मिलकर उसे निगल रहे हैं.

आदिवादियों के आंदोलन को देख ब्लॉक और जिला प्रशासन भी हिल गया है. प्रशासनिक पहल के तहत बीडीओ कार्यालय के बगल के मैदान में आदिवासी“जय जोहार’ मेले का आयोजन किया गया है. बुधवार को डीएम ने मेले का उद्घाटन किया. प्रशासन के कई आला अधिकारियों ने जंगलमहल खेल एवं सांस्कृतिक परिषद के मैदान का दौरा किया. प्रशासन के मुताबिक जमीन का स्वरूप पूर्ववत कर दिया गया है. लेकिन ‘बांग्लार भूमि’ पोर्टल कुछ और ही कहता है. जंगलमहल खेल एवं सांस्कृतिक परिषद के पास बैंक खाता पासबुक है. उसके तीन ऑपरेटर हैं. कांकसा थाने के ओसी और दो आदिवासियों सहित तीन बैंक खाता संचालक हैं. पैसा निकालने के लिए ओसी के हस्ताक्षर जरूरी हैं. बैंक बुक नहीं मिल रही. बनकाठी ग्राम पंचायत ने इस भूमि में साढ़े चार बीघे का स्वामित्व खरीदा है.

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