Vishnupur Lok Sabha Seat : विष्णुपुर लोकसभा सीट को कभी माकपा के गढ़ के रूप में देखा जाता था. हालांकि अब भाजपा इसे अपने मजबूत किले के रूप में देखने लगी है. 1971 में माकपा की ओर से अजित कुमार साहा ने पहली बार यह सीट जीती थी. 1989 तक वह यहां के सांसद रहे. 1989 से 1996 तक माकपा के सुखेंदु खां यहां से सांसद रहे. इसके बाद माकपा की संध्या बाउरी और फिर सुष्मिता बाउरी को भी मौका मिला. राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर सौमित्र खां ने 2014 में यहां से चुनाव जीता था. पर, बाद में वह भाजपा में शामिल हुए और 2019 में भाजपा के टिकट पर उन्होंने यह सीट फिर से जीत ली.
विष्णुपुर की जंग में कौन कहां पहुंचता है बेहद दिलचस्प होगा
दिलचस्प बात यह है कि इस बार उनका मुकाबला उनकी पूर्व पत्नी सुजाता मंडल से होगा. वह तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. तृणमूल के टिकट 2014 में यहां से चुनाव लड़े सौमित्र खां को 45.50 फीसदी वोट के साथ जीत मिली थी. दूसरे स्थान पर रहीं माकपा की सुष्मिता बाउरी ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी. साढ़े चार लाख से अधिक वोट हासिल कर. 2019 में दूसरी बार यहां जीतनेवाले सौमित्र खां को 6.50 लाख से अधिक वोट मिले थे. कुल डाले गये मतों का 46.25 फीसदी. 40.75 फीसदी वोटों के साथ तृणमूल के श्यामल सांतरा दूसरे स्थान पर रहे थे. इस बार विष्णुपुर की जंग में कौन कहां पहुंचता है, यह देखना बेहद दिलचस्प होगा.
भाजपा का आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ा जनाधार
पारंपरिक तौर पर भाजपा बांकुड़ा में मजबूत नहीं थी. लेकिन उसके जनाधार में धीरे-धीरे बढ़ोतरी होती गयी. 2009 के लोकसभा चूुनाव पर नजर डालें तो भाजपा के जयंत मंडल को करीब 42 हजार वोट मिले थे. 3.97 फीसदी वोट हासिल करके वह तीसरे स्थान पर रहे थे. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी परिवर्तन देखने को मिला. भाजपा के डॉ जयंत मंडल को 1.80 लाख वोट मिले. 14.11 फीसदी वोट के साथ वह तीसरे स्थान पर थे. 2019 में सौमित्र खां ने भाजपा के टिकट पर यहां से विजय हासिल की. विष्णुपुर लोकसभा क्षेत्र के विधानसभा क्षेत्रों पर नजर डालें तो यहां की सात विधानसभा सीटों में से पांच पर भाजपा का कब्जा है. ये हैं -ओंदा, इंदास, विष्णुपुर, कोतुलपुर और सोनामुखी शामिल हैं.
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विष्णुु के उपासक थे मल्ल राजा, इसलिए नाम पड़ा विष्णुपुर
कभी मल्ल राजाओं की राजधानी रहा बांकुड़ा का विष्णुपुर शहर टेराकोटा के मंदिरों, बालूचरी साड़ियों व पीतल की सजावटी वस्तुओं के अलावा हर साल दिसंबर के आखिरी सप्ताह में लगने वाले पौष मेले के लिए भी मशहूर है. मल्ल राजाओं के नाम पर इसे ”मल्लभूमि” भी कहा जाता था. यहां लगभग एक हजार वर्षों तक इन राजाओं का शासन रहा. यहां वैष्णव धर्म के बढ़ते वैभव के कारण इसका नाम विष्णुपुर पड़ा. विष्णुपुर में टेराकोटा व हस्तकला को तो बढ़ावा मिला ही, भारतीय शास्त्रीय संगीत का विष्णुपुर घराना भी काफी फला-फूला. वैष्णव धर्म के अनुयायी यहां के मल्ल राजाओं ने 17वीं व 18वीं सदी में जो मशहूर टेराकोटा मंदिर बनवाये थे, वे आज भी शान से सिर उठाये खड़े हैं. यहां के मंदिर बंगाल की वास्तुकला की जीती-जागती मिसाल हैं. कोलकाता से कोई दो सौ किमी दूर बसा यह शहर राज्य के प्रमुख पर्यटनस्थलों में शामिल है.