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Lok Sabha Election 2024 : राणाघाट में भाजपा को दूसरी जीत का भरोसा, उधर तृणमूल बोल रही-हम भी हैं तैयार

Lok Sabha Election 2024 : सीएए के लागू होने के बाद मतुआ वोटों के सहारे भाजपा राणाघाट में फिर से अपनी संभावनाएं देखने लगी है. टीएमसी के गढ़ में सेंध लगाते हुए पार्टी ने गत लोकसभा चुनाव में यहां से जीत हासिल कर ली थी. हालांकि यहां एक विधायक के तृणमूल ज्वाइन कर लेने के बाद भाजपा की चिंता बढ़ी भी है.

Lok Sabha Election 2024 : इस बार के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में भाजपा को जिन लोकसभा क्षेत्रों में अपनी संभावना मजबूत दिख रही है, उनमें राणाघाट लोकसभा की सीट भी अन्यतम है. यहां माकपा के किले को तृणमूल के बाद भाजपा ने भी ध्वस्त करते हुए पिछले लोकसभा में यह सीट फतह कर ली थी. भाजपा नेता जगन्नाथ सरकार ने 2019 में 52.78 फीसदी वोट हासिल कर 7.83 लाख से अधिक मत प्राप्त किया और अपनी मुख्य प्रतिद्वंदी रुपाली विश्वास को 2.33 लाख से अधिक वोटों से हरा दिया था. इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल के तापस मंडल 5.90 लाख वोटों के साथ चुनाव जीते थे. उन्होंने तब माकपा की अर्चना विश्वास को परास्त किया था.

माकपा के मजबूत किले में कभी तृणमूल कांग्रेस ने तो कभी भाजपा ने लगा दी सेंध

भाजपा के डॉ सुप्रभात विश्वास तब 2.33 लाख वोटों के साथ तीसरे स्थान पर छूट गये थे. 2009 के लोकसभा चुनाव में तृणमूल के ही सुचारु रंजन हालदार 5.75 लाख वोटों के साथ चुनाव जीते थे. तब उन्होंने 4.73 लाख वोट पाने वाले माकपा के वासुदेव बर्मन को परास्त किया था. भाजपा के सुकल्याण रे को यहां सिर्फ 84 हजार मिले थे. वह साथ तीसरे स्थान पर थे. उल्लेखनीय है कि डिलिमिटेशन के बाद 2009 से नवद्वीप लोकसभा क्षेत्र अस्तित्वहीन हो गया और नया लोकसभा क्षेत्र बना राणाघाट. नवद्वीप लोकसभा क्षेत्र लंबे अरसे तक माकपा का गढ़ बना रहा. 1952 में पहले चुनाव और 1957 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार अवश्य जीते थे, पर उसके बाद हालात बदल गये.

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माकपा ने 8 बार राणाघाट में हासिल की है जीत

1962 में निर्दलीय और 1967 में बांग्ला कांग्रेस के उम्मीदवार ने यहां जीत हासिल की थी. इसके बाद लगातार आठ बार यानी 1971, 1977, 1980, 1984, 1989, 1991, 1996 और 1998 में यहां के लोगों ने सिर्फ माकपा को ही मौके दिये. 1999 में तृणमूल के आनंद मोहन विश्वास को एक बार जीत जरूर मिली थी, लेकिन 2003 में हुए उपचुनाव और 2004 के आम चुनाव में यहां माकपा उम्मीदवार फिर जीत गये. वैसे राज्य में बदलाव की बयार एक बार और बही और 2009 तथा 2014 में तृणमूल के उम्मीदवारों ने यह सीट जीती. लेकिन, 2019 में माहौल पूरी तरह बदल चुका था. मोदी-मोदी तथा हर-हर मोदी, घर-घर मोदी के शोर के बीच इस सीट पर भाजपा के जगन्नाथ सरकार ने जीत का झंडा गाड़ दिया था.

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चुनाव में महत्वपूर्ण फैक्टर साबित हो सकता है सीएए

लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले सीएए अधिसूचित किये जाने के बाद राणाघाट लोकसभा क्षेत्र में चुनाव के लिए यह एक महत्वपूर्ण फैक्टर बन सकता है. मुख्य कारण है यहां की आबादी में मतुआ और नमोशुद्र समुदाय की भागीदारी, जो सीएए से लाभान्वित हो सकती है. 2019 में मुकुटमणि अधिकारी, जो यहां के मतुआ नेता थे, उन्हें भाजपा यहां से उम्मीदवार बनाना चाहती थी, लेकिन तकनीकी कारणों से ऐसा नहीं हो सका. जगन्नाथ सरकार को मौका मिला और उन्हें भारी सफलता भी मिली. अब तृणमूल यहां नया दांव चल दी है. वह भाजपा के विधायक रहे मुकुटमणि को अपना उम्मीदवार बना कर सीएए के लाभार्थियों में सेंध लगाना चाहती है. इससे पहले सीएए के अधिसूचित न होने का खामियाजा भाजपा को पंचायत चुनाव में उठाना पड़ा था. Mamata Banerjee : ममता बनर्जी सर पर बैंडेज लगी स्थिति में पहुंची गार्डेनरीच, जानें क्या कहा सीएम ने..

राणाघाट की आबादी का बड़ा हिस्सा है मतुआ व नमोशुद्र समुदाय

2019 के लोकसभा चुनाव से ही नदिया व उत्तर 24 परगना के मतुआ बहुल इलाकों को भाजपा ने अपना गढ़ बना लिया था. बनगांव से शांतनु ठाकुर और राणाघाट से जगन्नाथ सरकार जीत कर सांसद बने थे. हालांकि पंचायत चुनाव में भाजपा को इन इलाकों में पराजय का मुंह देखना पड़ा.मतुआ बहुल इलाके के दोनों ही भाजपा सांसदों का कहना है कि पंचायत चुनाव का प्रभाव लोकसभा चुनाव पर नहीं पड़ेगा. गत पंचायत चुनाव में मतुआ बहुल इलाकों में भी भाजपा ने अपेक्षित प्रदर्शन नहीं किया था. शांतनु ठाकुर के मुताबिक पंचायत में तृणमूल ने फर्जी मतदान का सहारा लेकर चुनाव जीता.

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करीब 40 से 45 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ वोट बड़ा फैक्टर

जहां उनके उम्मीदवार ने जिला परिषद सीट से पांच हजार वोट से जीत हासिल की, वहां उन्हें सर्टिफिकेट न देकर तृणमूल के पराजित उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया गया. लोकसभा में ये सब नहीं चलेगा. राणाघाट सांसद जगन्नाथ सरकार कहते हैं कि पंचायत के लिए तो यहां चुनाव ही नहीं हुआ. लोकसभा चुनाव में ऐसा कुछ नहीं होगा. विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार राज्य में करीब 40 से 45 विधानसभा क्षेत्रों में मतुआ वोट बड़ा फैक्टर है. राज्य के कुल मतदाताओं में मतुआ वोटरों की तादाद 17 से 20 फीसदी है. बनगांव और राणाघाट में इनकी तादाद सर्वाधिक बतायी जाती है.

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ब्रह्मडांगा था नाम, फिर बन गया राणाघाट

राणाघाट का प्राचीन नाम ब्रह्मडांगा है. कहा जाता है कि किसी राणा डकैत के नाम पर इस जगह का नाम आगे चल कर राणाघाट हो गया. इतिहासकार प्रिंगिल के अनुसार, 18वीं शताब्दी में राणा नामक एक दुर्दांत डकैत यहां हुआ करता था. वह इसी इलाके में अपनी गतिविधियां चलाता था. उसी डकैत के नाम पर इस जगह का नाम राणाघाट हो गया. कुछ लोगों की राय इससे अलग है. ये कहते हैं कि अकबर के आदेश पर राणा टोडरमल यहां जमीन मापने पहुंचे थे. उनके नाम पर ही इलाके का नाम राणाघाट पड़ा होगा. कुछ और शोधकर्ता अलग तर्क देते हैं. इनके मुताबिक, स्थानीय महारानी के नाम पर इस स्थान का नाम ‘रानीघाट’ पड़ा होगा, जो कालांतर में राणाघाट हो गया.

राणाघाट रेल मार्ग का इतिहास
राणाघाट रेल मार्ग का इतिहास पुराना है. सिपाही विद्रोह के पांच वर्ष बाद सियालदह-राणाघाट रेल मार्ग का 1862 में उद्घाटन हुआ. 1963-64 में तो राणाघाट-कल्याणी और राणाघाट-शांतिपुर शाखा का वैद्युतीकरण भी हो चुका था.
रसगुल्ले राणाघाट के : रसगुल्ले का आविष्कार किसने किया था, यह विवाद केवल बंगाल व ओड़िशा से ही जुड़़ा हो, ऐसा नहीं. यह विरोध बंगाल के अंदर भी है. बागबाजार के नवीनचंद्र दास को रसगुल्ले का जनक कहा जाता है. 1868 में उन्होंने रसगुल्ला बनाया था. लेकिन कई लोग यह कहते हैं कि रसगुल्ले के वास्तविक जनक हाराधन मंडल हैं. वह शांतिपुर के फुलिया के रहने वाले थे. वह राणाघाट के पालचौधरी परिवार के हलवाई थे. उन्होंने ही रस में छेने की बड़ियों को डाल कर एक अभिनव मिठाई बनायी थी, जिसका पालचौधरी परिवार ने नाम रखा था ‘रसगुल्ला’.

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भाजपा के वोट में आया उछाल

राणाघाट लोकसभा क्षेत्र में भाजपा बार-बार अपनी पकड़ मजबूत करती गयी है. नतीजा यह कि विगत आम चुनाव में उसने यह सीट जीत भी ली. 2009 के चुनाव में यहां भाजपा तीसरे नंबर पर थी. उसके प्रत्याशी को महज 84,404 वोट मिले थे, जबकि तृणमूल उम्मीदवार ने 575,058 वोट हासिल कर जीत दर्ज की थी. 2014 के आम चुनाव में भी भाजपा की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ. वह तीसरे पायदान पर ही रही, लेकिन उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 17.27 पर पहुंच गया. उसे गत चुनाव की तुलना में 12.23% का फायदा हो चुका था. 2019 के संसदीय चुनाव में तो भाजपा ने कमाल ही कर दिया. इस सीट पर कब्जा ही जमा लिया. भाजपा उम्मीदवार को 52.78% वोट मिले. उसके वोटों में विगत चुनाव की तुलना में 35.75% का जबरदस्त इजाफा हुआ. इस चुनाव में तृणमूल टॉप से खिसक कर दूसरे पायदान पर चली गयी. उसका वोट भी 6.58% घट गया. माकपा की तो हवा ही निकल गयी. माकपा प्रत्याशी को महज 6.59% वोट से संतोष करना पड़ा. पार्टी को 22.13% का नुकसान उठाना पड़ा.

प्रत्याशी घोषित होते ही जगन्नाथ का विरोध भी शुरू

राणाघाट लोकसभा क्षेत्र से बतौर भाजपा उम्मीदवार जगन्नाथ सरकार के नाम की घोषणा होने के साथ ही उनका विरोध भी शुरू हो गया. उनके खिलाफ पोस्टर लग गये. लिखा था- भ्रष्ट, चरित्रहीन, ‘जगा’ हटाओ, नदिया बचाओ’ आदि-आदि. रात के अंधेरे में ये पोस्टर किसने लगाये, यह स्पष्ट नहीं हुआ. पर पोस्टर पर भाजपा नदिया दक्षिण लिखा था. यह फर्जी भी हो सकता है. पर, चुनाव से पहले भाजपा उम्मीदवार को लेकर पार्टी में कलह की बात सामने आने से राणाघाट दक्षिण के भाजपा नेता असहज हैं. उधर, जगन्नाथ सरकार का आरोप है कि तृणमूल के लोग ये सब कर रहे हैं. भाजपा का इससे कोई लेना-देना नहीं है. वहीं, स्थानीय तृणमूल नेताओं का कहना है कि पोस्टर भाजपा कार्यकर्ता और समर्थकों ने ही लगाये, क्योंकि वे जगन्नाथ सरकार को पंसद नहीं कर रहे हैं.

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राणाघाट के 07 विस क्षेत्र

  • नवद्वीप तृणमूल पुंडरीकाक्ष साहा
  • शांतिपुर तृणमूल ब्रज किशोर गोस्वामी
  • राणाघाट उत्तर पश्चिम भाजपा पार्थ सारथी चटर्जी
  • कृष्णागंज भाजपा आशीष कुमार विश्वास
  • राणाघाट उत्तर पूर्व भाजपा असीम विश्वास
  • राणाघाट दक्षिण भाजपा मुकुटमणि अधिकारी
  • चाकदाह भाजपा बंकिम चंद्र घोष

मतदाताओं के आंकड़े

  • कुल मतदाता 1756445
  • पुरुष मतदाता 904849
  • महिला मतदाता 851548
  • थर्ड जेंडर 000048

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