कोलकाता.
कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि भारत सरकार के पास देश के हर संस्थान पर पूर्ण अधिकार नहीं है. न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य ने भारत के चुनाव आयोग के उस तर्क को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें कहा गया था कि चुनाव ड्यूटी के लिए दो सहकारी बैंकों के कर्मचारियों की मांग की जा सकती है. न्यायालय ने पाया कि चूंकि दोनों बैंक सरकार (केंद्र या राज्य) द्वारा वित्त पोषित या नियंत्रित नहीं हैं, इसलिए उनके कर्मचारियों से ऐसे कार्यों की मांग नहीं की जा सकती. न्यायाधीश ने अपने फैसले में कहा कि हम एक अधिनायकवादी राज्य में काम नहीं करते हैं और इस तरह यह नहीं माना जा सकता है कि सरकार के पास किसी भी उद्देश्य के लिए भारत के क्षेत्र के भीतर संचालित किसी भी संस्था या उपक्रम पर पूर्ण अधिकार है, जब तक कि संविधान या किसी विशिष्ट कानून में विशेष रूप से ऐसा न कहा गया हो.न्यायालय ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 159 इसीआइ को इन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए लोक सेवकों की मांग करने में सक्षम बनाती है, जिसका अर्थ केंद्रीय या राज्य अधिनियम के तहत स्थापित संस्थानों में काम करने वाले या केंद्र या राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित और वित्त पोषित व्यक्तियों से होगा.
इसके अलावा, न्यायाधीश ने कहा कि इसीआइ की ओर से यह दिखाने के लिए कोई सामग्री पेश नहीं की गयी है कि जिस बैंक में याचिकाकर्ता कार्यरत थे वह एक सहकारी समिति थी जो या तो केंद्र सरकार या राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित थी. न्यायालय ने बताया कि इन बैंकों को केवल पश्चिम बंगाल सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 2006 के तहत पंजीकृत किया गया है, लेकिन राज्य या केंद्र सरकारों द्वारा सीधे वित्त पोषित या नियंत्रित नहीं किया गया है. इसलिए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इन बैंकों के कर्मचारियों को चुनाव कर्तव्य निभाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है