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West Bengal : लोकसभा चुनाव में डीपफेक पहुंचा सकता है नेताओं को बड़ा नुकसान

West Bengal : दीपक कुमार का कहना है कि डीपफेक का निर्माण डीप लर्निंग तकनीक से किया जाता है. यही वजह है कि डीप लर्निंग और फेक शब्दों से मिलकर डीपफेक बना. डीप लर्निंग तकनीक की मदद से असली वीडियो को किसी अन्य वीडियो और फोटो के साथ बदल दिया जाता है.

कोलकाता, विकास कुमार गुप्ता : लोकसभा चुनाव में नेताओं के लिए डीपफेक बड़ा खतरा बन सकता है. चुनाव प्रचार की बदलती तकनीक एवं तरीके को लेकर साइबर एक्सपर्ट डीपफेक के गलत इस्तेमाल पर चिंता जता रहे हैं. साइबर एक्सपर्ट (cyber expert) दीपक कुमार ने डीपफेक से बचने के लिए कई सुझाव दिये. बता दें कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और अभिनेत्री रश्मिका मंदाना डीपफेक के शिकार हो चुके हैं.

डीपफेक की क्या है विशेषता

दीपक कुमार का कहना है कि डीपफेक का निर्माण डीप लर्निंग तकनीक से किया जाता है. यही वजह है कि डीप लर्निंग और फेक शब्दों से मिलकर डीपफेक बना. डीप लर्निंग तकनीक की मदद से असली वीडियो को किसी अन्य वीडियो और फोटो के साथ बदल दिया जाता है. देखने में यह असली जैसा लगता है. डीपफेक तकनीक जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क (जीएएन) का इस्तेमाल करती है. यह तकनीक असली वीडियो-फोटो के एल्गोरिदम और पैटर्न की नकल करती है. इसके बाद जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क की सहायता से असली जैसा दिखने वाला फर्जी वीडियो या फोटो तैयार करती है.

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गलत संदेश फैलाकर किया जा सकता है भ्रमित

साइबर एक्सपर्ट दीपक कुमार का कहना है कि चुनावी मौसम में डीपफेक का इस्तेमाल कर आम लोगों के बीच किसी राजनेता के नाम से गलत संदेश फैलाया जा सकता है, जिसे कि- मैने इसबार चुनाव से अपना नाम वापस ले लिया है, या फिर आप मुझे वोट नहीं देना चाहते हैं तो इस पार्टी को वोट दे दें. मुझे वोट देना या मेरी इस पार्टी को वोट देना एक ही बात है. चुनाव जीतने के बाद मै यह कर दूंगा, यह उपहार बंटवा दूंगा, इतने रुपये वोटरों को को मिलेंगे ! चुनाव के पहले मैने दूसरी पार्टी ज्वायन कर ली है !

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किसी भी नेता के नाम गलत संदेश हो सकता है डीपफेक

श्री कुमार कहते हैं कि जब तक नेताओं को डीपफेक की सच्चाई सामने आएंगी तब तक उस नेता का काफी नुकसान हो चुका होगा. फिलहाल इसके ऊपर रोक लगाने को लेकर कोई तकनीक विकसित नहीं की गयी है. दीपक कुमार का कहना है कि डीपफेक को लेकर दिक्कत यह है कि मैसेज प्रसारित करने वालों का पता लगाना पुलिस के लिए काफी मुश्किल होता है. तकनीक इतनी विकसित हो चुकी है कि, वोटरों को भ्रमित करने के लिए इस तकनीक के जरिये किसी की आवाज निकालकर मैसेज प्रसारित किया जा सकता है.

लोकसभा चुनाव के दौर में डीपफेक तकनीक की काफी चर्चाएं

श्री कुमार ने आशंका जताई कि, लोकसभा चुनाव के दौर में डीपफेक तकनीक की काफी चर्चाएं है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक चुनाव में नुकसान पहुंचा सकती है. इसके इस्तेमाल से किसी को गुमराह करने या बहकाने के लिए किया जा सकता है. डीपफेक तकनीक के इस्तेमाल से ऑडियो-वीडियो, फोटो या किसी अन्य फार्मेट में किया जा सकता है. इस तकनीक से तैयार फोटो, वीडियो और ऑडियो असली जैसे दिखने हैं, लेकिन नकली होते हैं. श्री कुमार ने लोगों से आग्रह किया कि वर्ष 2017 में पहली बार एक रेडिट यूजर ने डीपफेक शब्द का इस्तेमाल किया था. चुनाव में इस तकनीक से किसी नेता या दल के बारे में गलत प्रचार किया जा सकता है. गलत संदेश भी फैलाया जा सकता हैं. ऐसे में चुनावी दौर में किसी भी ऑडियो-वीडियो या फोटो किसी नेता को लेकर कुछ गलत संदेश फैलाया जाये तो इसपर आंख बंदकर विश्वास न करें, इसकी जांच रिपोर्ट सामने आने का इंतजार करें.

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ऐसे करें डीपफेक की पहचान

श्री कुमार का कहना है कि मौजूदा समय में इंटरनेट में कई ऐसे वेबसाइट्स हैं, जो डीपफेक सामग्री की पहचान करती हैं. अगर किसी व्यक्ति को उनकी किसी तस्वीर या वीडियो पर संदेह है, तो वे पहले उसकी जांच जरूर करें. कई बार इन वीडियो और फोटो को गौर से देखने पर ही पता लग जाता है कि ये नकली हैं. वीडियो देखते वक्त हाथ-पैर को काफी गौर से देखें. चेहरे का भाव भंगिमा, लिपसिंग और बॉडी मूवमेंट को गौर से देखने पर आसानी से डीपफेक वीडियो की पहचान की जा सकती हैं. इन सबके बीच कुछ एआई टूल की मदद से डीपफेक वीडियो-फोटो की जांच की जा सकती हैं.

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डीपवेयर स्कैनर की मदद से फेक वीडियो-ऑडियो के बारे में आसानी से जानकारी मिलेगी

एआइ और नॉट वेबसाइट की मदद से आप एआई की मदद से तैयार ऑडियो और फोटो की पहचान कर सकते हैं. हाईव मोडरेशन (Hive Moderation) इस टूल की मदद से भी एआई जनरेटेड सामग्री को पहचाना जा सकता है. डीपवेयर स्कैनर (Deepware Scanner) इस वेबसाइट की मदद से फेक वीडियो-ऑडियो के बारे में आसानी से जानकारी ले सकते हैं. दीपक कुमार ने बताया कि, डीपफेक तकनीक किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन से जुड़े कानून का उल्लंघन है. डीपफेक सामग्री की पहचान करना काफी कठिन है. जब तक इसकी पहचान की जाएगी तब तक चुनाव हो चुके होंगे. ऐसा करनेवाले आरोपी को सख्त सजा देने का कानून में प्रावधान है. लोगों को पहले से इसे लेकर सतर्क रहने की जरूरत है. किसी भी वीडियो या भाषण या तस्वीर को देखकर तुरंत उसपर भरोसा न करें. वह डीपफेक भी हो सकता है.

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