बनगांव : मतुआ समुदाय के गढ़ में सीएए को लेकर मुसलमानों में मतभेद
सीएए को आकार देनेवाले नागरिकता आंदोलन का केंद्र माने जाने वाले मतुआ समुदाय के गढ़ बनगांव में मुस्लिम समुदाय के बीच विभिन्न प्रकार की मान्यताएं, आकांक्षाएं और मतभेद हैं.
एजेंसी, बनगांव. सीएए को आकार देनेवाले नागरिकता आंदोलन का केंद्र माने जाने वाले मतुआ समुदाय के गढ़ बनगांव में मुस्लिम समुदाय के बीच विभिन्न प्रकार की मान्यताएं, आकांक्षाएं और मतभेद हैं. मूल रूप से पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) से संबंध रखनेवाला हिंदू शरणार्थी समुदाय मतुआ लंबे समय से बनगांव के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक प्रमुख शक्ति रहा है. नागरिकता अधिकारों के संघर्ष में इस समुदाय की जड़ें गहरी हैं और सीएए इनके लिए उम्मीद की किरण है, जिसमें बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के सताए हुए हिंदू अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है. हरे-भरे खेतों और सामुदायिक रूप से एकजुट माने जाने वाले भारत-बांग्लादेश सीमा से सटे इस क्षेत्र में फिलहाल ध्रुवीकरण का असर साफ देखा जा सकता है क्योंकि राजनीतिक दल विवादास्पद मुद्दों पर विरोधाभासी रुख अपना रहे हैं. साथ ही राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) की आशंकाएं भी बढ़ रही हैं. इस माहौल के विपरीत, बनगांव की मुस्लिम आबादी सीएए को लेकर अनिश्चितता का सामना कर रही है, जिससे उनकी चुनौतियां बढ़ गयी हैं. एक ओर कुछ लोग इसे (सीएए) उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों की मदद के लिए एक उदार अधिनियम के रूप में देखते हैं, तो वहीं दूसरी ओर इसे भेदभाव का एक तरीका माना जाता है, जो पहले से मौजूद सामाजिक-धार्मिक तनाव को और बढ़ा रहा है. बनगांव में भारत-बांग्लादेश सीमा के पास मल्लिकपुर गांव के अमीरुल मंडल (62) ने कहा, “सीएए की क्या जरूरत है जब हम सभी यहां के नागरिक हैं. हम अपना वोट कैसे डाल सकते हैं और हमारे पास सभी जरूरी दस्तावेज कैसे हैं? ” वर्षों से यहां खेती कर रहे मिंटू रहमान नामक किसान ने कई लोगों के डर को व्यक्त किया. उन्होंने सवाल किया, ””मुसलमानों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है, जबकि उनकी जड़ें इस मातृभूमि से जुड़ी हैं? यह भेदभावपूर्ण है कि सीएए में मुसलमानों को हटा दिया गया है. अधिनियम के तहत सभी धर्मों को शामिल किया जाना चाहिए था.” बनगांव में मुस्लिम समुदाय में मतभेद स्पष्ट है, जो सीएए को लेकर व्यापक राष्ट्रीय विमर्श को प्रतिबिंबित करता है. एक ओर वे लोग हैं जो इस अधिनियम का पुरजोर विरोध करते हुए इसे राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला मानते हैं. उनका तर्क है कि सीएए से मुसलमानों को स्पष्ट रूप से बाहर करके संविधान में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है, जिससे पहले से ही संवेदनशील समुदाय हाशिए पर चला गया है. इसके विपरीत, बनगांव में ऐसे मुसलमान भी हैं, जो न चाहते हुए भी सीएए के प्रति मौन समर्थन व्यक्त करते हैं. अमीरुल दफादार ने कहा, ””सीएए पड़ोसी देशों के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए है. यह कानून नागरिकता देने को लेकर है, इसे छीनने के लिए नहीं. हमारे जैसे मुस्लिम जो पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं, इस देश के नागरिक हैं.”” बनगांव में सायस्तनगर के भाजपा के बूथ अध्यक्ष अमीरुल अपने क्षेत्र के हर मुस्लिम परिवार तक पहुंचकर लोगों को सीएए को लेकर चल रहे “नकारात्मक अभियान ” के बारे में बताने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “तृणमूल कांग्रेस मुसलमानों को सीएए के खिलाफ भड़का रही है. वे उन्हें गुमराह कर रहे हैं. ” मोइदुल शेख ने भी इसी तरह की बात कही और जोर देकर कहा कि जब तक उनकी पहचान और नागरिकता निर्विवाद रहेगी, तब तक समुदाय के लोगों को नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के बारे में उतनी चिंता नहीं करनी चाहिए जितनी उन्हें असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) को लेकर थी. उन्होंने कहा, “अगर हमारे अधिकार और दर्जा सुरक्षित है, तब तक सीएए को लेकर अनावश्यक चिंता की कोई जरूरत नहीं है. हम एनआरसी के विरोध में हैं, लेकिन सीएए के खिलाफ नहीं. ” बापन शेख ने बनगांव में कई लोगों की भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा, “सीएए के कार्यान्वयन के साथ ही एक डर मंडरा रहा है कि एनआरसी आ सकती है, जिससे हमें गुजरना पड़ेगा और हमारी नागरिकता को लेकर अनिश्चितता पैदा हो जाएगी.’’ मुस्लिम निवासियों के एक बड़े वर्ग को डर है कि उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. राजनीतिक विश्लेषक मोइद-उल-इस्लाम ने कहा, “चूंकि मुसलमान उत्पीड़ित अल्पसंख्यक हैं, इसलिए उनके पास अपने सभी दस्तावेज मौजूद हैं. वे अपने दस्तावेजों को लेकर बहुत पक्के हैं. असम में भी, हमने ऐसी ही स्थिति देखी थी, जहां मुसलमानों की तुलना में अधिक हिंदुओं के नाम एनआरसी में नहीं थे.” अखिल भारतीय मतुआ महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने माना कि सीएए को लेकर मुसलमानों के एक वर्ग में गुस्सा और भ्रम है. बनगांव (सुरक्षित) लोकसभा सीट पर 19 लाख मतदाता हैं, जिनमें से लगभग 70 प्रतिशत मतदाता शरणार्थी व अनुसूचित जाति से संबंध रखने वाले मतुआ समुदाय के हैं. लगभग 25 प्रतिशत मतदाता अल्पसंख्यक हैं. जिले के तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रतन घोष ने कहा, ””भाजपा सीएए के नाम पर एक खतरनाक खेल खेल रही है. वह अपने राजनीतिक लाभ के लिए समुदायों को विभाजित कर रही है.”” इस निर्वाचन क्षेत्र के मुसलमानों ने पिछले कुछ चुनावों में पारंपरिक रूप से तृणमूल को वोट दिया है. हरिणघाटा से भाजपा के विधायक असीम सरकार ने कहा कि तृणमूल सांप्रदायिक पत्ते खेलकर माहौल खराब करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा, ””तृणमूल को पता है कि वह बनगांव में हार जायेगी, इसलिए वह सीएए के बाद एनआरसी का राग अलाप रहे हैं. हमने शिक्षित मुसलमानों को बता दिया है कि सीएए से उन्हें कोई खतरा नहीं है.””
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है