कोलकाता. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. हर कोई कयास लगा रहा है कि दिलीप घोष इस दौड़ में आगे हैं. हालांकि इस बारे में अभी तक उनका कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. दिलीप घोष फिर से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं. इसका प्रमाण शुक्रवार को उनके विधानसभा में अचानक पहुंचने से लगाया जा रहा है. चर्चा है कि लगातार दो बार लोकसभा के सदस्य रहने के बावजूद इस बार उनकी सीट बदल दी गयी थी, जिसकी वजह से वह बर्दवान-दुर्गापुर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार कीर्ति आजाद से हार गये. वह प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. चूंकि इस बार प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार केंद्रीय राज्य मंत्री बन गये हैं, इसलिए उन्हें पार्टी की ओर से तीन महीने का वक्त दिया गया है. इस दौरान उन्हें प्रदेश भाजपा का सांगठनिक चुनाव करा लेना होगा. चुनाव होने के बाद वह अपनी जिम्मेवारी नये अध्यक्ष को सौंप देंगे. लिहाजा लोग कयास लगा रहे हैं कि दिलीप घोष के पुराने प्रदर्शन व अनुभव को देखते हुए उन्हें फिर से यह जिम्मेवारी मिल सकती है. प्रदेश भाजपा में चर्चा है कि नये व पुराने भाजपाइयों के विवाद के बीच संगठन का चुनाव होता है, तो पुराने कार्यकर्ता भारी पड़ेंगे, क्योंकि मताधिकार का हक व पार्टी के गठन में उनकी पकड़ मजबूत है. शायद यही वजह है कि लोकसभा चुनाव हारने के बाद दिलीप घोष पुराने कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करने का मुद्दा उठा रहे हैं. ऐसे में संगठन का चुनाव होता है, तो पुराने भाजपा नेताओं में दिलीप घोष का मुकाबला पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा के साथ हो सकता है. हालांकि राहुल सिन्हा फिलहाल चुप्पी साधे हुए हैं. नये नेताओं में अगर मुकाबला हुआ, तो शुभेंदु अधिकारी का नाम भी सामने आ रहा है.
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