Loading election data...

पार्टी में गुटबाजी व भितरघात को हार की वजह मान रहे दिलीप घोष

आरएसएस के कहने पर ही सक्रिय राजनीति में आया. मेरा संसदीय क्षेत्र जब बदल दिया गया तो मैं संघ से बात किया था और कहा था कि मैं चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं हूं.

By Prabhat Khabar News Desk | June 8, 2024 1:01 AM

कोलकाता. लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की जब तालिका सामने आयी, तभी से भाजपा के अंदर गुटबाजी और भीतरघात की आशंका जताने लगे थे लोग. भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व सासंद दिलीप घोष की सीट बदलने को लेकर पार्टी के अंदर ही जोरदार सवाल उठा था, लेकिन तब पार्टी अनुशासन के नाम पर विरोध की आवाज दबा दी गयी थी, लेकिन नतीजे आने के बाद गुटबाजी और भीतरघात के आरोप अब खुलकर लगने लगे हैं. खुद दिलीप घोष इस बात को खुलेआम कह रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह बर्दवान-दुर्गापुर सीट से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी के कहने पर चुनाव लड़े. उनकी सीट क्यों बदली गयी, इसका जवाब पार्टी की ओर से उनको अभी तक नहीं मिला है. शुक्रवार को पत्रकारों से बात करते हुए श्री घोष ने कहा कि मैं राजनीति में नहीं आना चाहता था. आरएसएस के कहने पर ही सक्रिय राजनीति में आया. मेरा संसदीय क्षेत्र जब बदल दिया गया तो मैं संघ से बात किया था और कहा था कि मैं चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं हूं. बावजूद इसके मुझे लड़ना पड़ा. जब प्रदेश भाजपा की कमान उनके हाथ में थी, तो उन्होंने पार्टी को काफी मजबूत किया. राज्य में संगठन को काफी आगे बढ़ाया. पार्टी का वोट प्रतिशत 40 फीसदी तक पहुंचा दिया था, लेकिन गुटबाजी और भीतरघात की वजह से राज्य में भाजपा की सीटें कम हुई हैं. बर्दवान-दुर्गापुर लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का संगठन नाम का कोई अस्तित्व ही नहीं था. आधे से ज्यादा नेता मंडल कमेटी की बैठक में रहते ही नहीं थे. कई तो ऐसे हैं, जो चुनाव लड़ाने के नाम पर कमाई के लिए पार्टी में रहते हैं. उनका रोजगार ही यही है. इसके अलावा कुछ दलाल किस्म के लोग भी पार्टी में हैं. उन्होंने कहा कि उनको एक साल पहले ही प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर कहा गया कि अपने क्षेत्र में ज्यादा वक्त दें. जब पार्टी ने यह फैसला लिया था उसी वक्त मैंने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को कह दिया था कि पार्टी की मौजूदा समय में जो स्थिति है, उसको देखते हुए पांच से ज्यादा सीट लाने की हैसियत नहीं है. जो लोग पंचायत का चुनाव जीतने की हैसियत नहीं रखते उन लोगों को निर्णय लेने की जिम्मेवारी दी गयी है. मेरा चुनाव क्षेत्र बदलने के पहले मुझे चर्चा करने तक की जरूरत नहीं समझी गयी. मेरी उम्मीदवारी भी अंतिम समय में घोषित की गयी. नतीजतन मुझे तैयारी करने का वक्त ही नहीं मिला. जाहिर है इसके पीछे कोई तो वजह रही होगी. नतीजतन तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार कीर्ति आजाद से एक लाख 38 हजार वोटों से उनको पराजित होना पड़ा, जबकि वह दो बार से लगातार सासंद रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Next Article

Exit mobile version