कोलकाता.कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक दुष्कर्म मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि बलात्कार के मामलों में अकेले डीएनए साक्ष्य निर्णायक सबूत नहीं है. यह फैसला तब आया जब अदालत ने बलात्कार के आरोपी एक व्यक्ति को आरोप मुक्त करने से इंकार कर दिया, जबकि डीएनए रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया था कि वह पीड़ित के बच्चे का जैविक पिता नहीं था. कलकत्ता हाइकोर्ट की एकल-न्यायाधीश पीठ के न्यायाधीश अजय कुमार गुप्ता ने कहा कि डीएनए साक्ष्य को पुष्ट साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसे बलात्कार का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता है. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो अधिनियम) के तहत मामलों की सुनवाई के लिए नामित विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाले आरोपियों द्वारा दायर एक पुनरीक्षण आवेदन पर सुनवाई करते हुए अदालत ने ये टिप्पणियां कीं. इस मामले में आरोपी द्वारा बलात्कार के मामले से मुक्ति की मांग करते हुए दायर एक याचिका शामिल थी. मामले की सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाइकोर्ट ने कहा कि डीएनए रिपोर्ट, जिसमें यह संकेत है कि आरोपी बच्चे का जैविक पिता नहीं था, आरोपी को बरी करने का का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है. न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता ने इस बात पर जोर दिया कि बलात्कार के आरोप को केवल ठोस सबूतों से ही साबित किया जा सकता है और अकेले डीएनए सबूत से मामला स्थापित नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि डीएनए विश्लेषण रिपोर्ट को बलात्कार के संबंध में निर्णायक सबूत नहीं कहा जा सकता है और इसे केवल मुकदमे में पुष्टिकारक सबूत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और यह पुख्ता सबूत नहीं है.
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