संवाददाता, कोलकाता. पुलिस की छोटी-सी गलती की कीमत पिछले छह साल से जेल में बंद तीन बांग्लादेशी चुका रहे हैं. इनके नाम नूर आलम, अब्दुल मुनाफ व मोहम्मद रिदवान हैं. आखिरकार कलकत्ता हाइकोर्ट के हस्तक्षेप से तीनों को रोशनी की किरण दिखायी दी. न्यायाधीश जय सेनगुप्त ने गुरुवार को तीन कैदियों को उनके देश लौटाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार से कदम उठाने का निर्देश दिया. कैदियों को उम्मीद है कि अपने देश लौट कर वे वहां हो रहे चुनाव में हिस्सा ले सकेंगे. उनका कहना था कि पुलिस की एक छोटी-सी गलती के कारण उन्हें छह साल जेल में रहना पड़ा. पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग भी उठायी. तीनों गरीब परिवार से हैं. रोजगार की तलाश में कंटीले तार लांघ कर भारत आये थे. सभी बांग्लादेश के कॉक्सबाजार जिले के निवासी हैं. भारत में घुसपैठ उनके लिए काल बन गया. उन्हें छह साल जेल में गुजारने पड़े. मामलाकारी की अधिवक्ता आफरीन बेगम ने बताया कि वर्ष 2017 में मार्च महीने में नूर आलम अपने दो दोस्तों के साथ भारत आने के लिए निकले थे. 29 मार्च की देर रात स्वरूपनगर थाना इलाके के कैजुरी सीमा से अवैध रूप से घुसपैठ करते समय बीएसएफ ने उन्हें पकड़ लिया. 30 मार्च को बीएसएफ ने उन्हें स्वरूप नगर थाने को सौंप दिया. उन्होंने कहा कि बांग्लादेशी के साथ म्यांमार के कुछ लोगों को भी बीएसएफ ने घुसपैठ करते समय पकड़ा था. पुलिस ने बांग्लादेश की जगह उन्हें म्यांमार का निवासी बता दिया था. पुलिस ने जो चार्जशीट दी थी, उसमें भी उन्हें म्यांमार का निवासी बताया गया था. मामले की केस डायरी अदालत में जमा की गयी. अदालत में केंद्र के प्रतिनिधि ने बताया कि म्यांमार में उनके ठिकानों की तलाश की गयी, लेकिन कुछ पता नहीं चला. यदि उनका ठिकाना बांग्लादेश बताया गया होता, तो वह तीन महीने के भीतर अपने देश लौट सकते थे. लेकिन म्यांमार में उनका ठिकाना नहीं मिलने पर उन्हें दमदम जेल में भेज दिया गया. छह साल उन्होंने जेल में गुजारे. राज्य सरकार की ओर से अदालत में कहा गया कि उन्हें बांग्लादेश लौटाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाये जायेंगे.
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