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सात वर्ष से अधिक समय तक लापता कर्मचारी माना जा सकता है मृत

लकत्ता हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि कोई कर्मचारी सात वर्षों से अधिक समय से लापता है, तो उसे मृत माना सकता है.

एक मामले की सुनवाई के दौरान हाइकोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण निर्णय

संवाददाता, कोलकाता

कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि कोई कर्मचारी सात वर्षों से अधिक समय से लापता है, तो उसे मृत माना सकता है. उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को उचित लाभ प्राप्त करने का अधिकार है. यह निर्णय न्यायमूर्ति राय चट्टोपाध्याय ने दिया. गौरतलब है कि तारा देवी ने अपने पति सुखदेव प्रसाद सिंह (जो बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी थे) की मृत्यु की आशंका पर एकमुश्त अनुग्रह राशि की प्राप्ति के लिए रिट याचिका दायर की थी. बताया गया है कि सुखदेव प्रसाद सिंह दो फरवरी 2007 से लापता हैं. पुलिस और रिश्तेदारों के प्रयासों के बावजूद अब तक उनका कोई सुराग नहीं मिल सका है. याचिकाकर्ता ने पहले बैंक से सेवानिवृत्ति लाभ (जिसमें ग्रेच्युटी और भविष्य निधि शामिल है) और अपने बेटे रंजीत कुमार की अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए संपर्क किया था, लेकिन बैंक ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति चट्टोपाध्याय ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया और कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की धारा 108 के अनुसार, बैंक को सात वर्षों से अधिक समय तक लापता रहने के बाद कर्मचारी को मृत मानना चाहिए. अदालत ने कहा कि बैंक ने पहले ही इस संभावना के आधार पर टर्मिनल लाभ जारी किये थे और इसलिए उसे अनुग्रह राशि भी जारी करनी चाहिए. अदालत ने बैंक ऑफ इंडिया को याचिकाकर्ताओं को अनुग्रह राशि जारी करने का निर्देश दिया. साथ ही आवेदन की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक राष्ट्रीयकृत बैंक में बचत बैंक ब्याज की दर से पूरी राशि का भुगतान करने के लिए कहा. हाइकोर्ट ने बैंक को आदेश का पालन करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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