आसनसोल. बाराबनी थाने की पुलिस के खिलाफ गुरुवार को दलित व आदिवासी समाज के लोगों के आंदोलन के बाद उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है, लेकिन मामला खत्म नहीं हुआ. बाराबनी थाने में इन पर गैर-जमानती धाराओं के तहत मामला दर्ज है. प्राथमिकी में 13 लोगों को नामजद के साथ अन्य 250 लोगों को आरोपी बनाया गया है. नामजद लोग जमानत ले लेंगे, लेकिन अन्य में जो लोग हैं वे क्या करेंगे? उनकी तो जमानत भी नहीं होगी, पुलिस किसी को भी मामले में कभी भी गिरफ्तार कर सकती है. यह खुला मामला है, जिसे लेकर लोग डरे हुए हैं. इस मुद्दे को लेकर दलित व आदिवासी समाज के लोगों में अंदर ही अंदर आग सुलग रही है, जो कभी भी बड़ा रूप ले सकती है. बाराबनी थाना के अवर निरीक्षक शोभन साहा की शिकायत पर केस नंबर 96/24 में बीएनएस की धारा 143/147/148/149/153ए/353 के तहत मामला दर्ज हुआ है, जिसमें 149 व 353 अपराध के आधार पर गैर-जमानती भी हो सकती है, 153 (ए) गैरजमानती है. शिकायत में इसका उल्लेख है कि बाराबनी थाने पर प्रदर्शन के दौरान पुलिस के खिलाफ ‘चमचागिरी’ शब्द का प्रयोग किया गया. थाने के समक्ष प्रदर्शन से सड़क अवरोध हुआ, जिससे लोगों को आने-जाने में दिक्कत हुई. इस प्रदर्शन को लेकर पुलिस ने आस-पास के विभिन्न जाति व धर्मो के लोग और स्थानीय दुकानदारों में सांप्रदायिक तनाव पैदा होने की आशंका जतायी. प्रदर्शन में शामिल विशेष समुदाय के लोगों के रवैये से गांव में शांति का माहौल बिगड़ने की प्रवृति बनी. रैली में आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से आसपास के गांवों में तनाव पैदा हो गया. इसके लिए कोई अनुमति भी नहीं ली गयी थी. इस शिकायत के आधार पर धाराएं लगायी गयी हैं. गौरतलब है कि बाराबनी थाना क्षेत्र में कोयला व बालू लदी गाड़ियां बेरोक-टोक चलती हैं. इसका तय समय है. कोयला व बालू की गाड़ियां बेरोक-टोक चलने का कुछ लोगों ने विरोध किया. तृणमूल नेता व पुचड़ा ग्राम पंचायत के सदस्य ने बताया कि बालू की गाड़ी से दुर्घटना हुई, जिसके बाद से लोगों विरोध करने लगे. ऐसा होने की पुलिसिया कार्रवाई होने लगी. आरोप है कि पुलिस, लोगों को झूठे केस में फंसाने लगी. इसके खिलाफ थाने पर प्रदर्शन करने पर 13 को नामजद सहित 250 लोगों के खिलाफ झूठा मामला बना दिया गया. आंदोलन की पूरी घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद है. देखने से ही पता चल जायेगा कि पुलिस ने कैसे लोगों को झूठे मामले में फंसा दिया है. जिन लोगों को नामजद बनाया, उनको जमानत लेने के लिए मोटी राशि चुकानी पड़ेगी और जब तक मामला चलेगा, कोर्ट में पेश होना पड़ेगा. एक दिहाड़ी श्रमिक रोजी-रोटी कमायेगा या कोर्ट के चक्कर काटेगा. पुलिस की यह ज्यादती असहनीय है. उन्होंने संकेत दिया कि इस मुद्दे पर नये सिरे से आंदोलन होगा.
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