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राज्य के अस्पतालों में ऑटिज्म पीड़ित बच्चों का नि:शुल्क इलाज

टिज्म एक छोटे बच्चों में होने वाली ऐसी स्थिति है, जो बच्चों के व्यवहार पर गहरा असर डालती है. इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) भी कहा जाता है और यह बच्चों में व्यवहारिक बदलाव लाता है, जिसे समय पर पहचानना जरूरी है.

शिव कुमार राउत, कोलकाता

ऑटिज्म एक छोटे बच्चों में होने वाली ऐसी स्थिति है, जो बच्चों के व्यवहार पर गहरा असर डालती है. इसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) भी कहा जाता है और यह बच्चों में व्यवहारिक बदलाव लाता है, जिसे समय पर पहचानना जरूरी है.

आमतौर पर, बच्चे के जन्म के बाद पहले छह महीने से लेकर एक साल तक यह देखा जाता है कि वह सामान्य तरीके से व्यवहार कर रहा है या नहीं. ऑटिज्म के लक्षण स्पष्ट होते हैं, लेकिन कई बार माता-पिता इन्हें सामान्य व्यवहार मानकर नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसा करने से बच्चे की स्थिति और बिगड़ सकती है और उसका विकास प्रभावित हो सकता है. इसलिए, जल्दी पहचान और सही इलाज बहुत महत्वपूर्ण हैं. पर समय पर पहचान नहीं होने के कारण एक बच्चें जीवन से इस बीमारी से जूझना पड़ सकता है.

पर पश्चिम बंगाल में रहने वाले ऑटिज्म पीड़ित बच्चे के माता पिता को अब चिंता करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि, राज्य में लोकसभा चुनाव से पहले जिला स्तर पर ‘डिस्ट्रिक्ट ऑटिज्म सेंटर’ खोले गये हैं. पर इन केंद्रों के संबंध में लोगों के पास जानकारी नहीं है. यहां नि:शुल्क इलाज व जांच के साथ ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को राज्य व केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली विभिन्न सुविधाओं का भी लाभ मिलेगा. वहीं, अब ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को इलाज के लिए कोलकाता जाना नहीं पड़ेगा.

इन अस्पतालों में खोले गये हैं ‘डिस्ट्रिक्ट ऑटिज्म सेंटर’

स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राज्य हर जिला अस्पताल में ‘डिस्ट्रिक्ट ऑटिज्म सेंटर’ खोले गये हैं. इसके अलावा जिलों के बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भी ऑटिज्म सेंटर खोले गये हैं. यहां पीड़ित बच्चों में ऑटिज्म की पहचान के साथ नि:शुल्क इलाज की व्यवस्था है. अब तक इस समस्या से जूझ रहे बच्चों को ऑटिज्म डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट भी दिया जायेगा. पहले यह सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता था. पहले ऑटिज्म पीड़ितों को मेंटल डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट दिया जाता है. क्योंकि ऐसे बच्चों का मानसिक एवं बौद्धिक विकास नहीं हो पाता है. इसे ध्यान में रख कर ही बच्चों को मेंटल सर्टिफिकेट दिया जाता था. बता दें कि निजी अस्पताल में ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के इलाज पर लाखों का खर्च आ सकता है, जो सभी की पहुंच से बाहर है.

ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को मिलेगा भत्ता एवं यूआइइडी कार्ड

बता दें कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को राज्य सरकार की ओर से हर महीने एक हजार रुपया का भत्ता भी मिलता है. साथ ही उन्हें केंद्र सरकार की ओर से जारी यूआइडी कार्ड (आटिज्म पहचान) भी दिये जायेंगे. यूआइडी कार्ड के जरिये रेलवे से यात्रा के दौरान पीड़ित बच्चों को रेलवे के किराये पर छूट मिलती है. ऐसे में इलाज के साथ केंद्र व राज्य सरकार की विभिन्न योजना का लाभ भी बच्चे उठा सकेंगे.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

बालूरघाट जिला अस्पताल के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ अभिषेक हंस ने बताया कि ऑटिज्म को मेडिकल भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर कहते हैं. यह एक विकास संबंधी गड़बड़ी है, जिससे पीड़ित व्यक्ति को बातचीत करने में, पढ़ने-लिखने में और समाज में मेलजोल बनाने में परेशानियां आती हैं. ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है, जिससे पीड़ित व्यक्ति का दिमाग, अन्य लोगों के दिमाग की तुलना में अलग तरीके से काम करता है. पीड़ित बच्चों को दूसरों के साथ खेलने में दिक्कत होती है. वे आंखों में आंखें डालकर बात नहीं कर पाते. दूसरों की भावनाओं को समझने में कठिनाई होती है. ऐसे में बच्चा एक वर्ष की उम्र में अगर खड़ा होकर ना चल सके, तो समस्या है. वहीं, डेढ़ से दो वर्ष में बच्चा बात नहीं कर पाये, सुनने की क्षमता होने के बाद भी बुलाने पर रिस्पांस ना करे, तो यह ऑटिज्म के लक्षण हो सकते हैं. इन लक्षणों के देखे जाने पर तुरंत नजदीकी जिला अस्पताल के डिस्ट्रिक्ट ऑटिज्म सेंटर में जाना चाहिये अथवा बच्चे को किसी बाल रोग विशेषज्ञ या क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिये.

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