कोलकाता, शिव कुमार राउत : प्रचंड गर्मी और लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) को लेकर पश्चिम बंगाल में घमासान मचा हुआ है. सत्तापक्ष से लेकर विरोधी दल के नेता, विधायक लोकसभा चुनाव के प्रचार में लगे हुए हैं. राज्य में सियासी पारा लगतार चढ़ता जा रहा है. ऐसे में सबसे ज्यादा राज्य के ब्लड बैंक प्रभावित हो रहे हैं. इस चुनावी मौसम में राज्य भर के सरकारी ब्लड बैंकों में खून की किल्लत हो गयी है. सरकारी ब्लड बैंकों में निगेटिव ग्रुप वाले ब्लड नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में ब्लड बैंकों में खून के बदले खून लिया जा रहा है. जिलों में स्थित ब्लड बैंक की हालत तो और भी ज्यादा खराब है.
प्रतिदिन 200 से 250 यूनिट रक्त की होती है सप्लाई
कोलकाता के मानिकतला स्थित राज्य के सबसे बड़े ब्लड बैंक, इंस्टीट्यूट ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूशन मेडिसिन एंड इम्यूनो हेमाटोलॉजी (सेंट्रल ब्लड बैंक) की भी यही दशा है. सेंट्रल ब्लड बैंक में भी खून के बदले खून लिया जा रहा है. यानी ब्लड डोनेट करने वाले मरीज के परिजनों को ही रक्त दिया रहा है. गौरतलब है कि राज्य के इस सबसे बड़े ब्लड बैंक में करीब एक हजार यूनिट रक्त संग्रह कर रखने की क्षमता है. वहीं, प्रतिदिन यहां से 200 से 250 यूनिट रक्त की सप्लाई होती है. लेकिन चुनावी मौसम में यहां रक्त की भारी किल्लत देखी जा रही है. खुद सेंट्रल ब्लड बैंक के कर्मचारी भी खून की कमी होने की बात स्वीकार रहे हैं.
क्यों है ऐसी स्थिति
इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि, क्लब, एनजीओ, राजनीतिक दल या किसी नेता, विधायक या मंत्री की मदद से रक्तदान शिविर लगवाते हैं. पर चुनाव के दौरान किसी भी दल के नेता, मंत्री या राजनीतिक दल रक्तदान शिविर का आयोजन नहीं कर सकते हैं, क्योंकि ज्यादातर रक्तदान शिविरों में नेता भाषण भी देते हैं. फिलहाल उनका ऐसा करना, चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन माना जायेगा. वहीं, चुनाव के समय सभी नेता-मंत्री चुनाव प्रचार में व्यस्त रहते हैं. इस वजह से वे इस ओर ध्यान भी नहीं देते हैं. वहीं, क्लब व एनजीओ भी इस समय राजनीतिक गतिविधियों में रहते हैं.
रक्तदान में कमी
इस बारे में स्वयंसेवी संस्था मेडिकल बैंक के सेक्रेटरी डी आशीष के अनुसार स्थिति बेहद भयावह है. लोकसभा चुनाव के कारण रक्त संग्रह में करीब 90 प्रतिशत की कमी आ गयी है. कोलकाता के ब्लड बैंक की भी हालत खराब है. थैलेसिमिया व हिमोफिलिया से पीड़ित रोगियों और हादसे के शिकार होने वालों को मुश्किल से रक्त मिल रहा है. थैलेसिमिया, हिमोफिलिया से पीड़ित को हर 15-20 दिन के अंतराल पर रक्त चढ़ाना पड़ता है. आशीष ने कहा कि बंगाल में हर साल 15 लाख यूनिट खून की जरूरत पड़ती है, जबकि लगभग 11 लाख यूनिट रक्त ही संग्रह हो पाता है.
हर महीने करीब चार हजार यूनिट रक्त की जरूरत
वहीं, हर महीने करीब चार हजार यूनिट रक्त की जरूरत है. अभी लोकसभा चुनाव के कारण 20 से 30 फीसदी ही रक्त संग्रह हो पा रहा है. मुख्य रूप से बंगाल में रक्त का संग्रह रक्तदान शिविर द्वारा होता है.रक्तदान शिविर के आयोजन में राजनीतिक दल और क्लब मुख्य भूमिका निभाते हैं. 60 प्रतिशत रक्तदान शिविर का आयोजन राजनीतिक पार्टियां और 40 प्रतिशत रक्तदान का आयोजन क्लब करते हैं. चूंकि लोकसभा चुनाव चल रहा है, इसलिए सभी राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और क्लब के सदस्य चुनाव कार्यों में व्यस्त हैं, इसलिए रक्तदान शिविरों का आयोजन पूरी तरह ठप पड़ गया है. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति जुलाई के अंत तक रह सकती है.
स्वास्थ्य विभाग भी जिम्मेवार
डी आशीष के अनुसार इस स्थिति के लिए राज्य स्वास्थ्य विभाग भी बहुत हद तक जिम्मेवार है. विभाग को पता है कि गर्मी और चुनाव के इस मौसम में रक्तदान शिविर का आयोजन न के बराबर होता है. इस स्थिति में विभाग को आमलोगों से रक्तदान के लिए अपील करनी चाहिए, लेकिन पूरे राज्य में कहीं भी रक्तदान की अपील वाला कोई होर्डिंग लगाया नहीं गया है. आशीष ने बताया कि मेडिकल बैंक की ओर से उत्तर व दक्षिण कोलकाता के कुछ इलाकों में रक्तदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए होर्डिंग लगाये जा रहे हैं.राज्य में ब्लड बैंकों की संख्याजानकरी के अनुसार राज्य सरकार द्वारा संचालित 82 व केंद्र द्वारा संचिता 16 ब्लड बैंक हैं, जबकि महानगर समेत राज्यभर में 35 निजी ब्लड बैंक भी हैं.
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ऐसे लोग कर सकते हैं रक्तदान
18 से 65 की उम्र वाले लोग ही रक्तदान कर सकते हैं. वहीं, रक्तदान करने वाले व्यक्ति का वजन कम से कम 45 किलोग्राम होना चाहिए. एक व्यक्ति के शरीर में साढ़े छह लीटर रक्त होता है, जबकि एक व्यक्ति से 350 एमएल रक्त लिया जाता है.
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