इस मामले में कुछ प्रिंसिपलों का कहना है कि फीस संरचना ठीक होनी चाहिए लेकिन निजी स्कूलों के कामकाज में ज्यादा दखल ठीक नहीं है. अलग से कमेटी बनाने से शिक्षा की गुणवत्ता पर भी इसका असर पड़ेगा. जो लोग डोनेशन ले रहे हैं, उनके खिलाफ सरकार कार्रवाई करे, लेकिन सबको कटघरे में खड़ा करना ठीक नहीं है. वहीं कुछ सीबीएइस स्कूलों के शिक्षकों ने मुख्यमंत्री के इस निर्णय का स्वागत किया है.
इस मामले में बिरला हाइ स्कूल की प्रिंसिपल मुक्ता नैन का कहना है कि फीस को लेकर एक पैरामीटर होना चाहिए, जिससे मध्यवर्गीय परिवार को भी अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाने का माैका मिल सके. हमारे यहां पहले से ही यह नियम लागू है. सेल्फ रेग्युलेशन सब-कमेटी की एक सदस्य ने बताया कि 10-12 दिनों में कमेटी की दूसरी बैठक विकास भवन में होगी. इसमें सदस्यों की राय ली जायेगी. इसके बाद ही आगे की रणनीति तय होगी. एक एकेडमिक सलाहकार का कहना है कि ऑडिट-रिपोर्ट के लिए स्कूलों को बार-बार बुलाना ठीक नहीं है. स्कूल जो ट्रस्ट चला रहे हैं, उनको पहले ही अपने खर्चे व अन्य ऑडिट रिपोर्ट जमा करवानी होती है. फिर से कमीशन में जमा करवाने का कोई मतलब नहीं है. स्कूलों को चार या पांच श्रेणियों में बांटा जाना चाहिए. इसी के अनुसार कमेटी को मानदंड तय करने चाहिए.
सत्तारूढ़ पार्टी को अपनी छात्र यूनियन की गतिविधियों पर नजर रखनी होगी. दक्षिण कोलकाता के एक कॉलेज प्रिंसिपल का कहना है कि दाखिले में पारदर्शिता के लिए कॉलेजों को बैंक पर क्यों निर्भर रहना पड़ेगा? इसकी एक दूसरी मजबूत व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए. कॉलेज कैंपस में ही बैंक की व्यवस्था करें या सेंट्रली काउंसेलिंग की व्यवस्था कैंपस में ही करें, जिससे किसी को भी पैसा वसूलने का माैका नहीं मिलेगा. छात्र अपने कॉलेज में शांति से पढ़ पायेंगे व दाखिला ले पायेंगे. उच्च शिक्षा मंत्री के नये फरमान को लेकर कॉलेज प्रिंसिपल बहुत जल्दी एक बैठक करेंगे. उनका कहना है कि प्रिंसिपलों के काम करने का भी अपना एक दायरा है. वे यूनियन के मामले में छात्रों से ज्यादा कुछ नहीं कह सकते हैं.