विद्यार्थी के लिए ज्ञान व विनय आवश्यक

कोलकाता. जन-जन को मानवता का संदेश देनेवाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में अपनी धवल सेना के साथ वर्ष 2017 के लिए चातुर्मास के लिए कोलकाता के राजारहाट स्थित महाश्रमण विहार में मंगल प्रवास कर रहे हैं. चातुर्मास प्रवास स्थल में बने अध्यात्म […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 12, 2017 10:30 AM
कोलकाता. जन-जन को मानवता का संदेश देनेवाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा के प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में अपनी धवल सेना के साथ वर्ष 2017 के लिए चातुर्मास के लिए कोलकाता के राजारहाट स्थित महाश्रमण विहार में मंगल प्रवास कर रहे हैं.
चातुर्मास प्रवास स्थल में बने अध्यात्म समवसरण के भव्य पंडाल से अपनी मंगलवाणी से ज्ञानगंगा का प्रवाह कर जन-जन के मानस को अभिसिंचित कर रहे हैं. अविरल प्रवाहित होनेवाली इस ज्ञानगंगा में श्रद्धालु नियमित रूप से डुबकी लगाने के लिए पहुंचते हैं और आत्मतोष प्राप्त कर रहे हैं. शुक्रवार को अपने मंगल प्रवचन में आचार्यश्री ने उपस्थित श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने जीवन में ज्ञान का विकास करने का प्रयास करना चाहिये.
ज्ञान भी पात्रता देख कर ही देना चाहिए. जो विनीत हो, उपशांत हो उसको ज्ञान देना चाहिए. विद्यार्थी को ज्ञानार्जन करने का प्रयास करना चाहिए. ज्ञानार्जन करने के लिए विद्यार्थी को सुविधावादी विचारधारा से निकलने की प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि विद्यार्थी यदि सुविधावादी बनेगा तो वह ज्ञानार्जन अच्छे से नहीं कर पायेगा. इसलिए विद्यार्थी को सुविधावादी विचारधारा से मुक्त होकर ज्ञानार्जन करने का प्रयास करना चाहिए. ज्ञान के साथ ही विद्यार्थियों में विनय के भाव का विकास होना चाहिये.
आचार्यश्री ने विनय को विद्या का विभूषण बताते हुए कहा कि विद्या विनय से सुशोभित होती है. इसलिए विद्यार्थी के जीवन में ज्ञान के साथ-साथ विनय का भी विकास होना आवश्यक है. विनय के साथ अर्जित की जानेवाली विद्या श्रेयस्कर होती है. आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को उत्प्रेरित किया.

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