आज मदर टेरेसा की जयंती है. मदर टेरेसा को पिछले साल कैथोलिक चर्च ने संत की उपाधि प्रदान की थी. उन्हें 1979 में शांति का नोबल पुरस्कार मिला था. मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन गरीबों-बेसहारों की सेवा में बिताया. मदर की उपाधि तो उन्हें चर्च की तरफ से मिली थी, लेकिन उनके प्रति लोगों में इतना प्रेम था कि वे उन्हें इसी भावना से मां कहकर बुलाते थे.
मदर टेरेसा जन्म से अल्बेनिया की थीं. उनका नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था. 26 अगस्त 1910 में उनका जन्म हुआ था. मात्र 12 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना जीवन धर्म को समर्पित करने का निर्णय कर लिया. 1928 में वे सिस्टर्स अॅाफ लोरेटो के साथ आ गयीं और 1929 में भारत पहुंचीं.1948 में उन्होंने भारत की नागरिकता ली और 1950 में मिशन अॅाफ चैरिटी की स्थापना की. मदर ने अपना पूरा जीवन गरीबों और जरूरतमंदों को समर्पित कर दिया था. पांच सितंबर 1997 में उनकी मृत्यु हो गयी. उन्होंने कुष्ठ रोगियों की काफी सेवा की और इसके लिए उन्हें विश्वस्तर पर जाना जाता है. मदर ने अपने बारे में एक बार कहा था -मेरा खून अल्बीनिया का है, मैं भारत की नागरिक हूं, आस्था से कैथोलिक नन हूं, मेरा हृदय संपूर्ण विश्व का है. मेरे हृदय में प्रभु यीशु मसीह का वास है.
मदर टेरेसा पर लगे धर्मांतरण के गंभीर आरोप
मदर टेरेसा के आलोचकों का कहना है कि उन्होंने मानव सेवा सिर्फ और सिर्फ धर्मांतरण के उद्देश्य से की थी. उनके सेवाभाव के पीछे धर्मांतरण का रहस्य छिपा था. कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें ईसाई धर्म के प्रचार में अभूतपूर्व भूमिका निभाई और इसी उद्देश्य से वे भारत आयीं भी थीं. क्रिस्टोफ़र हिचेन्स, माइकल परेंटी और अरूप चटर्जी जैसे लोगों ने उनपर धर्मांतरण को लेकर हमला भी किया. बंगाल और झारखंड में ईसाई धर्म के प्रचार में उनकी अहम भूमिका रही.