कोलकाता : मुकुल से कन्नी काटने लगे हैं तृणमूल के नेता-समर्थक

कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस से नाता तोड़ने के पहले मुकुल राय से संपर्क या फोन पर उनके साथ रहने का आश्वासन देनेवाले नेता भी अब उनसे कन्नी काटने लगे हैं. कुल मिलाकर मुकुल के लिए अब परीक्षा की घड़ी है. जिन लोगों को वह अपना करीबी समझते थे, आज वे भी खुलकर उनका साथ देते […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 13, 2017 8:57 AM
कोलकाता : तृणमूल कांग्रेस से नाता तोड़ने के पहले मुकुल राय से संपर्क या फोन पर उनके साथ रहने का आश्वासन देनेवाले नेता भी अब उनसे कन्नी काटने लगे हैं. कुल मिलाकर मुकुल के लिए अब परीक्षा की घड़ी है. जिन लोगों को वह अपना करीबी समझते थे, आज वे भी खुलकर उनका साथ देते नजर नहीं आ रहे हैं.
खुद भाजपा में मुकुल राय को लेने के फैसले पर असमंजस की स्थिति है. भाजपा नेता चाहते हैं कि अपनी अलग पार्टी बना कर मुकुल राय यह साबित करें कि उनके साथ कितने सांसद, विधायक और पार्टी के नेता-कार्यकर्ता आ रहे हैं. और तो और कल तक मुकुल राय के काफी करीबी माने जानेवाले तृणमूल कांग्रेस के विद्रोही सांसद कुणाल घोष तो अब उनकी नियत पर ही सवाल उठाने लगे हैं. मुकुल ने कुणाल की ओर से आयोजित दुर्गा पूजा के उदघाटन के दौरान ही पार्टी के पद से इस्तीफा देने का संकेत देते हुए इशारों में ममता बनर्जी पर निशाना साधा था
अब वही कुणाल भी कन्नी काट रहे हैं. बकौल कुणाल, मैं भाजपा का विरोधी नहीं हूं. लेकिन भाजपा के नेताओं को मैंने पत्र देकर साफ कहा है कि मुकुल राय अब भी खुद को पाक-साफ नहीं कर पाये हैं. जिस भ्रष्टाचार से लड़ने की बात वह कह रहे हैं, उसी तृणमूल कांग्रेस को वह क्लीन-चिट दे रहे हैं. ऐसे में उनके नियत पर सवाल उठना स्वाभाविक है, क्योंकि भ्रष्टाचार में डूबी तृणमूल कांग्रेस के बारे में वह कुछ नहीं कह रहे हैं. उसे क्लीन-चिट दे रहे हैं. आरोपी जनप्रतिनिधियों पर लगे आरोप को वह व्यक्तिगत कार्य का परिणाम बता रहे है. ऐसे में उनका साथ लेकर चलने का क्या मतलब है? भाजपा की कौन-सी मजबूरी है, जो उनको साथ ले?
पहली बार, जब ममता के साथ मुकुल के संबंधों में खटास आयी थी, तो उस वक्त विधायक शिलभद्र और शिउली साहा खुलकर उनके साथ गये थे. लेकिन बाद में मुकुल के पार्टी के साथ संबंध जैसे ही सुधरे, वे शिलभद्र और शिउली साहा को भूल गये. पार्टी के अंदर दोनों की जमकर फजीहत हुई थी.
बाद में किसी तरह स्थिति सामान्य हुई. अब दोनों विधायक भी मुकुल के साथ जाने की बजाय, तृणमूल में रहते हुए ममता बनर्जी के नेतृत्व में काम करने की बात कह रहे हैं. वजह साफ है मुकुल राय की विश्वसनियता.
इसके अलावा उनके करीबी रहे अमिताभ मजुमदार, सुजीत घोष , प्रदीप घोष जैसे नेता भी इस बार उनके साथ नहीं हैं. कभी मुकुल के करीबी रहे आरिफ खान, अब दूरी बरत रहे हैं. और तो और छात्र नेता सुजीत श्याम, जो कल तक मुकुल राय के परछाई के रूप में जाने जाते थे, वह भी आज बदलते दौर को देखते हुए मुकुल राय से दूरी बना ली है. खुद मुकुल राय के विधायक पुत्र शुभ्रांशु राय भी ममता बनर्जी का साथ नहीं छोड़ने का एलान कर चुके हैं.

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