अहिंसा, संयम और तप से दुर्गति से बच सकता है आदमी : आचार्यश्री महाश्रमण

बर्दवान/कोलकाता : बंगधरा पर वर्तमान में एक साथ दो सूर्यों का उदय एक साथ हो रहा है. एक वह आकशीय सूर्य जो संसार को नियमित प्रकाश बांटने को अबाध रूप से आसमान में निर्धारित समय पर कर देता है तो एक धरती का महासूर्य भी अपनी ज्ञानरूपी रश्मियों से मानवता को ज्योतित करने के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 11, 2017 8:19 AM

बर्दवान/कोलकाता : बंगधरा पर वर्तमान में एक साथ दो सूर्यों का उदय एक साथ हो रहा है. एक वह आकशीय सूर्य जो संसार को नियमित प्रकाश बांटने को अबाध रूप से आसमान में निर्धारित समय पर कर देता है तो एक धरती का महासूर्य भी अपनी ज्ञानरूपी रश्मियों से मानवता को ज्योतित करने के लिए अबाध रूप से गतिमान है. इस प्रकार बंगधारा दो-दो सूर्यों के आलोक से आलोकित होकर स्वयं को अभिभूत महसूस कर रही है.

वर्तमान में वर्ष 2017 का कोलकाता महानगर में चतुर्मास काल संपन्न कर पुनः मानवता को स्थापित करने लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ आसमान के सूर्य के साथ बंगधारा को अपने चरणरज से पावन करते जन-जन को अपने ज्ञान से आलोक बांटने को निकल जा रहे हैं. उनके पावन चरणरज जहां पड़ते हैं, मानों वहां की धरती तीर्थ बनती जा रही है.

इसी क्रम में अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल के साथ शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के महेश्वरपुर हाईस्कूल से मंगल प्रस्थान किया.

अखंड परिव्राजकता के परिचायक आचार्यश्री महाश्रमणजी का आज लगभग सोलह किलोमीटर का प्रलंब विहार वाला था. फिर भी समताधारी महातपस्वी के चेहरे पर एक मोहक मुस्कान और दर्शन करनेवालों के आशीष की वृष्टि करते राष्ट्रीय राजमार्ग दो पर गतिमान थे.

इस प्रलंब विहार के साथ ही हुगली जिले को छोड़ प्रवर्धमान होती अहिंसा यात्रा अपने प्रणेता के साथ बर्दवान जिले में प्रवेश किया. कोलकाता चतुर्मास के उपरांत बर्दवान जिले में अहिंसा यात्रा का पहला पड़ाव बना आबूझाटी का वाणी विद्यापीठ हाईस्कूल. आचार्यश्री ने लगभग साढ़े दस बजे स्कूल प्रांगण में पावन प्रवेश किया. आचार्यश्री के चरणरज पड़ते ही स्कूल की भूमि मानों पावन हो गयी.

विद्यालय प्रांगण में उपस्थित विद्यार्थियों, ग्रामीणों और अन्य श्रद्धालुओं को आचार्यश्री ने चार गतियों नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव का वर्णन करते हुए पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य का जन्म मिलना बहुत सौभाग्य की बात है. यह एक सुअवसर है, जिसके माध्यम से आदमी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है.

आदमी को अहिंसा, संयम और तप में रत रहने का प्रयास करना चाहिए. अहिंसा, संयम और तप की आराधना से आदमी दुर्गति से बच सकता है. आदमी स्वयं सही मार्ग पर चले और दूसरों को भी सही मार्ग पर चलने को प्रेरित कर सकता है.

आदमी को ज्यादा गुस्सा से बचने का प्रयास करना चाहिए. घर, व्यापार, समाज में कलह की आग को भड़काने की अपेक्षा बुझाने का प्रयास करना चाहिए और अहिंसात्मक जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए. अहिंसा के साथ-साथ आदमी को अपनी मन, वचन और काया का संयम रखने का प्रयास करना चाहिए. साथ ही आदमी तप की साधना भी करे तो अहिंसा और संयम दोनाें पुष्ट हो सकता है. इन तीनों को आदमी अपने जीवन में उतारने का प्रयास करे तो वह दुर्गति से बच सकता है और मोक्ष का भी वरण कर सकता है.

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