कोलकाता: महानगर का एक चर्चित पेंटर कद्रदानों की अनदेखी के कारण अब परिवार का पेट भरने के लिए फुटपाथी हाॅकर बन गया है. हालात ऐसे हैं कि अब वह कभी पेटिंग नहीं बनना चाहते हैं. इतना ही नहीं, अब ‘आर्टिस्ट’ बुलाये जाने पर भी उनका गुस्सा फूट पड़ता है. उनका आरोप है कि पेंटिंग ने उन्हें कुछ नहीं दिया, बल्कि उनसे सबकुछ छीन लिया.
एक समय था जब रमदान हुसैन की पेटिंग की खूब मांग थी. कोलकाता नगर निगम कार्यालय में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बनायी उनकी पेंटिंग आज भी लोगों को आकर्षित करती है. इसी तरह कोलकाता के चैपलिन थिएटर में ‘द ड्रीम मर्चेंट’ नाम से लगी उनकी पेटिंग के बारे में आज भी लोग बातें करते हैं. पर, आज हालात बदल गये हैं. आज रमदान सिर्फ और सिर्फ फुटपाथी हॉकर हैं और वह चाहते हैं कि उन्हें इसी नाम से अब जाना जाये.
अब रमदान अपनी पत्नी के साथ मिल कर शहर के न्यू मार्केट में बच्चों के लिए खिलौने और जूतों की दुकान चलाते हैं. अगर कोई पहचानने वाला उन्हें आर्टिस्ट बोल दे, तो वह तुरंत टोक देते हैं. कहते हैं, ‘मैं सिर्फ हॉकर हूं. मुझे आर्टिस्ट मत बोलिए.’ आज रमदान अपनी पेंटिंग की विधा को भूल जाना चाहते हैं. कहते हैं कि पेटिंग ने मुझे कुछ नहीं दिया. इसके लिए वह अपनी किस्मत को जिम्मेदार ठहराते हैं.
दरसअल, कुछ वर्षों पहले आंखों की एलर्जी के बाद रमदान की जिंदगी बदल गयी. आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह इसका इलाज नहीं करा पाये और इस कारण से उन्हें पेंटिंग छोड़नी पड़ी. बाद में हालात और बदतर होते गये तो उन्हें दुकान खोलने को मजबूर होना पड़ा.
रमदान के चार बच्चे हैं. वह बताते हैं, ‘एक बार ऑस्ट्रेलिया से हैदराबाद घूमने आयी एक महिला टूरिस्ट को मेरी पेटिंग पसंद आ गयी. बाद में मेरे हालात को देखते हुए उन्होंने मेरे बच्चों की जिम्मेदारी उठाने का वादा किया. उन्हीं के कारण मैं अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में भेज पाया. बच्चों की फीस देने के साथ ही मेरी बड़ी बेटी की शादी में भी उन्होंने ही मदद की.’
कोलकाता के इस गुमनाम ‘पिकासो’ की मदद के लिए कभी शहर के आर्टिस्ट आगे नहीं आये. अगर कला के किसी कद्रदान की नजरें इनायत हुईं तो कोलकाता यह गुमनाम ‘पिकासो’ शायद एक बार फिर पेंटिंग के लिए ब्रश उठा सकता है.