नोटबंदी से नकली करंसी का गढ़ टूटने के कगार पर

मालदा. पूरे देश में भारतीय नकली नोटों का जाल बिछाने के लिए कुख्यात मालदा जिले का कालियाचक अब धीरे-धीरे इस जाल से मुक्त होता दिख रहा है. सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों के अनुसार लगातार धर-पकड़ और निगरानी के चलते इस धंधे से जुड़े लोगों में अब जाकर प्रशासन का भय कायम हुआ है, लेकिन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 23, 2017 8:44 AM
मालदा. पूरे देश में भारतीय नकली नोटों का जाल बिछाने के लिए कुख्यात मालदा जिले का कालियाचक अब धीरे-धीरे इस जाल से मुक्त होता दिख रहा है. सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों के अनुसार लगातार धर-पकड़ और निगरानी के चलते इस धंधे से जुड़े लोगों में अब जाकर प्रशासन का भय कायम हुआ है, लेकिन इस धंधे पर अंकुश लगाने में सबसे बड़ा योगदान नोटबंदी का रहा है.

नोटबंदी ने इसे तगड़ी चोट पहुंचायी है. भारत-बांग्लादेश बॉर्डर से तस्करी के जरिये लाये जानेवाले फेक इंडियन करेंसी नोट्स के गढ़ कालियाचक में पिछले सालभर में सबसे कम मात्रा में नकली नोट जब्त किये गये हैं. हालांकि सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि इसी समय और कड़े उपाय किये जाने चाहिए, ताकि यह धंधा करने वाले फिर से सिर न उठा सकें.

जो नये नकली नोट आ रहे हैं, उनकी क्वॉलिटी बेहद घटिया है. कुछ सिक्योरिटी फीचर्स की नकल तो कर ली गयी है, लेकिन केमिकल कंपोजिशन का तोड़ नहीं निकाला जा सका है. बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स के मुताबिक, नोटबंदी के बाद से अब तक 55.66 लाख रुपये की फेस वैल्यू के नकली नोट जब्त किये गये हैं.
2016 में आंकड़ा 1.48 करोड़, 2015 में 2.61 करोड़ और 2014 में 1.80 करोड़ का था. एफआइसीएन के मामले देखने वाली कोलकाता पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने कहा कि उसने 2017 में 14 लाख, 2016 में 52 लाख और 2015 में एक करोड़ रुपये की फेस वैल्यू के नकली नोट पकड़े.
बीएसएफ के साउथ बंगाल फ्रंटियर के आइजी पीएसआर आंजनेयुलु ने कहा, ‘नोटबंदी के बाद एफआइसीएन में काफी कमी आयी है. पिछले 10 महीनों से हमारी पकड़ में जो एफआइसीएन आ रहे हैं, उनकी क्वॉलिटी बेहद घटिया है. इस तरह कहें तो नोटबंदी हमारे लिए पॉजिटिव रही.’
नोटबंदी के एलान के बाद कालियाचक में नकली नोटों की पहली खेप 24 नवंबर 2016 को एक पैकेट में मिली थी, जिसे संभवत: बॉर्डर के दूसरी ओर से फेंका गया था. उन नोटों की फेस वैल्यू 11.8 लाख रुपये की थी. तब से बीएसएफ ने 16 बार नोट जब्त किये हैं और छह लोगों को पकड़ कर पुलिस के हवाले किया है.
14 फरवरी को एनआइए और बीएसएफ ने उमर फारुक को गिरफ्तार कर उसके पास से 6000 रुपये के नकली नोट जब्त किये थे. वह सैंपल कंसाइनमेंट था, जिसे वह लोकल मार्केट में टेस्ट करना चाहता था. नोटबैन के बाद से एनआइए ने दो मामलों की जांच की थी. इनमें से एक राजकोट का था और दूसरा मालदा का. एनआइए ने पहले मामले में करीब 3.92 करोड़ रुपये के नकली नोट पकड़े और एक ग्रुप पर धोखाधड़ी के आरोप में मुकदमा किया. एनआइए ने मालदा मामले में हबीबुर रहमान और फकीरुल रहमान को 3.90 लाख रुपये के एफआइसीएन ले जाने के आरोप में पकड़ा था, जो उन्हें बांग्लादेश के एक नागरिक से मिले थे.
नकली नोटों का धंध अब नरम पड़ गया है, लिहाजा लोग काम की तलाश में दूसरे इलाकों का रुख करने लगे हैं. 2007 में एक लाख रुपये के एफआइसीएन के साथ पकड़े जाने के बाद सात साल जेल में गुजारकर बाहर आये 40 साल का शेख बहीरुद्दीन अब मुंबई में मजदूरी करता है. उसने कहा, ‘कुछ करने को था ही नहीं. जॉब कार्ड था, लेकिन 2008 से केवल चार बार हमें काम मिला था. सीमा के पार से माल लाते-ले जाते नहीं, तो घर कैसे चलता?’ उसने बताया कि नोटबंदी के बाद से इस धंधे से जुड़े अधिकांश लोग धीरे-धीरे अब दूसरे काम के जरिये अपनी आजीविका चलाने लगे हैं.

Next Article

Exit mobile version