हम सभी के भीतर होना चाहिए भारतीय संस्कृति का गौरवबोध

कोलकाता. आधुनिकता हमेशा ही प्राचीनता के गर्भ से पैदा होती है. जिस तरह गंगा का प्रवाह सतत है वैसे ही हमारी संस्कृति का प्रवाह अव्याहत है. हमारी गीति, रीति, हमारी प्रीति हमारे भीतर से ही पुनर्नवा होनी चाहिए. भारत के राष्ट्र जीवन से रस लेकर ही हम विकास कर सकते हैं. हमारे भीतर भारतीय संस्कृति […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 10, 2017 11:17 AM
कोलकाता. आधुनिकता हमेशा ही प्राचीनता के गर्भ से पैदा होती है. जिस तरह गंगा का प्रवाह सतत है वैसे ही हमारी संस्कृति का प्रवाह अव्याहत है. हमारी गीति, रीति, हमारी प्रीति हमारे भीतर से ही पुनर्नवा होनी चाहिए. भारत के राष्ट्र जीवन से रस लेकर ही हम विकास कर सकते हैं. हमारे भीतर भारतीय संस्कृति का स्वाभिमान व गौरवबोध होना चाहिए. यह कहना है उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित का.

वह श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा आयोजित डॉ अरुण प्रकाश अवस्थी स्मृति व्याख्यान के अवसर पर संघश्री सभागार में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद विषय पर बतौर प्रधान वक्ता बोल रहे थे. श्री दीक्षित ने कहा कि भारत का राष्ट्रवाद यूरोपीय देशों से भिन्न है क्योंकि इसकी मूल में संस्कृति है, जो मानवता को समर्पित है. भारतीय राष्ट्रवाद की धारा संस्कृति के कारण ही अजर अमर रहती है. अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान समय में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की समझ को विकसित करने की जरूरत है.

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ अरुण प्रकाश अवस्थी रचित भारत वंदना व गजल से हुई जिसे ओमप्रकाश मिश्र ने स्वर दिया. स्वागत भाषण डॉ ऋषिकेश राय तथा धन्यवाद ज्ञापन बंशीधर शर्मा ने किया. कार्यक्रम का संचालन साहित्यमंत्री योगेशराज उपाध्याय ने किया. मंच पर उपस्थित विशिष्ट जनों में लक्ष्मीकांत तिवारी, उत्तर प्रदेश विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे तथा संस्था के मंत्री महावीर बजाज शामिल थे. अतिथियों का स्वागत शंकरबक्स सिंह, सत्यप्रकाश राय, गिरधर राय व दुर्गा व्यास ने किया.
कार्यक्रम में पुस्तकालय द्वारा प्रकाशित तीन ग्रंथों, अमर आग है (अटल बिहारी वाजपेयी), जीवन पथ पर चलते चलते(आचार्य विष्णुकांत शास्त्री) व विचार वीथिका (डॉ प्रेमशंकर त्रिपाठी) का हृदय नारायण दीक्षित ने लोकार्पण किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में शांतिलाल जैन, सत्येंद्र सिंह अटल, चंद्रकुमार जैन, गोविंद जैथलिया व श्रीराम सोनी सक्रिय रहे. इस अवसर पर महावीर प्रसाद मणकसिया, भागीरथ चांडक, महावीर प्रसाद रावत, अनिल ओझा, रावेल पुष्प, रमाकांत सिन्हा, कमलेश मिश्र, खुशहालचंद्र आर्य, सदीशचंद्र शुक्ला, राजेंद्र द्विवेदी, अशोक तिवारी, अनुराग जी, योगेश अवस्थी, सीताराम तिवारी, विधुशेखर शास्त्री, गुड्डन सिंह आदि थे.

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