स्वास्थ्य धन को बचाने के लिए हो रहे कंगाल

कोलकाता: स्वास्थ्य ही धन है. लेकिन आज आधुनिकता की इस दौड़ में स्वास्थ्य रूपी धन को सुरक्षित रखने की बजाय हम रुपये कमाने में जुटे हैं. लेकिन स्वास्थ्य रूपी धन को सुरक्षित न रखना कभी-कभी हमारे लिए काफी नुकसानदेह साबित होता है. कई बार तो स्वास्थ्य धन को बचाने के लिए हमें अपने जीवन की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 13, 2017 10:03 AM

कोलकाता: स्वास्थ्य ही धन है. लेकिन आज आधुनिकता की इस दौड़ में स्वास्थ्य रूपी धन को सुरक्षित रखने की बजाय हम रुपये कमाने में जुटे हैं. लेकिन स्वास्थ्य रूपी धन को सुरक्षित न रखना कभी-कभी हमारे लिए काफी नुकसानदेह साबित होता है. कई बार तो स्वास्थ्य धन को बचाने के लिए हमें अपने जीवन की पूरी कमाई तक खर्च कर देनी पड़ती है.

वर्ष 2015 की एनएसएसओ रिपोर्ट के अनुसार, अस्पताल में भर्ती भारतीयों में से 26 प्रतिशत से अधिक लोगों को इलाज के लिए अपनी परिसंपत्तियां बेचना पड़ती हैं, जबकि छह प्रतिशत लोग तो स्वास्थ्य खर्च के कारण ही कंगाल हो जाते हैं. इसका सबसे प्रमुख कारण है लोगों के बीच स्वास्थ्य बीमा को लेकर जागरूकता की कमी. आज भी ग्रामीण भारत के करीब 86 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र के 82 प्रतिशत लोग स्वास्थ्य बीमा योजना से दूर हैं.

जिन लोगों के पास स्वास्थ्य संबंधित बीमा योजना है, वे भी सरकारी बीमा योजनाओं जैसे आरएसबीवाई के तहत हैं. निजी स्वास्थ्य बीमा की जागरूकता बहुत कम है, जिसकी वजह से स्वास्थ्य सेवाएं और स्वास्थ्य बीमा के कम प्रवेश के कारण रोग लोगों के जीवन में बोझ सा बन गया है. भारतीय लोगों में साक्षरता की कमी, जानकारी का अभाव, तंग मानसिकता और सांस्कृतिक प्रथाएं आदि कई कारण कठिनाइयों की वजह है.

अधिक कहर ढा रही हैं लाइफ स्टाइल संबंधित बीमारियां
आज भारत सहित ज्यादातर राष्ट्र कई तरह के रोग का सामना कर रहे हैं. मधुमेह और लाइफस्टाइल संबंधी बीमारियां, संक्रामक रोगों से अधिक कहर ढा रही हैं. मधुमेह से पीड़ित 50.9 मिलियन लोगों की संख्या के साथ भारत पूरे विश्व की ‘मधुमेह राजधानी’ के रूप में बदल गया है. वहीं, दिल का दौरा और कैंसर जैसी बीमारियां अब युवाओं को भी हो रही हैं. वर्ष 2014 आेइसीडी स्वास्थ्य परिसंख्यान के अनुसार, वर्ष 2012 में, देश में मरनेवाले 1,00,000 लोगों में से 253 लोगों की मौत सिर्फ संक्रामक रोगों के कारण हुई, जो कि 178 के वैश्विक औसत से कहीं ज्यादा है.

क्या कहते हैं आंकड़े
डब्ल्यूएचओ के वर्तमान आंकड़ों के अनुसार, भारत में 61% मौत लाफइस्टाइल संबंधी रोगों के कारण होती है. पिछले एक दशक में लाइफस्टाइल संबंधी बीमारियों से पीड़ित होकर अस्पताल में भर्ती होनेवालों की संख्या में 16-18 प्रतिशत की लगातार वृद्धि हो रही है. दूसरी तरफ, हम भारत और दुनिया भर में गंभीर तीवे श्वसन सिंड्रोम (सार्स), चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू, इबोला ज्वर जैसी बीमारियों का भी उदय देख रहे हैं.
स्वास्थ्य बीमा के प्रति लोगों को जागरूक करना जरूरी
आय स्तर में तेजी से बढ़ोतरी ने जीवन के स्तर को बदला है. लोगों को सबसे ज्यादा चिकित्सा सुविधाएं मिल रही हैं. अनावश्यक बाहरी जेब खर्चों के बिना बेहतर स्वास्थ्य सेवा का एक तरीका व्यापक स्वास्थ्य बीमा रखना है. स्वास्थ्य बीमा उत्पाद के तहत प्रमुख अस्पताल में भर्ती के खर्च के साथ ही न्यू एज जीवनशैली से संबंधित स्वास्थ्य स्थितियों जैसे मोटापा, मातृत्व जटिलताओं आदि को शामिल किया गया है. इसके अलावा अन्य सुविधाएं भी हैं, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है. मसलन वैकल्पिक दवाइयां, फिटनेस और निवारक देखभाल आदि स्वास्थ्य क्षेत्र में बीमा को बढ़ावा देते हैं. लोग जीवन में उम्र बढ़ने के बाद स्वास्थ्य बीमा लेना पसंद करते हैं. धारणा यह है कि वे कम उम्र में स्वस्थ रहेंगे और केवल बुढ़ापे में उन्हें चिकित्सीय देखभाल की आवश्यकता होगी. हालांकि मौजूदा समय में विशेष रूप से छोटी उम्र में ही स्वास्थ्य बीमा लेना ज्यादा उपयोगी साबित होगा. जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, बीमारी जटिल होने लगती है और तब जाकर परेशानियां पेश आती हैं. निश्चित उम्र के बाद स्वास्थ्य बीमा कवर खरीदना भी कठिन हो जाता है, लिहाजा समय रहते स्वास्थ्य बीमा लेना बेहतर होता है.
स्वास्थ्य खर्च में प्रत्येक वर्ष हो रही 15 प्रतिशत की वृद्धि
पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा मुद्रास्फीति समग्र मुद्रास्फीति की तुलना में काफी अधिक है. खुदरा क्षेत्र में महंगाई जहां छह-सात प्रतिशत बढ़ी है, तो चिकित्सा क्षेत्र में महंगाई लगभग 15 प्रतिशत की दर से बढ़ी है. चिकित्सा खर्च की बढ़ती महंगाई ने लोगों की सिर्फ कमर ही नहीं तोड़ी, बल्कि उनके जीवन पर संकट ला दिया है. भारत स्वास्थ्य सेवा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 4.7 प्रतिशत खर्च करता है. सार्वजनिक व्यय जीडीपी का 1.4 प्रतिशत है, जो कि वैश्विक औसत 5.9 प्रतिशत के मुकाबले बेहद कम है. इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर भी भारतीय लगभग 70 प्रतिशत जेब खर्च सिर्फ स्वास्थ्य पर ही करते हैं.

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