जैन साध्वी ने रखा 16 माह तक केवल एक समय तरल ग्रहण करने का व्रत, 15 महीने में वजन घटकर 27 किलो हुआ
इंदौर/कोलकाता. धार में भक्तामर तीर्थ का निर्माण व प्रतिष्ठा निर्विघ्न संपन्न होने की भावना से 16 माह का तप कर रहीं सागर समुदाय की साध्वी गुणरत्नाश्रीजी महाराज का वजन 40 किलो घटकर मात्र 27 किलो रह गया. उन्होंने जैन धर्म का सबसे कठिन तप माने जाने वाले ‘गुणरत्न संवत्सर’ तप का प्रण 15 महीने पहले […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
December 20, 2017 11:39 AM
इंदौर/कोलकाता. धार में भक्तामर तीर्थ का निर्माण व प्रतिष्ठा निर्विघ्न संपन्न होने की भावना से 16 माह का तप कर रहीं सागर समुदाय की साध्वी गुणरत्नाश्रीजी महाराज का वजन 40 किलो घटकर मात्र 27 किलो रह गया. उन्होंने जैन धर्म का सबसे कठिन तप माने जाने वाले ‘गुणरत्न संवत्सर’ तप का प्रण 15 महीने पहले लिया था. 480 दिन के तप में से 448 दिन पूरे हो चुके हैं.
इनमें उन्होंने 377 दिन अन्न को नहीं छुआ, सिर्फ 72 दिन एक समय पेय पदार्थ के रूप में आहार लिया. गौतमपुरा में विराजित 57 वर्षीय साध्वी गुणरत्नाश्रीजी कहती हैं गुरु कृपा से उनका मनोबल बढ़ता रहा. खाकर तो हर व्यक्ति जीता है, लेकिन त्याग कर जीने वाले बिरले होते हैं. तपमय जीवन जीने का निर्णय वह बाल्यकाल में ही ले चुकी थीं. तप के माध्यम से आत्मशुद्धि और जीव का कल्याण होता है.
तीर्थ क्षेत्र के लिए लिया संकल्प, 40 साल का साधु जीवन: भक्तामर तीर्थ का निर्माण 15 एकड़ में हो रहा है. इसमें से 45 हजार वर्गफीट में भक्तामर मंदिर है. इसमें दादा आदिनाथ की मूर्ति मूलनायक रूप में प्रतिष्ठापित होगी. साथ ही भक्तामर स्तोत्र के चित्रमय शिलालेख के साथ गोशाला, भोजनशाला, संत आवास आदि होगा.
17 साल में ली दीक्षा: देपालपुर के मंडोरा परिवार में जन्मीं साध्वी की दीक्षा 17 साल की उम्र में हुई थी. उन्हें दीक्षा आचार्य अभ्युदय सागर महाराज ने दिलायी थी. वह 40 वर्ष से साधु जीवन व्यतीत कर रही हैं. उनके परिवार से 23 लोगों ने दीक्षा लेकर साधु जीवन में प्रवेश किया है.उनके माता-पिता और भाई भी साधु जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
साध्वी के शरीर ने किया एडजस्टमेंट
कार्डियोलॉजिस्ट बताते हैं कि साध्वी की उम्र-आयु के हिसाब से 1000 से 1200 कैलोरी की आवश्यकता है. चूंकि वह उपवास पर हैं और कभी-कभी आहार लेती हैं, इसलिए उनका वजन लगातार कम हो रहा है. हालांकि उनकी दिनचर्या के हिसाब से कम कैलोरी खर्च होती है. इसके बावजूद 700-800 कैलोरी जरूरी है. ऐसी स्थिति में प्रतिरोधक क्षमता और इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है. व्यक्ति की इच्छा शक्ति और प्राकृतिक समायोजन का इसमें फायदा मिलता है.
2600 साल में संवत्सर तप करनेवाली पहली साध्वी
जैन धर्म के 2600 साल के इतिहास में यह तप करनेवाली साध्वी गुणरत्नाश्रीजी पहली साध्वी हैं. भगवान महावीर के बाद मुनि हंसरत्नविजयजी महाराज और दो श्राविकाओं ने यह कठोर तप किया. हालांकि कई लोगों ने इसके लिए प्रयास किया, लेकिन शरीर की सीमाओं से पार पाना सहज नहीं है. व्रत को 16 महीने यानी 16 बारी में किया जाता है.
समूचा समाज करेगा तप का अनुमोदन
संपूर्ण श्वेतांबर जैन समाज में किसी साध्वी द्वारा इतनी कठिन तप-तपस्या का उल्लेख नहीं है. उनकी कठिन तपस्या का समूचा समाज अनुमोदन करता है. मालवांचल की साध्वी होना स्थानीय समाज के लिए हर्ष की बात है. साध्वीजी का गौतमपुरा से नगर आगमन 26 दिसंबर को शहर में होगा. उनकी तपस्या पूरी होने पर 19 से 23 जनवरी तक पांच दिनी पंचान्हिका महोत्सव होगा. इसमें सागर समुदाय के गच्छाधिपति दौलतसागर सूरीश्वर सहित 200 साधु देशभर से उनकी तप के अनुमोदन के लिए आयेंगे.