पुस्तक मेला आयोजकों से हिंदी के शिक्षाविदों ने किया आग्रह
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बढ़े हिंदी पुस्तकों के स्टॉलस, मिलेंगे पाठक
पुस्तक मेला आयोजकों से हिंदी के शिक्षाविदों ने किया आग्रह ऐसे आयोजनों में भागीदारी नहीं होने से हिंदी संस्कृति प्रभावित आसनसोल : पुस्तक मेलों के प्रति हिंदीभाषियों के पुस्तक प्रेम को ध्यान में रखते हुए शिल्पांचल के शिक्षाविदों ने मेला आयोजकों से मेलों में हिंदी के स्टॉल्स की संख्या बढ़ाने और उनमें अच्छे प्रकाशकों व […]
ऐसे आयोजनों में भागीदारी नहीं होने से हिंदी संस्कृति प्रभावित
आसनसोल : पुस्तक मेलों के प्रति हिंदीभाषियों के पुस्तक प्रेम को ध्यान में रखते हुए शिल्पांचल के शिक्षाविदों ने मेला आयोजकों से मेलों में हिंदी के स्टॉल्स की संख्या बढ़ाने और उनमें अच्छे प्रकाशकों व साहित्यकारों की पुस्तकों के संग्रह को शामिल करने की बात कही. उन्होंने कहा कि पुस्तक मेला में अगर अच्छी पुस्तकों का संग्रह और पर्याप्त हिंदी के स्टॉल्स मौजूद रहेंगे तो मेलों में हिंदीभाषियों के भीड़ बढ़ेगी. अधिकांश शिक्षाविदों ने कहा कि आयोजक पुस्तक मेलों में यहां की क्षेत्रीय भाषा की पुस्तकों के साथ हंिदूीभाषा के पुस्तकों के संग्रह को बढ़ावा दें तभी पुस्तक मेले को सफल माना जायेगा. पुस्तक मेलों में हिंदी पुस्तकों के स्टॉल और पुस्तकों के संग्रह बढाने को लेकर विभिन्न शिक्षण संस्थानों ने अपने अपने तर्क दिये हैं.
दयानंद विद्यालय के प्रधानाचार्य मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि शिल्पांचल के हिंदीभाषियों की संख्या कम नहीं है. परंतु अभिभावकों में पुस्तकों के प्रति प्रेम कम है. शिल्पांचल में अभिभावक बच्चों को मनोरंजक स्थलों, अनुष्ठान, कार्यक्रमों में तो खुशी-खुशी ले जाते हैं. परंतु ऐसे हिंदीभाषी अभिभावकों की संख्या काफी कम ही है, जो अपने परिवार एवं बच्चों को उल्लासपूर्वक पुस्तक मेले में ले जाकर उनकी पसंद की पुस्तकें खरीद कर देते हों. इसी कारण बच्चों का भी पुस्तकों के प्रति आकर्षण कम ही रहता है.
अभिभावक बच्चों की जिद पर उन्हें दस से बीस हजार रूपये का महंगा एंड्रायड मोबाइल फोन तो खरीद कर देते हैं परंतु वे स्वेच्छा से शायद ही सौ से दो सौ रूपये की किसी महापुरूष या सफल व्यक्ति की जीवनी की पुस्तक खरीद कर अपने बच्चों को पढने को देते होंगे. अभिभावकों को अपनी सोच को न सिर्फ बदलना होगा बल्कि बचपन से ही बच्चों में पुस्तक प्रेम के संस्कार बोने होंगे. जब पुस्तक प्रेम जागेगा तभी पुस्तक मेला आयोजकों में भी हमारे पुस्तक प्रेम की कद्र होगी और हंिदूी के स्टॉल्स की संख्या और हिंदी पुस्तकों को सम्माननिय स्थान मिल सकेगा.
डीएवी स्कूल आसनसोल के शिक्षक प्रभारी उपेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि शिल्पांचल में आयोजित होने वाले पुस्तक मेलों में हिंदीभाषा की पुस्तकों के स्टॉल्स को बढाया जाये. आयोजकों को हिंदीभाषी पुस्तक प्रेमियों की अपेक्षाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए. हिंदी भाषी भी संस्कृति एवं पुस्तक प्रेमी हैं. उनके पुस्तक प्रेम का आयोजकों को सम्मान करना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों में हिंदीभाषी स्टूडेंटस की संख्या दिनों दिन बढती जा रही है. आयोजकों को इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए.
हिंदीभाषी स्टूडेंटस से भी अच्छे लेखकों की पुस्तकें पढ़ने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि समय में शिक्षित लोगों के बीच पुस्तकों के प्रति एक अलग ही प्रेम था. लोग सफर में स्टेशनों में मिलने वाले पुस्तकों में अपने पसंद की पुस्तकें तलाशते थे. कहीं दूर के सफर में जाने पर पुस्तकें ही सहयात्री और दोस्त हुआ करते थे. परंतु आज के लोगों की पसंद बदलती जा रही है.
आर्यकन्या उच्च विधालय (एचएस) आसनसोल की प्रधानाचार्य उर्मिला ठाकुर ने कहा कि शिल्पांचल में हिंदीभाषियों की संख्या कम नहीं है. पुस्तक मेलों में हिंदी अभिभावकों को अपने बच्चों के साथ जाना चाहिए. मेलों में जाने से ही पता चल सकेगा कि साहित्य जगत में नया क्या हो रहा है, किन साहित्यकारों की कितनी नयी पुस्तकें प्रकाशित हुईं. वर्तमान में साहित्यकार एवं शिक्षाविद देश और समाज के किन राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक एवं ज्वलंत समस्याओं पर देश और समाज के लोगों का ध्यान आकृष्ट करना चाह रहे हैं. देश और समाज की ज्वलंत समस्याएं क्या हैं. उन्होंने पुस्तकों को सच्चा मित्र बताते हुए हिंदीभाषी अभिभावकों से बच्चों को बचपन से ही पुस्तक मेलों में ले जाने के स्वभाव को विकसित करने को कहा. तभी बडे होने पर पुस्तकों के प्रति उनका प्रेम बढेगा और रूचि बनी रहेगी. अभिभावकों के बीच पुस्तक मेलों में जाने को लेकर जागरूकता चलाये जाने की बात कही.
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