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कलकत्ता विश्वविद्यालय ने ममता बनर्जी को दी डी लिट की उपाधि

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कोलकाता : कलकत्ता विश्वविद्यालय (सीयू) ने आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को उनकी सामाजिक सेवा के लिए उन्हें डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर यानी डी लिट की मानद उपाधि प्रदान की. इस बीच इसके खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर शुक्रवार को फिर सुनवाई होगी. सीयू की कुलपति सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी ने कहा, कलकत्ता विश्वविद्यालय […]

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कोलकाता : कलकत्ता विश्वविद्यालय (सीयू) ने आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को उनकी सामाजिक सेवा के लिए उन्हें डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर यानी डी लिट की मानद उपाधि प्रदान की. इस बीच इसके खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर शुक्रवार को फिर सुनवाई होगी.

सीयू की कुलपति सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी ने कहा, कलकत्ता विश्वविद्यालय बनर्जी को उनकी सामाजिक सेवाओं के लिए डी लिट की उपाधि दे रहा है. कलकत्ता उच्च न्यायालय में दायर एक पीआइएल का स्पष्ट रूप से जिक्र करते हुए ममता ने अपने संबोधन में कहा, मैंने अपने शुरुआती दिनों से ही कुछ लोगों के अनादर का सामना किया है और मैं सोच रही थी कि मुझे इस समारोह में भाग लेना चाहिए या नहीं. ममता ने कहा, यदि मैं नजरूल मंच में इस समारोह में भाग नहीं लेती, तो मैं गलती करती. मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय जैसे एक प्रतिष्ठित संस्थान से सम्मान पाकर कृतज्ञ महसूस कर रही हूं.

मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें हाल में कई संस्थानों से इस तरह का सम्मान पाने की पेशकश मिली थी, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था. उन्होंने कहा कि वह सीयू की पेशकश को खारिज नहीं कर सकीं. उन्होंने विश्वविद्यालय से नवोन्मेष और अनुसंधान के क्षेत्र में काम करने का आह्वान करते हुए कहा कि राज्य सरकार विश्वविद्यालय को 100 करोड़ रुपये उपलब्ध करायेगी. विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और राज्यपाल केएन त्रिपाठी ने ममता को डी लिट की उपाधि प्रदान की. उन्होंने इस मौके पर कहा कि विश्वविद्यालय विभिन्न क्षेत्रों में योगदान के लिए हस्तियों को सम्मानित करता है.

विश्वविद्यालय के वकील शक्तिनाथ मुखर्जी ने कहा कि किसी को डी लिट की उपाधि देने का निर्णय लेने का अंतिम अधिकार विश्वविद्यालय सीनेट के पास होता है और किसी बाहरी व्यक्ति को इस निर्णय को चुनौती देने का अधिकार नहीं है. याचिकाकर्ता एवं विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर रंजूगोपाल मुखर्जी ने उच्च न्यायालय का रुख करते हुए मुख्यमंत्री को यह उपाधि प्रदान करने के निर्णय को चुनौती देते हुए दावा किया था कि, ‘यह मनमाना और अपादर्शी’ निर्णय है.

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