नेताजी की मौत की फिर से हो जांच : चित्रा बोस
कोलकाता : कहते हैं उम्र बढ़ने के साथ ही स्मरण शक्ति कम होती जाती है, लेकिन सत्तासी वर्ष की चित्रा बोस से मिलने के बाद पता चला कि यादों के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती है, तभी तो बिना किसी दवाब के वह नेताजी सुभाष चंद बोस के साथ कोलकाता में बिताये गये बचपन […]
कोलकाता : कहते हैं उम्र बढ़ने के साथ ही स्मरण शक्ति कम होती जाती है, लेकिन सत्तासी वर्ष की चित्रा बोस से मिलने के बाद पता चला कि यादों के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती है, तभी तो बिना किसी दवाब के वह नेताजी सुभाष चंद बोस के साथ कोलकाता में बिताये गये बचपन की ढेर सारी बातों का जिक्र किया. इस दौरान वह कभी भावुक हुईं तो कभी बच्चों सी खिलखिला उठीं.
भारत छोड़ने की बनायी थी पूरी योजना
दक्षिण कोलकाता के बालीगंज में रहनेवाली बोस परिवार की सदस्या चित्रा बोस नेताजी सुभाष चंद बोस के बड़े भाई शरद चंद की पुत्री है. 14 नंवबर 1930 को जन्मी चित्रा मात्र 11 साल की थी, जब नेताजी 16-17 जनवरी 1941 को देश छोड़ कर चले गये थे. चित्रा बताती हैं कि नेताजी ने इसके लिए बकायदा योजना बनायी थी. हालांकि वह उस समय छोटी थी, लेकिन उन्हें यह याद है कि श्री बोस कई महीनों से शेविंग नहीं कर रहे थे. उनकी दाढ़ी काफी लंबी हो गयी थी. जब उनसे यह पूछा जाता कि वह शेविंग क्यों नहीं कर रहे हैं, तो वह हमेशा हंस कर टाल देते थे.
केंद्र भी करे पड़ताल
श्रीमति बोस बताती हैं कि उन्हें अभी भी विश्वास नहीं होता है कि नेताजी की मौत प्लेन दुर्घटना में हुई होगी. उन्होंने वर्तमान सरकार को एक बार फिर से इस रहस्यमयी घटना की जांच-पड़ताल करने की अपील की है.
बच्चों के सुपरहीरो थे नेताजी
श्रीमति बोस ने बताया कि नेताजी बच्चों को बहुत प्यार करते थे. वह बच्चों के लिए सुपरहीरो थे. उनके (चित्रा) पिता का एक घर दार्जिलिंग के कर्सियांग में भी था. छुट्टियों के दौरान सपरिवार वहां जाया करते थे. उन्होंने बताया : एक बार हम नेताजी के संग खेल रहे थे इस दौरान उनका (नेताजी) का पांव फिसल गया और वह चट्टानों पर लुढ़कने लगे, नीचे गिरनेवाले ही थे कि एक पेड़ की डाल पकड़ लिये. फिर जल्दी से ऊपर आयें. उनका घुटना व हाथ बुरी तरह से छिल गया था. मैं तो रूआंसी हो उठीं, लेकिन नेताजी धीरे से मेरी मां के पास गये और घाव पर मरहम-पट्टी लगवाकर फिर से हम लोगों के साथ खेलने लगे. चित्रा ने बताया कि नेताजी वह मछली व मांस बड़े चाव से खाते थे. वह मिठाई पसंद नहीं करते थे.
फ्रेंच दस्तावेजों में तो यह लिखा है कि नेताजी 1948 तक जीवित थे. मुखर्जी कमीशन ने भी इस बात की पुष्टि की है कि नेताजी की मौत ताइवान में 1945 में प्लेन दुर्घटना में नहीं हुई थी. इसलिए केंद्र सरकार को दोबारा इस मामले की जांच करना चाहिए. केंद्र सरकार द्वारा 1999 में नेताजी की मौत की जांच-पड़ताल के लिए एक सदस्यीय मुखर्जी कमीशन का गठन किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनोज मुखर्जी को नियुक्त किया गया. सात वर्ष तक चले जांच के बाद मुखर्जी ने रिपोर्ट पेश किया और बताया कि 18 अगस्त 1954 को ताइवान में हुई प्लेन दुर्घटना में बोस की मौत नहीं हुई. इतना ही नहीं न्यायाधीश मुखर्जी स्वयं ताइवान जाकर एयरपोर्ट पर तमाम दस्तावेजों की जांच-पड़ताल के बाद अपनी रिपोर्ट पेश की.
-पूरबी राय, नेताजी पर शोधकर्ता.