कोलकाता : पहले राज्य का रेल बजट होता था देश का नहीं
रेल बजट में बंगाल की कथित उपेक्षा के तृणमूल के आरोप पर बोले दिलीप कोलकाता : दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस के सांसद हर वक्त कमर पर घड़ा रखकर नाचने के लिए प्रस्तुत हैं. प्रदेश के हित के लिए ये लोग चुप्पी साधे रहते हैं. यह आरोप खुद प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष व भाजपा विधायक दल […]
रेल बजट में बंगाल की कथित उपेक्षा के तृणमूल के आरोप पर बोले दिलीप
कोलकाता : दिल्ली में तृणमूल कांग्रेस के सांसद हर वक्त कमर पर घड़ा रखकर नाचने के लिए प्रस्तुत हैं. प्रदेश के हित के लिए ये लोग चुप्पी साधे रहते हैं. यह आरोप खुद प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष व भाजपा विधायक दल के नेता दिलीप घोष ने विधानसभा में पत्रकारों के समक्ष लगाया.
उन्होंने कहा कि रेल बजट में कटौती को लेकर तृणमूल कांग्रेस के विरोध पर उन्होंने कहा कि पहले राज्य का रेल बजट होता था, रेल बजट नहीं होता था. हमने देखा है कि मुख्यमंत्री रेल पर ही सवार होकर बंगाल की सत्ता में पहुंची हैं. रेल मंत्री रहने के दौरान उन्होंने जहां-तहां शिलान्यास कर रेल परियोजनाओं की घोषणा करनी शुरू कर दी थी. अब जब केंद्र सरकार ने सभी परियोजनाओं का रिव्यू करना शुरू किया है, तो सच्चाई सामने आ रही है. 50 परियोजनाओं को बंद करने का निर्णय लिया गया है.
यह निर्णय राज्य सरकार को बता भी दिया गया है. एक शिलापट्ट लगाकर 20 लाख से लेकर 20 करोड़ तक आवंटित करने के बाद जमीन की समस्या, जमीन अधिग्रहण की समस्या के साथ लगातार कई तरह की समस्याओं के कारण परियोजनाएं खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थीं. निर्धारित समय पर परियोजनाओं के पूरा नहीं होने से खर्च लगातार बढ़ रहा था. इसको देखते हुए ही केंद्र ने कुछ परियोजनाओं पर लगाम लगाने का फैसला किया.
उन्होंने कहा कि जमीन की समस्या के कारण इस्ट-वेस्ट परियोजना रुक गयी थी. इसकी दिक्कतों को आखिरकार केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो के हस्तक्षेप से संभाला गया. राज्य सरकार ने इसे सुलझाने की कोई पहल नहीं की. अब अगर सच में ही तृणमूल कांग्रेस के सांसद चाहते हैं कि वे रेल परियोजनाओं में आ रही दिक्कत की बात दिल्ली में कर सकते हैं, तो वे लोग रेल मंत्री या वित्त मंत्री से मुलाकात कर अपनी बात रख सकते हैं. प्रतिनिधिमंडल भेज सकते हैं. मुख्यमंत्री सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भी भेज सकती हैं. लेकिन वे लोग यह नहीं कर कमर पर घड़ा रख कर राज्यपाल पर आरोप लगाते हुए नाच रहे हैं.
दिलीप घोष ने कहा कि राज्यपाल द्वारा मालदा के डिवीजनल कमिश्नर को भेजे गये पत्र को लेकर मुद्दा बना रहे हैं.
तृणमूल के जनप्रतिनिधियों का जितना भी विरोध हो रहा है, वह राज्यपाल को लेकर. लोग भूल जा रहे हैं कि राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे हैं. वह हमेशा अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजते हैं.
दिलीप घोष के मुताबिक संभवत: राज्य सरकार की तरफ से राज्यपाल को जो रिपोर्ट भेजी जा रही थी, उस पर वह यकिन नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए वह जमीनी हकीकत खुद जानने के लिए सरकारी अधिकारियों को बुलाया था. संविधान की धारा 167 के तहत राज्यपाल के पास वे अधिकार हैं, जिसका वह उपयोग कर सकते हैं. यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, जिसका तृणमूल के लोग विरोध कर रहे हैं.