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कोलकाता के 300 वर्ष पुराने मंदिर का चीन से है सीधा कनेक्शन

कोलकाता : कोलकाता के अचिपुर में बने हुए चीनी मंदिर को 300 वर्ष पूरे हो चुके हैं. दरअसल, यह मंदिर धीरे-धीरे पलायन कर गए कई यूरोपीय समुदायों की संस्कृतियों को दर्शाता है. चौबाघा मंदिर की 300वीं वर्षगांठ के मौके पर रविवार को उत्सव की शुरुआत भिक्षुओं द्वारा प्रार्थना के साथ की गयी. कार्यक्रम में प्रार्थना […]

कोलकाता : कोलकाता के अचिपुर में बने हुए चीनी मंदिर को 300 वर्ष पूरे हो चुके हैं. दरअसल, यह मंदिर धीरे-धीरे पलायन कर गए कई यूरोपीय समुदायों की संस्कृतियों को दर्शाता है.
चौबाघा मंदिर की 300वीं वर्षगांठ के मौके पर रविवार को उत्सव की शुरुआत भिक्षुओं द्वारा प्रार्थना के साथ की गयी. कार्यक्रम में प्रार्थना के बाद भारत में चीन के वाणिज्य दूतावास के प्रतिनिधि का भाषण हुआ. इसके इतर अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया गया.
बता दें कि मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी जी हिंग क्लब के पास है. क्लब के उपाध्यक्ष ओयुअल बताते हैं कि मंदिर का निर्माण 1718 में कराया गया था. उनका ऐसा यकीन है कि एक्यू एक साल या दो साल पहले आए थे. लोगों का यह भी मानना है कि एक्यू ने ही अचिपुर में चीनी मिल की शुरुआत की थी. इसके कुछ वर्षों के बाद एक चीनी मंदिर तैयार हुआ और इस स्थान का नाम अचिपुर व्यापारी के नाम पर रख दिया गया. गौरतलब है कि टॉन्ग एक्यू नाम के एक चीनी व्यापारी ने एक चीनी मिल की स्थापना की थी. इसके साथ ही कोलकाता के किनारे खेती की शुरुआत भी की.
दरअसल, यह शुरुआती दौर था जब चीनी नागरिक अपने देश में फैली अराजकता की वजह से कोलकाता पलायन कर रहे थे. आज अचिपुर में चीनी समुदाय का एक भी शख्स नहीं रहता है. हालांकि, चीन के नए वर्ष के साथ ही यह स्थान ‘चाइना टाउन’ में तब्दील हो जाता है.
हैरान करने वाली बात यह भी है कि चीनी नए वर्ष के अलावा यहां पर वर्षभर कोई खास गतिविधि नहीं होती है. बहरहाल, समुदाय के सदस्यों की गैरहाजिरी में मंदिर की देखरेख फरुकुल हक करते हैं. हक का परिवार मंदिर की रखवाली का काम पिछली सात पीढ़ियों से कर रहा है.
हक बताते हैं कि उनके पूर्वज इस मंदिर की देखरेख लंबे अरसे से करते आ रहे हैं. उन्होंने उनके परिवार के ही एक शख्स को नौकरी दी. तभी से उनकी पीढ़ियां इस मंदिर की सेवा करती चली आ रही हैं. बता दें कि फिलहाल समुदाय के ही लोग, स्थानीय लोगों के सहयोग से मंदिर की सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं लेकिन उन्होंने राज्य सरकार से अचिपुर को एक पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा दिए जाने की मांग की है. इंडियन चाइनीज असोसिएशन के प्रेजिडेंट जोसेफ कहते हैं कि पर्यटन को बढ़ावा दिए जाने से मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र को विकसित करने में भी मदद मिलेगी.
क्या है इतिहास : कोलकाता में रहने वाले चीनी मूल के लोगों का मानना है कि यह मंदिर चीन से आए व्यापारी टॉन्ग एक्यू के कोलकाता पहुंचने और 300 साल पूरे होने का भी प्रतीक है, जिनके नाम पर यहां का नाम अचिपुर पड़ा. हालांकि, कई इतिहासकारों का मानना है कि कोलकाता में एक्यू 18वीं शताब्दी की शुरुआत में नहीं बल्कि 18वीं शताब्दी के अंत में आए थे.

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