कृत्रिम महाधमनी तैयार कर बचायी मरीज की जान

कोलकाता : बीमारी से ग्रसित एक महिला को एसएसकेएम (पीजी) के चिकित्सकों ने सफल उपचार कर नया जीवन प्रदान किया. पश्चिम मिदनापुर की रहनेवाली पूर्णिमा बेरा एक विरल बीमारी की शिकार थी. उसके हृदय की महाधमनी के ऊपर बड़े आकार का एक ट्यूमर तैयार हो गया था जो किसी भी समय फट सकता था और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2018 2:44 AM

कोलकाता : बीमारी से ग्रसित एक महिला को एसएसकेएम (पीजी) के चिकित्सकों ने सफल उपचार कर नया जीवन प्रदान किया. पश्चिम मिदनापुर की रहनेवाली पूर्णिमा बेरा एक विरल बीमारी की शिकार थी. उसके हृदय की महाधमनी के ऊपर बड़े आकार का एक ट्यूमर तैयार हो गया था जो किसी भी समय फट सकता था और जिसके फटते ही मरीज की मौत हो सकती थी. सीने में दर्द की शिकायत पर महिला को पहले पीजी के कार्डियोलॉजी विभाग लाया गया.

विभिन्न प्रकार की जांच के बाद सर्जरी के लिए मरीज को पीजी के ही कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर साइंसेस (सीटीवीएस) रेफर किया. विभाग में करीब 8 घंटे तक मरीज की सर्जरी चली जिसके बाद कई दिनों तक जीनव व मौत के बीच जूझने के बाद वह स्वस्थ्य होकर घर लौट गयी. वह ऐऑर्टिक डिसेक्शन नाम बीमारी से ग्रसित थी. एंजियोग्राफी के बाद इस बीमारी का पता चला.

डॉक्टर्स सर्जरी से पहले सीटी एंजियोग्राफी भी करवाना चाहते थे, लेकिन मरीज की स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी. चिकित्सकों ने मरीज की जान को बचाने के लिए एक बड़ा जोखिम उठाया. विभाग के प्रो डॉ शांतनु दत्ता के नेतृत्व में चिकित्सक की एक टीम ने सर्जरी शुरू की. ऑपरेशन काफी जटिल था. ओटी टेबल पर ही मरीज की मौत हो सकती है. इसके बाद भी डॉक्टरों की टीम ने सर्जरी को शुरू किया. सर्जरी को पूरा करने में चिकित्सकों को आठ घंटे लग गये. बीमारी के कारण पूर्णिमा की महाधमनी खराब हो गयी थी.

चिकित्सकों ने महाधमनी को काट उसके शरीर से अलग कर दिया. इसके बाद कृत्रिम सेंथेटिक महाधमनी को तैयार कर मरीज की जान बचायी गयी. उसे अब अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है जो अब पूरी तरह से स्वस्थ है. कार्डियोथोरेसिक ऐनेथिसिया विभाग के प्रो. डॉ काकोली घोष ने हमें बताया कि आम तौर पर कार्डियोपल्मोनरी बायपास को करने में लगभग चार घंटे का समय लगता है.

सर्जरी के दौरान हार्ट लंग मशीन के द्वारा करीब तीन घंटे तक हृदय को बंद रखा जाता है और उक्त मशीन के द्वारा ब्लड सर्कुलेशन को शरीर के लिए जारी रखा जाता है. यह प्रक्रिया ही चिकित्सक व मरीज दोनों के लिए सबसे बड़ा कार्य है. डॉ घोष ने कहा कि ऐऑर्टिक डिसेक्शनके के कारण महिला की महाधमनी की दीवार बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुई थी. जिसके कारण उसकी महाधमनी को निकालना पड़ा.

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