आयुष चिकित्सक करेंगे आशा कर्मियों का काम

कोलकाता : स्कूली छात्रों के सेहत की देखभाल के लिए केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) योजना चलायी जा रही है. इस योजना से आयुष चिकित्सकों को जोड़ा गया है. योजन के मद्देनजर ब्लॉक स्तर पर मोबाइल हेल्थ यूनिट तैयार की गयी है. हर हेल्थ यूनिट के लिए एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 25, 2018 2:08 AM
कोलकाता : स्कूली छात्रों के सेहत की देखभाल के लिए केंद्र व राज्य सरकार के सहयोग से राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) योजना चलायी जा रही है. इस योजना से आयुष चिकित्सकों को जोड़ा गया है. योजन के मद्देनजर ब्लॉक स्तर पर मोबाइल हेल्थ यूनिट तैयार की गयी है. हर हेल्थ यूनिट के लिए एक टीम का गठन किया गया है. इस टीम में दो आयुष चिकित्सक, एक नर्स तथा एक फार्मासिस्ट को शामिल किया गया है.
गौरतलब है कि आयुर्वेद, होमियोपैथी तथा युनानी विशेषज्ञ को आयुष चिकित्सक कहा जाता है. आरबीएसके से जुड़े आयुष चिकित्सकों को स्कूलों में जा कर बच्चों की शारीरिक जांच कर बीमारियों का पता लगाना होता है. चिकित्सक बच्चों की काउंसिलिंग कर उसकी बीमारियों के विषय में जानते हैं. आयुष डॉक्टर बच्चों के हृदय, त्वचा, नेत्र सह अन्य जेनेटिक बीमारियों का पता लगाते हैं. हृदय रोग से ग्रसित बच्चों को शिशु साथी योजना के तहत आवश्यकता पड़ने सर्जरी की जाती है.
इसके लिए बच्चों को किसी सरकारी रेफरल सेंटर (अस्पताल) में रेफर कर दिया जाता है. वहीं दांत, त्वचा, नेत्र सह अन्य बीमारियों की चिकित्सा के लिए बच्चों को किसी जिला स्वास्थ्य केंद्र में भेज दिया जाता है.
सरकार ने नये नियम के अनुसार आयुष चिकित्सकों को बीमार बच्चों की समय-समय पर खबर लेनी होगी. यानी बच्चों को रेफरल सेंटर ले जाया गया या नहीं. बच्चे ने दवा खायी है या नहीं, इन सभी बातों की जानकारी उक्त योजना से जुड़े चिकित्सकों को लेनी होगी. हाल में ही राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक नोटिस जारी कर यह जानकारी दी गयी है.
सरकार के नये नियम से आयुष चिकित्सक बिफरे हुए हैं. एक डॉक्टर ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि हार्ट सर्जरी के लिए रेफर किये गये बच्चों का फालोअप लेना अच्छा लगता है, क्योंकि उसे एक बड़ी सर्जरी से होकर गुजरना पड़ता है, लेकिन दांत, त्वचा या अन्य किसी रोग के लिए बच्चों का लगतार फालोअप हम आयुष चिकित्सक क्यों लेंगे? एलोपैथी चिकित्सकों की तरह साढ़े पांच साल हमें भी पढ़ाई करनी पड़ती है. हम भी एक चिकित्सक हैं, तो हमारे साथ इस तरह का व्यवहार क्यों?
यह कार्य तो एक आशा कर्मी भी कर सकती है. सरकार के इस निर्देश से हम लोग खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं. क्या हमारे लायक चिकित्सा संबंधी सरकार के पास और कोई कार्य नहीं है?
हमने इस विषय में ज्यादा जानने के के लिए राज्य के नेशनल हेल्थ मिशन के निदेशक गुलाम अली अंसारी से बात की, लेकिन उन्होंने हमसे इस विषय में कुछ भी बात करने से इनकार कर दिया. हमने दिल्ली में नेशल हेल्थ मिशन के केंद्रीय निदेशक मनोज झलानी से फोन पर बात करने की कोशिश की, लेकिन वह विभागीय बैठक में व्यस्त थे, जिस कारण उनसे भी बात नहीं हो सकी.

Next Article

Exit mobile version