- कस्टम विभाग ने एनआरएस, एसएसकेएम व मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों के हवाले किया
- भारत से बांग्लादेश स्मगलिंग के दौरान कस्टम की टीम ने इन कंकालों को किया था जब्त
- तीनों मेडिकल संस्थान के विभागीय प्रमुख के हवाले किया गया तीन-तीन कंकाल के पूरे नौ अवशेष
- डॉक्टरी सीखने वाले छात्रों को अध्ययन में इससे मिलेगी काफी मदद
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15 वर्षों से जब्त कंकाल महानगर के मेडिकल शिक्षण संस्थान को सौंपा
कोलकाता : कस्टम विभाग की टीम ने गत 15 वर्षों में भारत से बांग्लादेश भेजने के दौरान तस्करी के मानव कंकालों को शुक्रवार को महानगर के तीन सरकारी मेडिकल संस्थान के अधिकारियों के हवाले कर दिया. इस कंकाल के जरिये अब डॉक्टरी पढ़नेवाले छात्रों को अध्ययन में काफी मदद मिलेगी. कस्टम विभाग के कमिश्नर (प्रिवेंटिव) […]
कोलकाता : कस्टम विभाग की टीम ने गत 15 वर्षों में भारत से बांग्लादेश भेजने के दौरान तस्करी के मानव कंकालों को शुक्रवार को महानगर के तीन सरकारी मेडिकल संस्थान के अधिकारियों के हवाले कर दिया. इस कंकाल के जरिये अब डॉक्टरी पढ़नेवाले छात्रों को अध्ययन में काफी मदद मिलेगी. कस्टम विभाग के कमिश्नर (प्रिवेंटिव) पार्थ सारथी रॉय ने बताया कि वर्ष 2001 से 2016 के बीच कस्टम विभाग की टीम ने 23 मामलों में कुल 30 मानव कंकाल जब्त किये थे.
जिन कंकाल को कागजी कार्रवाई पूरा करने के बाद दान किया गया, उन्हें मुर्शीदाबाद के हारुडांगा व कारपाड़ा से जब्त किया गया था. ज्यादा रुपये मिलने के कारण भारतीय सीमा से यह कंकाल बांग्लादेश भेजे जाने के दौरान इसे जब्त किया जा रहा था. इसी समय इन्हें जब्त किया गया था. लेकिन कस्टम विभाग के बाद इन मानव कंकालों के अवशेष रह-रहकर खराब हो रहे थे.
इसके कारण इन्हें महानगर के मेडिकल कॉलेज संस्थानों को सौंपने का निर्देश दिया गया. जिससे यहां पढ़ने वाले छात्रों को कुछ फायदा मिल सके. इस मौके पर एनआरएस मेडिकल कॉलेज अस्पताल की तरफ से डॉ. कार्वी बोराल, एसएसकेएम के तरफ से डॉ. आशीष कुमार घोषाल और मेडिकल कॉलेज अस्पताल के तरफ से डॉ. शर्मिला पाल मौजूद थे.
इन कंकालों से तस्करों को क्या मिलता है फायदा
कस्टम सूत्रों का कहना है कि आम तौर पर मानव कंकालों का इस्तेमाल दवा बनाने के अलावा कुछ केमिकल व अन्य मेडिकल उपयोग में लाया जाता है. इसके कारण भारत में इसकी कीमत 15 से 25 हजार रुपये है. लेकिन बांग्लादेश में इसकी कीमत 50 से 55 हजार होने के कारण कब्रिस्तानों व अन्य जगहों से इसकी तस्करी बांग्लादेश की जाती थी.
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