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कोलकाता : देश की ज्यादातर पार्टियां कर रहीं परिवारवाद की राजनीति : कार्तिक बनर्जी
कोलकाता : ममता बनर्जी के कुनबे में मनभेद हो गया है! इस बात को लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. जिस व्यक्ति को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं, वह कोई और नहीं, खुद सीएम ममता बनर्जी के भाई कार्तिक बनर्जी हैं. कार्तिक की पहचान एक समाजसेवी के रूप में है. वह […]
कोलकाता : ममता बनर्जी के कुनबे में मनभेद हो गया है! इस बात को लेकर कई तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. जिस व्यक्ति को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं, वह कोई और नहीं, खुद सीएम ममता बनर्जी के भाई कार्तिक बनर्जी हैं. कार्तिक की पहचान एक समाजसेवी के रूप में है. वह कई संस्थाओं के साथ जुड़े हुए हैं.
अक्सर सामाजिक गतिविधियों में उनका नाम सुर्खियों में रहता है, लेकिन जिस वजह से मुख्यमंत्री के कुनबे में मनभेद की खबर चर्चा का विषय बनी हुई है, वह है ही क्या कार्तिक बनर्जी, ममता बनर्जी से नाराज हैं? क्या अभिषेक को सांसद बनाने के अलावा पार्टी की अहम जिम्मेवारी देने से नाराज हैं.
इन सब चर्चाओं को बल मिला शनिवार को रोटरी सदन में आयोजित एक परिचर्चा सभा से.परिचर्चा सभा का विषय था स्वाधीनता के बाद भारतीय राजनेता नीतिहीन हो गये हैं. परिचर्चा सभा किसी पार्टी विशेष या फिर व्यक्ति विशेष को लेकर नहीं की गयी थी. इसमें वक्ता के रूप में विभाष चक्रवर्ती, संबरन बनर्जी, डाॅ पूर्वी राय और जयदीप मुखर्जी मौजूद थे. कार्यक्रम का आयोजन दक्षिण कोलकाता की संस्था कोलकाता विवेक की ओर से किया गया था. इस संस्था के संयोजक कार्तिक बनर्जी हैं. मौके पर एक पुस्तिका का भी विमोचन हुआ.
इसमें विवेक बनर्जी के लेख में लिखा गया है कि योग्यता के दम पर कोई राजनीति कर रहा है और शून्य से शिखर पर पहुंचता है, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन कोई परिवार की दुहाई देते हुए कल तक नहीं दिखनेवाला, अचानक शिखर पर पहुंच जाता है, तो उसे स्वीकार करना संभव नहीं है. इस लेख के बारे में पूछने पर कार्तिक ने बताया वह इस परिचर्चा के आयोजक हैं और पुस्तिका भी वही प्रकाशित करवाये हैं.
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सांसद सौगत राय को करनी थी, लेकिन वह पहुंचे नहीं. बाद में कार्तिक ने बताया कि वह पूरे देश के बारे में सोचते हुए उस दिशा में काम कर रहे हैं. हिंदुस्तान की ज्यादातर पार्टियां परिवारवाद के दल-दल में फंस गयी हैं. लोग जुबान से विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और सुभाष चंद्र बोस के आर्दश को लेकर चिल्लाते फिरते हैं, लेकिन जब उन्हें मौका मिलता है, तो वह देश हित को भूल कर अपने परिवार की चिंता करने लगते हैं.
स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस ने इसकी शुरुआत की और आज लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव, मायावती, करूणानीधि से लेकर तेलगू देशम पार्टी तक सभी में यह रोग फैला हुआ है. इसे बदलने की जरूरत है. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि यहां भी यह सोच लागू हो सकती है. हालांकि स्पष्ट रूप से उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का नाम नहीं लिया. कार्तिक के इस कदम को राजनीतिक गलियारे में मनभेद से जोड़कर देखा जा रहा है.
खबर है कि अपनी उपेक्षा और अभिषेक के बढ़ते कद से वह दुखी चल रहे हैं. हालांकि उन्होंने इस बात से इंकार किया. लेकिन इस परिचर्चा सभा के मार्फत उन्होंने जिस तरह से नेताओं पर निशाना साधा, उससे सवाल तो खड़े होते ही है, क्योंकि ममता बनर्जी का इन नेताओं के साथ निकट सबंध है और वह इन लोगों के भरोसे ही फेडरल फ्रंट के गठन की कवायद कर रही हैं.
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