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बंगाल में गहरा रहा है पेयजल का संकट, राज्य में 78 लाख लोग स्वच्छ पेयजल से वंचित

देश में 4.11 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिलता कोलकाता : हुगली नदी के किनारे बसे होने के बावजूद राजधानी कोलकाता में पीने के पानी का संकट लगातार गंभीर हो रहा है. बीते डेढ़ दशकों के दौरान यहां भूमिगत जल का स्तर 20 मीटर कम हो गया है. आबादी के बढ़ते दबाव की वजह […]

देश में 4.11 करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल नहीं मिलता
कोलकाता : हुगली नदी के किनारे बसे होने के बावजूद राजधानी कोलकाता में पीने के पानी का संकट लगातार गंभीर हो रहा है. बीते डेढ़ दशकों के दौरान यहां भूमिगत जल का स्तर 20 मीटर कम हो गया है. आबादी के बढ़ते दबाव की वजह से मांग बढ़ने और पानी का स्तर घटने की वजह से निकट भविष्य में राज्य को पेयजल के गंभीर संकट से जूझना पड़ सकता है.
अब नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने भी पानी के गंभीर संकट पर मुहर लगा दी है. उनका कहना है कि देश के समक्ष फिलहाल पानी की चुनौती सबसे गंभीर है. नीति आयोग ने देश में बढ़ते पेयजल के संकट पर गहरी चिंता जतायी है. आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने कहा है कि आयोग के संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक में लगभग 60 फीसदी राज्यों का प्रदर्शन बेहद लचर रहा है. पश्चिम बंगाल व राजधानी कोलकाता में बीते एक-डेढ़ दशकों के दौरान पीने के पानी का संकट लगातार गंभीर हुआ है.
केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश की 4.5 फीसदी आबादी की पीने के साफ पानी तक पहुंच नहीं हैं. जिन 4.11 करोड़ लोगों को अब भी पीने का साफ पानी नहीं मिलता उनमें से 78 लाख बंगाल में ही हैं. इस मामले में राजस्थान (82 लाख) के बाद बंगाल का ही स्थान है.
इससे हालत की गंभीरता समझी जा सकती है. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ हाइजिन एंड पब्लिक हेल्थ के पूर्व अधिकारी अरुणाभ मजुमदार कहते हैं कि बंगाल के ग्रामीण इलाकों की 84 फीसदी आबादी अब भी अपनी जरूरतों के लिए भूमिगत पानी पर निर्भर है. लेकिन राज्य के 83 ब्लाकों में, जहां भूमिगत पानी में आर्सेनिक है, वहीं 43 ब्लाकों में फ्लोराइड की मात्रा तय सीमा से ज्यादा है. इसके अलावा कई ब्लाकों में भूमिगत पानी में खारापन और आयरन की समस्या है.
ग्रामीण ही नहीं, बल्कि राज्य के शहरी इलाकों में भी महज 56 फीसदी परिवारों को ही पीने का साफ पानी मिलता है, जो राष्ट्रीय औसत 70.6 फीसदी से काफी कम है.
राज्य पर्यावरण विभाग में मुख्य पर्यावरण अधिकारी रहे ध्रुवज्योति घोष कहते हैं कि कोलकाता के हुगली के किनारे बसे होने की वजह से हालात कुछ हद तक नियंत्रण में है. बावजूद इसके आबादी के लगातार बढ़ते दबाव और तेजी से होने वाले शहरीकरण के चलते महानगर में भूमिगत पानी का स्तर लगातार घट रहा है. कोलकाता नगर निगम का दावा है कि महानगर में पीने के पानी की सप्लाई का 15 फीसदी भूमिगत पानी से आता है. लेकिन हकीकत में यह आंकड़ा 25 से 30 फीसदी तक है.
कोलकाता मेट्रोपोलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (केएमडीए) के पूर्व पर्यावरण विशेषज्ञ तापस घटक कहते हैं कि महानगर के दक्षिण व पूर्वी छोर में बहुमंजिली इमारतों की तादाद तेजी से बढ़ने की वजह से भूमिगत पानी पर दबाव बढ़ा है, लेकिन सरकार ने अब तक इस संकट से निपटने की कोई ठोस योजना नहीं बनायी है.
पानी के इस लगातार तेज होते संकट की वजह से महानगर में बोतलबंद पानी की सप्लाई का धंधा तेजी से फल-फूल रहा है. लेकिन गरीब तबके के लोग इसका खर्च नहीं उठा पाने की वजह से गंदा पानी पीने पर मजबूर हैं.
जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंटल स्टडीज के मुताबिक महानगर के भूमिगत जल के 55 फीसदी हिस्से में आर्सेनिक का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से तय मानकों के मुकाबले ज्यादा है.
कोलकाता स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वेलफेयर एंड बिजनेस मैनेजमेंट के प्रोफेसर प्रदीप सिकदर कहते हैं कि फिलहाल कोलकाता में रोजाना 310 लख लीटर पेय जल की मांग है. लेकिन 2025 तक इसमें 25 फीसदी वृद्धि की संभावना है. तब संकट गंभीर हो सकता है. पेयजल के लगातार गंभीर होते संकट पर आखिर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है.
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अभी से इस संकट की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए पानी के संरक्षण के उपायों पर जोर देना होगा.
ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ हाइजिन एंड पब्लिक हेल्थ के पूर्व निदेशक केजे नाथ कहते हैं कि सरकार को बारिश के पानी का संरक्षण अनिवार्य बनाना होगा. आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने इसके जरिए संकट पर काफी हद तक काबू पा लिया है. पर्यावरणविद् कल्याण रूद्र कहते हैं कि पानी के संरक्षण की दिशा में तुरंत ठोस पहल नहीं की गयी तो आने वाली पीढ़ियों के समक्ष पेयजल का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा.

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