सिमटता जा रहा है बंगाल का वस्त्र उद्योग, दर्जनों समस्याओं से जूझ रहा है उद्योग

कोलकाता : दशकों पहले नजारा ऐसा था कि बिहार, यूपी समेत उत्तर भारत से अधिकतर बेरोजगार लोग रोजगार की खोज में सूरत, मुंबई के साथ कोलकाता आते थे. यहां आकर जूट मिलों से लेकर वस्त्र उद्योग से जुड़े बड़े-बड़े कारखाने में मजदूर के तौर पर काम करते थे, लेकिन विगत कुछ सालों में स्थिति काफी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 29, 2018 2:45 AM
कोलकाता : दशकों पहले नजारा ऐसा था कि बिहार, यूपी समेत उत्तर भारत से अधिकतर बेरोजगार लोग रोजगार की खोज में सूरत, मुंबई के साथ कोलकाता आते थे. यहां आकर जूट मिलों से लेकर वस्त्र उद्योग से जुड़े बड़े-बड़े कारखाने में मजदूर के तौर पर काम करते थे, लेकिन विगत कुछ सालों में स्थिति काफी बदल गयी और आज इस उद्योग से युवा उद्यमियों के साथ मजदूर वर्ग भी पलायन करने लगे हैं.
नतीजा यह है कि कुशल श्रमिकों की कमी, दूसरे उद्योग की ओर बढ़ते रुझान, बांग्लादेश में गारमेंट्स का बढ़ता उद्योग समेत दर्जनों प्रमुख कारणों से बंगाल का वस्त्र उद्योग संकट में है. धीरे-धीरे दर्जनों समस्याओं से घिरा बंगाल का वस्त्र उद्योग पिछड़ता जा रहा है और अब ऐसे में बंगाल के वस्त्र उद्योग का अस्तित्व ही खतरे में है.
कई समस्याओं से घिरा है वस्त्र उद्योग : व्यवसायियों का मानना है कि बंगाल के वस्त्र उद्योग के पिछड़ने के पीछे कई मूल समस्याएं हैं. इनमें बांग्लादेश में कपड़े का तेजी से बढ़ता उद्योग और बंगाल से वस्त्र निर्यात का सीमित दायरा मुख्य वजह हैं. साथ ही नोटबंदी, जीएसटी का लागू होना, ई वे बिल, नयी टेक्नोलॉजी के आने पर चलाने के लिए प्रशिक्षित श्रमिकों की भारी कमी, नई पीढ़ी का बंगाल के वस्त्र उद्योग से रुझान कम होना, उनका दूसरे उद्योग की ओर बढ़ना, घंटों परिश्रम के बावजूद कम मेहनताना, साढ़े तीन दशक में बंगाल के सैकड़ों कारखानों का बंद होना, बांग्लादेश से भारत समेत बाहरी देशों में भी असीमित निर्यात, कम लागत में बांग्लादेश से ब्रांडेड महंगे कपड़ा स्पलाई होना आदि प्रमुख कारण हैं, जिससे बंगाल का वस्त्र उद्योग धीरे-धीरे काल की गाल में समाते जा रहा है.
दूसरे बाजारों के ज्यादा हावी होने से गहरा असर : गारमेंट्स एक ऐसा उद्योग है, जहां छोटी-छोटी सिलाई, कटिंग, पैकिंग, आयरन समेत जॉब वर्क ज्यादा होते हैं. पहले सारे कामों के लिए पेमेंट नकदी हुआ करते थे. पहले महानगर काफी आगे था, लेकिन धीरे-धीरे दिल्ली, मुम्बई, नॉर्थ ईस्ट और साथ ही पड़ोसी देश के रूप में बांग्लादेश का बढ़ता कपड़ा उद्योग महानगर के कपड़ा उद्योग पर हावी हो गया. नार्थ ईस्ट में इन दिनों असम से ही सारे कपड़े सप्लाई हुआ करते हैं. दिल्ली ने बिहार और यूपी को पूरी तरह से कवर कर लिया और इधर बांग्लादेश और मुंबई बाहरी देशों के मार्केट पर धाक जमा लिया और अब बंगाल से निर्यात भी काफी कम हो गया.
कैशलेस लेनदेन से बढ़ी समस्या : नोटबंदी और जीएसटी के बाद कैशलेस लेनदेन की मजबूरी बड़ी समस्या बनी है, जिसने कारीगरों को इस व्यवसाय से मुह मोड़ने के लिए बाध्य कर दिया. पहले नकदी पेमेंट हुआ करता था, लेकिन कैशलेस के कारण परेशानियां झेलने वाले मजदूर व कारीगर धीरे-धीरे दूसरे व्यवसाय की ओर रुख कर रहे हैं. जीएसटी लागू होते ही व्यवसायी वर्ग संशय में आ गये कि स्टिच मॉलों पर अलग-अलग तरीके से जीएसटी और ट्रांसपोर्टेशन के दौरान कई तरह की दिक्कतों ने भी निर्यात को घटा दिया.
व्यवसाय में आयी भारी गिरावट
जीएसटी के लागू होने के बाद से बंगाल के गार्मेंट्स के व्यवसाय में काफी गिरावट आयी है. 2015-16 में बंगाल का वस्त्र निर्यात 47,857 करोड़ रुपये का था, जो 2016-17 में 53,64 9 करोड़ का हुआ था, लेकिन नोटबंदी और जीएसटी के लागू होते ही काफी अधिक गिरावट आयी है.
क्या कहते हैं व्यवसायी
इस संबंध में व्यवसायी वर्ग का कहना है कि यह बात सही है कि बंगाल का वस्त्र उद्योग सिमटता जा रहा है. बड़ाबाजार के व्यवसायी राजेश सिन्हा का कहना है कि दशक भर में कपड़ा उद्योग में इनती भारी गिरावट आयी है कि आज यह उद्योग आधे पर आ गया है. पहले जिस तरह से सप्लाई हुआ करती थी, अब वैसी नहीं रही. नार्थ ईस्ट के लिए असम, बिहार-यूपी के लिए दिल्ली और बाहरी देशों के लिए मुंबई हब होने के साथ ही इन दिनों बांग्लादेश का निर्यात में बढ़ता प्रभाव का असर पड़ा है.
वहीं मटियाबुर्ज के व्यवसायी श्रीराम मोहता का कहना है कि बंगाल के कपड़ा के साथ अन्य व्यवसाय पर भी काफी असर पड़ा है. बड़ाबाजार के गारमेंट्स उद्योग के साथ बंगाल का पूरा वस्त्र उद्योग प्रभावित हुआ है. व्यवसायी जे सिंह ने बताया कि बंगाल का वस्त्र उद्योग धीरे-धीरे कम हो गया है. अब यह लोकल बाजार के तौर पर ही रह गया है.

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