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हरिपुर परमाणु संयंत्र : केंद्र व राज्य के बीच बढ़ सकती है खींचतान
कोलकाता : पूर्व मेदिनीपुर जिला के हरिपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने को लेकर एक बार फिर केंद्र व राज्य सरकार के बीच तकरार बढ़ने के आसार बढ़ गये हैं. केंद्र की भाजपा सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार के कड़े विरोध व 2011 में ही राज्य द्वारा प्रस्ताव को खारिज किये जाने के बावजूद […]
कोलकाता : पूर्व मेदिनीपुर जिला के हरिपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने को लेकर एक बार फिर केंद्र व राज्य सरकार के बीच तकरार बढ़ने के आसार बढ़ गये हैं. केंद्र की भाजपा सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार के कड़े विरोध व 2011 में ही राज्य द्वारा प्रस्ताव को खारिज किये जाने के बावजूद हरिपुर में रूस के सहयोग से प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की परियोजना पर नये सिरे से आगे बढ़ने का फैसला किया है. केंद्र के इस कदम के बाद एक बार फिर राज्य सरकार के साथ टकराव बढ़ने के आसार बढ़ गये हैं.
दरअसल, यह परियोजना यूपीए-2 सरकार की ही है और 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रूस यात्रा के दौरान इसके लिए करार किया था, लेकिन, उस दौरान इस क्षेत्र के स्थानीय किसानों और तब विपक्ष की नेता रहीं तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इसका कड़ा विरोध करते हुए आंदोलन चलाया था. वहीं, 2011 में राज्य की सत्ता में आने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस परियोजना को खारिज करते हुए राज्य में इसकी मंजूरी देने से साफ इन्कार कर दिया था. कड़े विरोध को देखते हुए उस दौरान केंद्र ने रूस से करार होने के बावजूद परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया था.
क्या है परियोजना के विरोध का कारण
प्रस्ताव के अनुसार, कोलकाता से करीब 170 किमी दूर हरिपुर में रूस के सहयोग से कुल 6 परमाणु रिएक्टर लगने हैं, जिनमें से प्रत्येक की क्षमता 1650 मेगावॉट होगी. संयंत्र की कुल क्षमता 10,000 मेगावॉट होगी. हरिपुर पूर्व मेदिनीपुर जिले में कोंताई तटीय क्षेत्र में है. परियोजना स्थल के आसपास की आबादी करीब 80,000 है और यहां के लोगों का मुख्य पेशा कृषि और मछली पालन है. इस प्रस्तावित संयंत्र को बनाने के लिए पहले चरण में कम से कम 1000 एकड़ जमीन की जरूरत होगी, जो करीब 2 वर्ग किमी इलाके में फैला होगा.
पश्चिम बंगाल में 2008-09 में जब सिंगुर व नंदीग्राम में उद्योग लगाने के लिए तत्कालीन वाममोर्चा सरकार द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ किसानों का आंदोलन पूरे चरम पर था, उसी दौरान हरिपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाने की बात सामने आई. स्थानीय किसानों व मछुआरों ने इसका विरोध शुरू किया. तब विपक्ष की नेता रहीं और सिंगुर व नंदीग्राम आंदोलन का नेतृत्व करने वाली ममता बनर्जी ने किसानों के विरोध को और हवा दी. लोग एक तरफ जबरन अपनी जमीन छीन लिए जाने से डरे थे, वहीं परमाणु ऊर्जा के खतरों से भयभीत थे.
परमाणु संयंत्र से होने वाले खतरों, उनके विस्थापन एवं कृषि व मछली पालन पर आने वाले संकट को लेकर किसानों के मन में तरह-तरह की बातें डाली गई. इससे विरोध बढ़ता ही गया. इस परियोजना से होने वाले फायदे को लेकर तत्कालीन केंद्र व राज्य सरकार द्वारा स्थानीय लोगों को लाख समझाने-बुझाने के बावजूद वे इसके लिए तैयार नहीं दिखे. अंत में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इसी दौरान मई 2011 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया और ममता सरकार ने प्रस्ताव को खारिज करते हुए मंजूरी देने से साफ इन्कार कर दिया. इसके कारण भूमि अधिग्रहण का मामला भी लटक गया और काम आगे नहीं बढ़ा.
मुख्यमंत्री के साथ बैठक करना चाहते हैं एनपीसीआइएल के अधिकारी
एनपीसीआइएल के अधिकारी जानकारी के मुताबिक, लंबे समय बाद बीते अप्रैल में न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआइएल) के अधिकारियों ने इस परियोजना के बारे में बातचीत व समस्याओं के हल के लिए मुख्यमंत्री के साथ बैठक को लेकर संपर्क भी किया था.
लेकिन अब तक मुख्यमंत्री से इस मुद्दे को लेकर बातचीत नहीं हो पाई है. हालांकि, इस परियोजना को लेकर स्थानीय विधायक व राज्य के पर्यावरण व परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी का कहना है कि केंद्रीय अधिकारी भले मुख्यमंत्री से मिल लें, लेकिन स्थानीय जनता इस परियोजना के लिए तैयार नहीं है. पूर्व में इस परियोजना के खिलाफ आंदोलन चला चुके शुभेंदु ने स्पष्ट कहा कि राज्य में किसी कीमत पर इस परियोजना को साकार नहीं होने देंगे.
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