शुभेंदु अधिकारी ने तृणमूल की जीत पर उठाये सवाल
कोलकाता : अपने बयान से विवाद खड़ा करनेवाले तृणमूल सांसद शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया कि उनके बयान में इशारा माकपा की ओर था. उनकी पार्टी के सहयोगियों की तरफ नहीं.
पूर्व मेदिनीपुर जिले की तमलुक सीट पर 2.45 लाख अंतर के मतों से जीतनेवाले अधिकारी ने शनिवार को जिले की एक बैठक में कहा था कि कई अन्य भी बड़े अंतर से जीते हैं और मैंने उन्हें धन्यवाद दिया, लेकिन हम जानते हैं कि उन्हांेने चुनाव किस तरह लड़ा और कैसे जीते. पार्टी की युवा शाखा के प्रमुख के पद से हटाकर महासचिव बनाये गये अधिकारी ने इस बात से इनकार किया कि उन्हांेने अपनी टिप्पणी से तृणमूल के किसी सांसद को निशाना बनाया.
शुभेंदु ने दावा किया कि उनकी टिप्पणी माकपा के लिए थी. शुभेंदु अधिकारी ने कहा : यह संकेत माकपा की ओर था. श्री अधिकारी ने कहा कि वह तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं और पार्टी कार्यकर्ता भी. वह अनुशासित व्यक्ति हैं. वह ऐसा कुछ भी नहीं कहेंगे, जो पार्टी को किसी परेशानीवाली स्थिति में डाले. ममता बनर्जी द्वारा उन्हें युवा शाखा के प्रमुख के पद से हटाने और महासचिव बनाने के बारे में पूछे जाने पर श्री अधिकारी ने कहा कि यह हमारे शीर्ष नेता का फैसला है. वह फैसला करती हैं कि पार्टी में कौन क्या करेगा.
उल्लेखनीय है कि बीते दिनों तृणमूल कांग्रेस के सांगठनिक फेरबदल में अपनी शक्ति को कम किये जाने से नाराज सांसद शुभेंदु अधिकारी ने बगावत के संकेत दिये थे. शनिवार को एक कार्यक्रम में उन्होंने नाम लिये बगैर तृणमूल कांग्रेस नेताओं की लोकसभा चुनाव में भारी जीत पर सवाल भी उठाये. उन्होंने कहा कि कई नेताओं ने शानदार जीत दर्ज की है. उन्हें वह बधाई देते हैं, लेकिन उन्हें यह जीत कैसे मिली है वह यह जानते हैं. शुभेंदु ने कहा कि उनके खिलाफ तो अफवाह फैलायी गयी थी कि उनकी लोकप्रियता घट रही है. लेकिन चुनाव के नतीजों ने यह दिखा दिया है कि वह पहले से अधिक वोटों से जीते हैं.
माना जा रहा था कि तृणमूल युवा कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाये जाने के 24 घंटे के बाद ही शुभेंदु अधिकारी ने पार्टी आलाकमान के खिलाफ मोरचा खोल लिया था. उन्होंने कहा था कि काम करने के लिए पद की जरूरत नहीं. उन्हें जनता की सेवा के लिए किसी पद या स्टैंप की भी जरूरत नहीं है. पार्टी में परिवारवाद का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा था कि वह किसी की दया पर नेता नहीं बने हैं. वह अपने दम पर नेता बने हैं.
शुभेंदु अधिकारी के अपने बयान से पलटने से यह साबित हो गया कि श्री अधिकारी को बैकफुट पर आने के लिए मजबूर होना पड़ा. मौजूदा स्थिति में पार्टी के खिलाफ बगावत करने की स्थिति में वह नहीं हैं.