कोलकाता : एनआरसी का नहीं, लागू करने के तरीके का है विरोध : कांग्रेस
कोलकाता : कांग्रेस एनआरसी का विरोध नहीं कर रही है, बल्कि असम में इसे लागू करने के तरीके का वह विरोध कर रही है. यह बात प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में संवाददाताओं से बातचीत करने हुए कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेरा ने कही. उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पर एनआरसी को लेकर राजनीति करने का आरोप भी लगाया. उन्होंने […]
कोलकाता : कांग्रेस एनआरसी का विरोध नहीं कर रही है, बल्कि असम में इसे लागू करने के तरीके का वह विरोध कर रही है. यह बात प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में संवाददाताओं से बातचीत करने हुए कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेरा ने कही.
उन्होंने भाजपा अध्यक्ष पर एनआरसी को लेकर राजनीति करने का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा कि श्री शाह को एनआरसी का इतिहास नहीं मालूम. 1985 का असम एकार्ड राजीव गांधी ने साइन किया था. एनआरसी प्रक्रिया की शुरुआत 2005 में हुई.
उन्होंने दावा किया कि असम में एनआरसी का 80 फीसदी कार्य कांग्रेस ने ही किया था और बाकी का काम सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद भाजपा ने किया. इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के शासनकाल में एनआरसी को लेकर असम में कोई काम नहीं हुआ था.
अब अमित शाह जैसे लोग एनआरसी को लेकर राजनीति कर रहे हैं. एनआरसी के ड्राफ्ट में देश के पूर्व राष्ट्रपति के परिवार के सदस्य का नाम और पूर्व वाइस चांसलर तक का नाम नहीं है. एनआरसी को लेकर राजनीति करना काफी खतरनाक है. कांग्रेस कभी भी वोट बैंक को लेकर नहीं सोचती. वह पूरे देश का सोचती है. भारत सरकार ने गत वर्ष नवंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि असम में यदि एनआरसी को लागू किया जाता है तो कानून व्यवस्था की समस्या हो सकती है.
भाजपा सरकार अदालत में कुछ और कहती है और जनता में कुछ और. राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तथाकथित टिप्पणी कि एनआरसी को लागू करने पर हिंसा हो सकती है, श्री खेरा ने कहा कि किसी जिम्मेदार पार्टी को ऐसा नहीं कहना चाहिए. किसी भी पार्टी को इस मुद्दे के राजनीतिकरण का अधिकार नहीं है.
श्री शाह के 2019 में कांग्रेस मुक्त भारत के आह्वान पर श्री खेरा ने कहा कि पहले भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत की बात कहती है और फिर वह लोकतंत्र मुक्त भारत की बात कहेगी और सभी लोकतांत्रिक संस्थानों को हटा देगी.
संवाददाताओं से बातचीत में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी ने कहा कि एनआरसी सूची को जारी करने से पहले केंद्र सरकार को पहले बांग्लादेश सरकार के साथ बात करना चाहिए था. भारत और बांग्लादेश में कोई प्रत्यार्पण संधि नहीं है.