तीन महीने के भीतर ई-रिक्शा का करना होगा पंजीकरण, कलकत्ता हाइकोर्ट की खंडपीठ ने दिया निर्देश

कोलकाता : राज्य भर में ई-रिक्शा को नियंत्रित करने के लिए हाइकोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया है. ई-रिक्शा नियंत्रण के लिए राज्य सरकार को तीन महीने का समय कलकत्ता हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य व न्यायाधीश अरिजीत बंद्योपाध्याय की खंडपीठ ने दिया है. खंडपीठ का निर्देश है कि तीन महीने के भीतर राज्य […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 18, 2018 5:07 AM
कोलकाता : राज्य भर में ई-रिक्शा को नियंत्रित करने के लिए हाइकोर्ट ने कड़ा रुख अख्तियार किया है. ई-रिक्शा नियंत्रण के लिए राज्य सरकार को तीन महीने का समय कलकत्ता हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य व न्यायाधीश अरिजीत बंद्योपाध्याय की खंडपीठ ने दिया है. खंडपीठ का निर्देश है कि तीन महीने के भीतर राज्य के परिवहन कानून के दायरे में लाकर प्रत्येक ई-रिक्शा का पंजीकरण करना होगा.
अगर इन तीन महीनों में राज्य के भीतर कोई हादसा होता है तो मुआवजा गाड़ी के मालिक को देना होगा. गाड़ी का मालिक नहीं मिलता है तो राज्य को मुआवजा देना होगा. उल्लेखनीय है कि इससे पहले भी ई-रिक्शा को नियंत्रित करने का निर्देश हाइकोर्ट ने दिया था. निर्देश दिया गया था कि ई-रिक्शा के मामले में राज्य सरकार को गाइडलाइन बनानी होगी.
2015 में गाइडलाइन बनाने में भी उसे न मानने की बात कही जा रही है. इस संबंध में प्रशासन के लापरवाह होने का आरोप है. ई-रिक्शा से हादसा होने पर मुआवजे की व्यवस्था की भी उसमें उल्लेख नहीं था. लिहाजा कलकत्ता हाइकोर्ट में बर्दवान, नदिया, हुगली व उत्त 24 परगना से चार याचिकाकर्ताओं ने याचिका दायर की. शुक्रवार को याचिकाकर्ता तुहराभ अली, विश्वजीत चक्रवर्ती व अन्य याचिकाकर्ताओं के वकील एनआई खान व स्वपन नर्जी ने कहा कि केंद्रीय परिवहन कानून के मुताबिक ई-रिक्शा को रास्ते में उतारने की निश्चित पद्धति है.
केंद्र सरकार द्वारा मंजूरीप्राप्त कंपनी से ई-रिक्शा खरीदने व बाजार में उतारने से पहले जिले के आंचलिक परिवहन विभाग से मंजूरी लेना अनिवार्य है. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. कानून की परवाह किए बगैर सैकड़ों टोटो रास्ते में चल रहे हैं. लेकिन प्रशासन इस संबंध में लापरवाह है. उपनगरों में इसकी समस्या अधइक है. अधिकांश जगहों पर हादसे हो रहे हैं. अरसे से राज्य के हर जिले में ई-रिक्शा चल रहे हैं लेकिन कोई पंजीकरण नहीं हुआ है. लिहाजा उनका कोई बीमा भी नहीं है.
यदि किसी यात्री या चालक को कोई चोट लगती है तो इसकी जिम्मेदारी क्या राज्य सरकार लेगी. राज्य की ओर से वकील अमल सेन ने कहा कि यह कोई जनहित याचिका नहीं है. कोई लिखित एफआइआर दायर नहीं किया गया. कोई शिकायत नहीं मिली है. याचिकाकर्ता के स्वार्थ के लिए मामला दायर किया गया है. राज्य की ओर से ई-रिक्शा के चलने व उनके नियंत्रण का भार आंचलिक कार्यालयों व नगरपालिकाओं को दिया गया है.
राज्य सरकार का इसमें कोई हाथ नहीं है, लेकिन खड़गपुर नगर निकाय की ओर से वकील ने राज्य के वक्तव्य का विरोध करते हुए कहा कि नगरपालिका को कोई दायित्व नहीं दिया गया. नगरपालिका केवल राज्य सरकार के निर्देश पर ही रिक्शा को चलाने की अनुमति देती है.

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