हाइकोर्ट ने पूछा : कैदियों की मौत पर मुआवजा कितना, 41 लोगों की अस्वाभाविक मौत की रिपोर्ट व मुआवजे का परिमाण अदालत को बताना होगा

कोलकाता : संशोधनागार में कैदी रहने के दौरान अस्वाभाविक मौत होने पर कैदियों के परिजनों को कितना मुआवजा दिया जा सकता है, यह राज्य सरकार से कलकत्ता हाइकोर्ट ने पूछा है. साथ ही आजीवन सजाप्राप्त कैदियों के मामले में काम के आधार पर सजा रद्द करने की जो निर्देशिका सुप्रीम कोर्ट ने दी है उस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 21, 2018 5:39 AM
कोलकाता : संशोधनागार में कैदी रहने के दौरान अस्वाभाविक मौत होने पर कैदियों के परिजनों को कितना मुआवजा दिया जा सकता है, यह राज्य सरकार से कलकत्ता हाइकोर्ट ने पूछा है. साथ ही आजीवन सजाप्राप्त कैदियों के मामले में काम के आधार पर सजा रद्द करने की जो निर्देशिका सुप्रीम कोर्ट ने दी है उस संबंध में राज्य की रीव्यू कमेटी से उसकी रिपोर्ट मुख्य न्यायाधीश ज्योतिर्मय भट्टाचार्य व न्यायादीश अरिजीत बंद्योपाध्याय की खंडपीठ ने तलब की है.
मामले की सुनवाई में राज्य के एडवोकेट जनरल किशोर दत्त ने कहा कि 2012 से 2015 तक कैदी रहने के दौरान 41 लोगों की मौत हुई थी. उनके नामों की सूची भी श्री दत्त ने पेश की. हालांकि इसके लिए मुआवजे का परिमाण वह नहीं बता सके. सुनवाई में ‘अदालत बांधव’ तापस पंज ने पांच लाख रुपये मुआवजे के रूप में देने का प्रस्ताव दिया. वह राज्य के विचाराधीन कैदी हैं. उनका दायित्व राज्य पर है. इस संबंध में खंडपीठ ने निर्देश दिया कि इन 41 लोगों की अस्वाभाविक मौत की रिपोर्ट व उनके मुआवजे का परिमाण अदालत को बताना होगा.
साथ ही राज्य के चार मुक्त संशोधनागारों में 14 वर्ष से अधिक समय तक कैद कैदियों की मुक्ति के संबंध में एडवोकेट जनरल ने बताया कि ऐसे कैदियों की तादाद 57 है. उन्हें छोड़े जाने के संबंध में राज्य की रीव्यू केटी की रिपोर्ट दो हफ्ते के भीतर पेश करने का निर्देश खंडपीठ ने दिया है. अदालत बांधव तापस भंज ने राज्य के संशोधनागार में स्वास्थ्य व्यवस्था भी ठीक नहीं है. चिकित्सक व स्वास्थ्यकर्मी नहीं हैं
इसलिए उन्हें कैदियों के बीमार होने पर बाहर के अस्पताल में ले जाया जाता है. उल्लेखनीय है कि 14 वर्ष से अधिक समय तक संशोधनागार में रहने वाले आजीवन कैद की सजा प्राप्त कैदियों के कामकाज व व्यवहार के आधार पर मुक्ति के संबंध में तथा कैदियों के अस्वाभाविक मौत पर मुआवजे के लिए देश के सभी राज्यों के हाइकोर्ट को स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दायर करके कैदियों का मामला देखने का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया है. इसी के तहत कलकत्ता हाइकोर्ट की ओर से भी स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दायर किया गया है. इसी मामले में खंडपीठ ने यह निर्देश दिया.

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