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जमीन के कारण अधर में द्वितीय बाइपास निर्माण

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कोलकाता : उत्तर कोलकाता को दक्षिण कोलकाता से जोड़ने वाली ईएम बाइपास महानगर की लाइफ लाइन बन गयी है. शहर में भीड़ वाले रास्तों को छोड़ कर अधिकांश लाेग ईएम बाइपास के माध्यम से जाना पसंद करते हैं, ईएम बाइपास के किनारों का राज्य सरकार ने सौंदर्यीकरण किया है, साथ ही ईएम बाइपास अब पांच […]

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कोलकाता : उत्तर कोलकाता को दक्षिण कोलकाता से जोड़ने वाली ईएम बाइपास महानगर की लाइफ लाइन बन गयी है. शहर में भीड़ वाले रास्तों को छोड़ कर अधिकांश लाेग ईएम बाइपास के माध्यम से जाना पसंद करते हैं, ईएम बाइपास के किनारों का राज्य सरकार ने सौंदर्यीकरण किया है, साथ ही ईएम बाइपास अब पांच सितारा होटल व्यवसायियों के लिए काफी पसंदीदा जगह बन गया है.
इसलिए अब ईएम बाइपास पर वाहनों की संख्या काफी बढ़ गई है, जिससे ट्रैफिक जाम की समस्या लगातार बढ़ रही है. इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने द्वितीय बाइपास बनाने की योजना बनाई थी. एयरपोर्ट से न्यूटाउन व भांगड़ होते हुए बारुईपुर तक बाइपास बनाने की योजना थी, लेकिन जमीन की समस्या के कारण राज्य सरकार की यह योजना अधर में अटक गई है. क्योंकि, योजना के लिए राज्य सरकार को कई हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण करना होगा. जमीन अधिग्रहण जैसे संवेदनशील मुद्दे को फिलहाल तृणमूल कांग्रेस की सरकार छेड़ना नहीं चाहती.
ज्ञात हो कि कोलकाता शहर को ट्रैफिक समस्या से निजात दिलाने के लिए 70 के दशक में तत्कालीन सरकार ने बाइपास बनाने का फैसला किया था. इसके बाद कोलकाता मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 1980 में बाइपास बनाने का काम शुरू किया और दो वर्ष में इसका निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया. आज इस बाइपास की लंबाई बढ़ा कर 29 किमी कर दी गई है. लेकिन बाइपास पर गाड़ियों की बढ़जी संख्या की वजह से यहां ट्रैफिक जाम की समस्या आम हो गई है. उल्टाडांगा से रूबी तक ट्रैफिक की स्थिति काफी खस्ता है.
राज्य सरकार ने छह लेन वाले बाइपास बनाने की बनायी थी योजना
पश्चिम बंगाल सरकार ने एयरपोर्ट से बारुईपुर तक छह लेन वाला बाइपास बनाने की योजना बनाई थी. इस बाइपास के जरिए राज्य सरकार ट्रैफिक की समस्या समाधान करना चाहती थी. एयरपोर्ट से न्यूटाउन के ‘ ब्राडा ‘ इलाके से होते हुए बारुईपुर तक बाइपास बनाने की योजना थी और कोलकाता मेट्रोपॉलिटन को बाइपास बनाने का जिम्मा सौंपा गया था.
लेकिन केएमडीए ने जब रास्ता बनाने के लिए जमीन का सर्वेक्षण किया तो पाया कि बाइपास बनाने के लिए हजारों एकड़ कृषि जमीन का अधिग्रहण करना होगा, साथ ही सैकड़ों घर तोड़ने होंगे. इसलिए रास्ता बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा जो खर्च होगा, उससे कहीं ज्यादा खर्च जमीन खरीदने के लिए करना पड़ेगा. इसलिए सरकार इस योजना पर आगे काम बढ़ाना नहीं चाहती है.

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