सीएसई का दावा, आने वाले समय में और बढ़ेगा गंगा नदी में प्रदूषण का स्तर, भविष्य में बढ़ेगा गंगा पर संकट

नवीन कुमार राय, कोलकाता : सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट) ने लखनऊ में गंगा की दशा को लेकर एक परिचर्चा का आयोजन किया. इस दौरान विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों ने माना कि गंगा को जिस प्रक्रिया के तहत साफ किया जा रहा है उससे यह साबित होता है कि आने वाले दिनों में गंगा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 5, 2018 6:33 AM
नवीन कुमार राय, कोलकाता : सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायरमेंट) ने लखनऊ में गंगा की दशा को लेकर एक परिचर्चा का आयोजन किया. इस दौरान विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों ने माना कि गंगा को जिस प्रक्रिया के तहत साफ किया जा रहा है उससे यह साबित होता है कि आने वाले दिनों में गंगा अपना स्वाभाविक रूप खो देगी.
हालांकि यह सरकार के राष्ट्रीय एजेंडे में सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल है. संस्था ने अपनी पत्रिका डाउन टू अर्थ के ताजा अंक में दावा किया है कि समय सीमा के करीब आने के बावजूद नदी साफ-सुथरी नहीं होगी. नदी और भी अधिक पहले की तहर और भी प्रदूषित हुई है.
पत्रिका का दावा है कि नयी सरकार के आने के बाद भी नदी प्रदूषित है और इसके किनारे रहने वाले लोगों को शायद ही आंशिक रूप से साफ पानी पीने को मिले. लेकिन उनको गंगा जल नहीं मिलेगा. वहीं सरकार दावा कर रही है कि गंगा 2019 में साफ हो जायेगी (समय सीमा अब 2020 तक बढ़ा दी गई है).
डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा कि नमामी गंगा योजना के तहत 31 अगस्त, 2018 तक स्वीकृत परियोजनाओं की कुल संख्या में से केवल एक चौथाई से अधिक ही पूरा हो चुका था. केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा किये गये गंगा नदी की जल गुणवत्ता की जानकारी देते हुए लिखा है कि नदी के 70-विषम निगरानी स्टेशनों में से केवल पांच में पानी पीने के लिए उपयुक्त मिला केवल सात में पानी था जो स्नान करने के लायक है.
दूसरी ओर नमामी गंगा के लक्ष्यों के अनुसार, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) 2,000 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) क्षमता के साथ पुनर्वास किया जाना चाहिये, लेकिन 328 एमएलडी ही कवर किया गया है. परियोजनाओं के हालात पर नजर डालें तो यह अंदाज लगाना मुश्किल है कि, क्या सरकार अपनी संशोधित समय सीमा भी हासिल करेगी. यह स्थित तब है जब 31 अगस्त तक एसटीपी समेत कुल 236 परियोजनाओं को मंजूरी दे दी गयी थी, जिनमें से केवल 63 ही पूरा हुआ है.
चिंता का विषय यह है कि एसटीपी का सीवेज डेटा एक शहर के आधार पर बना दिये गये हैं जिनका आंकलन अब गलत साबित हो रहा है. डाउन टू अर्थ की एक अध्ययन रिपोर्ट और सीपीसीबी से उपलब्ध डेटा के अनुसार गंगा में अपशिष्ट जल का वास्तविक मापा निर्वहन अनुमानित अनुमान से 123 प्रतिशत अधिक है.
वहीं मानसून के अलावा, गंगा में जल प्रवाह एक प्रमुख चिंता बनी हुई है. विशेषज्ञों का कहना है कि नदी में पानी का स्तर खतरनाक स्तर से नीचे जा रहा है. नदी की प्रवाह को बनाये रखा जाये तो इससे नदी का कार्बनिक प्रदूषण 60-80 प्रतिशत तक हल हो सकती है. लेकिन भविष्य बता रहा है कि आने वाले समय में नदी का प्रवाह कम हो जायेगा. पत्रिका का कहना है कि भागीरथी और अलकनंदा पर कई जलविद्युत परियोजनाओं ने गंगा को पारिस्थितिकीय रेगिस्तान में बदल दिया है. वर्ष 1970 की तुलना में 2016 में नदी के बेसफ्लो में 56 प्रतिशत की कमी हुई है.
स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार ने गंगा के तट पर 99.33 प्रतिशत गांवों को खुले शौचालय मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर 4,000 गांवों में 2.7 करोड़ शौचालयों का निर्माण किया गया है. इसका उद्देश्य था कि गंगा से मल प्रदूषण के स्तर को कम करना था लेकिन मई 2018 में, 2500 प्रति 100 मिलीलीटर के मानक के खिलाफ, नदी में मल प्रदूषण 2,500 से 2,40,000 प्रति 100 मिलीलीटर तक हो गया. इसलिए गांवों में ओडीएफ के तहत नये शौचालयों का निर्माण इसका समाधान नहीं है. ओडीएफ बन जाते हैं तो पांच गंगा बेसिन राज्यों (उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल) में लगभग 180 एमएलडी मलयुक्त कीचड़ उत्पन्न होगी.
यदि उचित कीचड़ प्रबंधन नहीं किया जाता है, तो गंगा हमेशा प्रदूषित रहेगी. चिंता का एक कारण यह भी है कि सीवेज की तुलना में यह एक बड़ा प्रदूषण का कारक होगा. सीवेज का बीओडी 150-300 मिलीग्राम/लीटर है, जबकि मलयूक्त कीचड़ 15,000-30,000 मिलीग्राम/लीटर है. जब तक कीचड़ उत्पन्न नहीं होती है तब तक गंगा साफ नहीं हो सकती है.
नमामि गंगा के तहत केंद्र सरकार ने 22,323 करोड़ रुपये गंगा की सफाई के लिए जारी किये थे लेकिन अप्रैल 2018 तक यह राशि का मात्र 23 फीसदी ही खर्च हो सका है. इसके बेहतर कार्यान्वयन के लिए जल संसाधन मंत्रालय ने 10 मंत्रालयों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन इस बात की कोई स्पष्टता नहीं है कि विभिन्न मंत्रालय आपस में समन्वय कर रहे हैं.

Next Article

Exit mobile version