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नोटबंदी में खोया पति, अब दाने-दाने को मोहताज
कोलकाता : नोटबंदी के दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन 52 साल की कल्पना बाग का जख्म अभी भी ताजा है. नोटबंदी के दौरान बैंक की लाइन में खड़े उनके पति की मौत होगी गयी था. दो वर्ष के बाद वह दाने-दाने को मोहताज है और भाग्य पर रोने के सिवा उनके पास कुछ भी […]
कोलकाता : नोटबंदी के दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन 52 साल की कल्पना बाग का जख्म अभी भी ताजा है. नोटबंदी के दौरान बैंक की लाइन में खड़े उनके पति की मौत होगी गयी था. दो वर्ष के बाद वह दाने-दाने को मोहताज है और भाग्य पर रोने के सिवा उनके पास कुछ भी नहीं बचा है. हावड़ा के उलबेड़िया बासुदेवपुर में रहने वाले सनत बाग (54) 30 दिसंबर साल 2016 को नोटबंदी की लाइन में खड़े खड़े मौत के मुंह में समा गये थे. उनकी बेटी की शादी थी और इसके लिए 1500 रुपये की जरूरत थी.
लगातार दो दिनों तक बैंक गये थे लेकिन रुपये नहीं मिले थे. तीसरे दिन भी लाइन में खड़े थे और हृदयाघात से मौत हो गयी. पांच बेटियों में से तीन की शादी हो गयी थी और चौथी की शादी पक्का करने के लिए रुपये की जरूरत थी.
बैंक की लंबी लाइन में तबीयत बिगड़ने से हुई थी कल्पना के पति की मौत
बेटी की शादी थी और इसके लिए 1500 रुपये की जरूरत थी
दो दिनों तक बैंक में लाइन लगा कर खाली हाथ लौटे थे
तीसरे दिन भी लाइन में खड़े थे और हृदयाघात से मौत हो गयी
दो बेटे हैं और दोनों ही मानसिक रूप से बीमार हैं. एक बेटी और दो मानसिक बीमार बेटों को लेकर कल्पना बाग कभी दूसरे के घर काम करती है तो कभी भीख मांग कर दो जून की रोटी की व्यवस्था करनी पड़ती है. उनकी एक बेटी भी दूसरों के घर काम करती है.
दिव्यांग संतानों के साथ कल्पना किस्मत पर रो रही
नोटबंदी की दूसरी वार्षिकी पति के निधन की भी दूसरी वार्षिकी है. दो दिव्यांग संतानों के साथ कल्पना अपनी किस्मत पर रो रही है. कल्पना ने बताया कि पति की मौत के बाद स्थानीय तृणमूल के नेता उनके पास आये थे और उन्हें ले जाकर आरबीआइ के सामने धरना दिया था. उन्हें केंद्र की नोटबंदी के खिलाफ आंदोलन का चेहरा बनाया गया था. उस समय तृणमूल सरकार की ओर से दो लाख की आर्थिक मदद मिली थी और गीतांजलि परियोजना के तहत एक आवास दिया गया था, लेकिन पैसे दिव्यांग बच्चों की चिकित्सा में ही खर्च हो गये और अब परिवार आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है.
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