कोलकाता : पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के अध्यक्ष सोमेन मित्रा ने कहा कि पार्टी के लिए अगले लोकसभा चुनाव में राज्य में अकेले उतरना बेहतर होगा, क्योंकि भाजपा विरोधी ताकत के रूप में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के ‘इरादे ईमानदार नहीं’ हैं.
आम चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस या वामदल के साथ संभावित गठबंधन के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि राज्य के ज्यादातर कांग्रेसी नेता अकेले चुनाव लड़ने के पक्ष में हैं, चाहे पार्टी को बंगाल में एक भी सीट न मिले.
कांग्रेस के अनुभवी नेता मित्रा पहले तृणमूल कांग्रेस में चले गये थे, लेकिन वापस कांग्रेस में लौट आये और उन्हें पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाया गया.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस को राज्य में तृणमूल कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा के खिलाफ लड़ने के लिए भी खुद को तैयार करना चाहिए.
मित्रा ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘अगर आप पिछले घटनाक्रम को देखेंगे, तो आप पायेंगे कि भाजपा विरोधी ताकत के रूप में तृणमूल कांग्रेस के इरादे ईमानदार नहीं हैं. राष्ट्रीय स्तर पर जब भी कांग्रेस, भाजपा के खिलाफ कोई बड़ा अभियान चलाती है, तो तृणमूल या तो टाल देती है या अपनी हाजिरी दर्ज कराने के लिए किसी एक सांसद को भेज देती है.’
उन्होंने आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस ने नोटबंदी को लेकर काफी हंगामा मचाया, लेकिन चिटफंड घोटाले में सीबीआई द्वारा उसके दो सांसदों को गिरफ्तार करने के बाद वह ‘चुप बैठ’गयीं. मित्रा ने बताया कि सत्तारूढ़ पार्टी ने राफेल विमान सौदे पर भी ‘चुप्पी साधे’ रखी.
उन्होंने कहा, ‘हमने अपनी पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी को बता दिया कि हम अकेले लड़ने के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा कि हमें अपनी ताकत बढ़ाने पर काम करना चाहिए, लेकिन अंतिम निर्णय एआईसीसी लेगी और हम उसे स्वीकार करेंगे.’
वामदल के साथ गठबंधन की संभावना के बारे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि यह ‘उचित विकल्प’ नहीं होगा. उन्होंने कहा, ‘माकपा वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद एकतरफा तरीके से गठबंधन से अलग हो गयी थी. वामदल भी कांग्रेस के साथ जाने के पक्ष में नहींहैं.’
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के पास चार लोकसभा सीटें हैं. उन्होंने कहा कि 2001, 2009 और 2011 में तृणमूल कांग्रेस और 2016 में माकपा के साथ गठबंधन करने के कारण पार्टी पर बहुत ‘बुरा’ असर पड़ा.
मित्रा ने बंगाल में पार्टी की ताकत कम होने और ‘सांप्रदायिक ताकतों’ के बढ़ने के लिए कांग्रेस के निर्वाचित प्रतिनिधियों की ‘खरीद फरोख्त’ की सत्तारूढ़ पार्टी की नीति को भी जिम्मेदार ठहराया.
राज्य में कांग्रेस के संगठन को मजबूत करने के बारे में उन्होंने कहा कि वह उन विधायकों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं, जो तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये थे.