कोलकाता : वैज्ञानिकों ने खोजी सौर चक्रवात का पता लगाने की तकनीक, ”नेचर कम्युनिकेशन” ने किया खुलासा
कोलकाता : महानगर के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) और इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स आईयूसीएए के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने सूर्य की गतिविधियों का दशकों पहले अनुमान लगाने का तरीका और सैटेलाइट संचार को ध्वस्त करने वाले सौर चक्रवात का पता लगाने की तकनीक ढूंढ़ निकाली है. विज्ञान आधारित […]
कोलकाता : महानगर के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) और इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स आईयूसीएए के वैज्ञानिकों की संयुक्त टीम ने सूर्य की गतिविधियों का दशकों पहले अनुमान लगाने का तरीका और सैटेलाइट संचार को ध्वस्त करने वाले सौर चक्रवात का पता लगाने की तकनीक ढूंढ़ निकाली है.
विज्ञान आधारित शोध के लिए प्रकाशित होनेवाली पत्रिका ‘नेचर कम्युनिकेशन’ के दिसंबर अंक में इस शोध के बारे में जानकारी दी गयी है. इसमें बताया गया है कि इस नयी तकनीक के जरिए आगामी दशकों में सूर्य की तमाम गतिविधियों का अनुमान सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है. इससे सूर्य की गतिविधियों के अनुसार होने वाले सौर चक्रवात के बारे में भी पूरी जानकारी मिलेगी.
यह ऐसा चक्रवात होता है जिससे धरती का सेटेलाइट संचार और इलेक्ट्रिक पावर ग्रिड पूरी तरह से चरमरा जाते हैं. कोलकाता के वैज्ञानिकों की इस खोज ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया है. प्राथमिक तौर पर या पता चला है कि अगले 10 साल में सूर्य के तापमान में थोड़ी-सी भी गिरावट नहीं आएगी.
इसके साथ ही वैज्ञानिकों की टीम ने अगले सौर धब्बा चक्र के बारे में अनुमान लगाया है, जो अगले दशक में अंतरिक्ष की प्रत्याशित स्थिति का खुलासा करता है. आईआईएसईआर के निदेशक सौरव पाल ने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा खोजी गयी यह तकनीक भारत की सौर आधारित परिसंपत्तियों और वैश्विक जलवायु की सुरक्षा के लिए बेहद प्रासंगिकता है.’’
आईआईएसईआर के प्रोफेसर दिब्येंदु नंदी और उनकी पीएचडी छात्रा प्रांतिका भौमिक द्वारा विकसित एक अनोखी तकनीकी का इस्तेमाल करते हुए टीम ने अनुमान लगाया है कि सौर धब्बा चक्र वर्तमान चक्र के समापन के करीब एक साल बाद शुरु होगा और 2024 में वह सबसे अधिक होगा.
टीम का यह भी अनुमान है कि अगले दशक में अंतरिक्ष के पर्यावरण की स्थितियां पिछले दशक के समान या उसकी तुलना में थोड़ी कठोर होंगी. आईयूसीएए में अनुसंधान सहयोगी नंदी ने कहा, ‘‘अंतरिक्ष का मौसम सूर्य से उत्सर्जित और सौरमंडल से बाहर आने वाले इलेक्ट्रोन और प्रोटोन कणों की स्थिर धारा से संचालित होता है.
समय समय पर सूर्य इन कणों का तेज झोंका छोड़ता है जो आश्चर्यजनक रफ्तार से धरती की ओर आता है. इससे अंतरिक्ष में तूफान पैदा होते हैं, जो सेटलाईटों को नष्ट कर सकते हैं, बिजली पावर ग्रिडों को ध्वस्त कर सकते हैं और दूरसंचार स्थिति को चरमरा सकते हैं. इसे सौर चक्रवात के नाम से जाना जाता है. इस नयी तकनीक के जरिए इस चक्रवात के आने के समय के बारे में काफी पहले से पता चल जाएगा और इसके लिए बचाव मूलक कदम उठाया जा सकेगा.
भौमिक ने कहा कि पिछले कुछ समय से पता चला है कि सौर धब्बा चक्र सौर गतिविधि की सभी पहलुओं को नियंत्रित करता है और हमारे अंतरिक्ष पर्यावरण एवं जलवायु पर बड़ा असर छोड़ता है. अंतरिक्ष वैज्ञानिक सौर तूफान की भावी परिघटना का अनुमान लगाने के तौर तरीके विकसित करने के प्रयास में दशकों से जुटे रहे हैं.
सौर धब्बा धरती से दस गुणा अधिक आकार का हो सकता है और उसका चुम्बकीय क्षेत्र हजारों गुणा मजबूत हो सकता है. इन धब्बों को गैलेलियों के वक्त से ही दूरबीनों के माध्यम से देखा गया. उसके बाद से इन चक्रों और रवात केेे बारे में पहले से अनुमान लगाने की तकनीक विकसित करने के लिए वैज्ञानिकों की टीम काफी मेहनत कर रही थी लेकिन कोलकाता की संयुक्त टीम ने इसमें सफलता हासिल की है.