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कोलकाता : राहुल सांकृत्यायन की प्रतिभा से भारत रहा वंचित : जेता

कोलकाता : यह बड़े खेद का विषय है कि एक प्रतिभावान व्यक्ति की प्रतिभा के उपयोग से उसके देशवासी ही वंचित रह गये. ऐसा रविवार को भारतीय भाषा परिषद में राहुल सांकृत्यायन की 125वीं जयंती पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उनके पुत्र व सिक्किम विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जेता सांकृत्यायन ने कहा. उन्होंने […]

कोलकाता : यह बड़े खेद का विषय है कि एक प्रतिभावान व्यक्ति की प्रतिभा के उपयोग से उसके देशवासी ही वंचित रह गये. ऐसा रविवार को भारतीय भाषा परिषद में राहुल सांकृत्यायन की 125वीं जयंती पर आयोजित एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उनके पुत्र व सिक्किम विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर जेता सांकृत्यायन ने कहा.
उन्होंने बताया कि जब वो आठ वर्ष के थे, तभी उनके पिता राहुल सांकृत्यायन की मृत्यु हो गयी थी, जिससे वो भी अपने पिता को एक पाठक की भांति ही जानते हैं. उन्होंने कहा, राहुलजी एक स्वनिर्मित मनीषी थे, जो आठवीं के पश्चात पढ़ाई छोड़ने के बाद भी विद्या क्षितिज पर पहुंचे थे.
राहुल जी में समय-समय पर वैचारिक परिवर्तन आया, पर उनकी मानवतावादी दृष्टि सदैव बनी रही. उन्होंने तिब्बत में रह कर भारत की साम्यवादी संस्कृति पर किताब लिखी थी, जो उनके देश प्रेम को दर्शाती है.
वह विचारों से दृढ़ संकल्पी और परिश्रमी थे. राहुल सांकृत्यायन ने गुलाम भारत में तिब्बत की चार बार यात्राएं करके कई प्राचीन ग्रंथों का उद्धार ही नहीं किया, बल्कि ईरान, इराक, श्रीलंका और रूस जैसे देशों की यात्रा करके वहां के अनुभव से हिंदी साहित्य के इतिहास का भंडार भरा.
जाने-माने आलोचक रविभूषण ने कहा कि राहुल ने विज्ञान को देश का मार्गदर्शक माना था. उन्हें देश को लेकर सच्ची चिंता थी. आज का भारत राहुल और उनके युग के आदर्शों के एकदम विरुद्ध खड़ा है.
संस्कृत की प्रो. रत्ना बसु ने कहा कि तिब्बत से दुर्लभ बौद्ध ग्रंथों का उद्धार करना राहुल सांकृत्यायन का एक महान काम था. उन्होंने संस्कृत साहित्य का इतिहास भी लिखा था. वे तिब्बत विद्या और पालि साहित्य के प्रणेता थे. उनका प्रधान लक्ष्य ज्ञान को जनता तक पहुंचाना था.
रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि राहुल ने एक साधारण इंसान की तरह जिंदगी गुजारी पर उन्होंने महान काम किये. राहुल से जुड़ने का अर्थ अपनी परंपराओं, सामाजिक विविधताओं और भारतीय संस्कृति से जुड़ना है. उन्होंने भारत के नवनिर्माण का सपना देखा था.
भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉ शंभुनाथ ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन आज की तरह के टूरिस्ट न होकर यात्री थे. वे साहित्य को संकुचित अर्थ में नहीं लेते थे, बल्कि उसका संबंध इतिहास, दर्शन, संस्कृति और सामाजिक सक्रियता से मानते थे. वे धार्मिक रूढ़ियों के विरुद्ध थे, क्योंकि इनके रहते हुए समाज में लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती थी.
अध्यक्षता करते हुए पल्लव सेनगुप्ता ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन हिंदीवालों के बीच लोकप्रिय भले न हों, पर बंगाल के लोग उनसे प्रेरणा लेते रहे हैं. उन्हें कोलकाता से बड़ा प्रेम था.
भारतीय भाषा परिषद की अध्यक्ष डॉ कुसुम खेमानी और मंत्री नंदलाल शाह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए अपने विचार व्यक्त किये. पीयूषकांत राय ने धन्यवाद देते हुए कहा कि कोलकाता राहुल सांकृत्यायन को कभी नहीं भूलेगा.

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